मध्यप्रदेश में किसानों की सब्सिडी के नाम पर 4000 करोड़ रु का घोटाला
4000 करोड़ की सब्सिडी के उपयोग से बच सकती थी सैकड़ों किसानों की जानें
आज राजधानी भोपाल में आयोजित पत्रकार वार्ता को संबोधित करते हुए आम आदमी पार्टी के प्रदेश संयोजक श्री आलोक अग्रवाल ने कहा कि हाल ही में राज्य सरकार द्वारा किसानों के कृषि पम्पों के लिए 8400 करोड़ की सब्सिडी देने की घोषणा की है, ये सब्सिडी कृषि पम्पों के लिए उपयोग की जाने वाली 2075 करोड़ यूनिट बिजली के लिए दी गयी है जबकि आंकलन से पता चलता है कि किसानों द्वारा मात्र 1063 करोड़ यूनिट बिजली खर्च की जा रही है. अतः यह शेष 1000 करोड़ यूनिट बिजली किसानों के नाम पर चोरी की जा रही है और इस 1000 करोड़ यूनिट बिजली के लिए दी जाने वाली 4000 करोड़ रु सब्सिडी स्पष्ट घोटाला हुआ है. आज राज्य सरकार द्वारा बिजली चोरी में दी गयी 4000 करोड़ की सब्सिडी का उपयोग किसानों की फसलों के कर्ज माफ़ी या फसल का उचित दाम देने पर होता तो सैकड़ों किसानों का जीवन बच सकता था.
कैसे हुआ ये घोटाला :-
इस साल के विद्युत् नियामक आयोग के टैरिफ आर्डर से स्पष्ट है कि किसानी सिचाई पंप के लिए 2075 करोड़ यूनिट बिजली खर्च होगी, इस 2075 करोड़ यूनिट के लिए राज्य सरकार ने 8400 करोड़ की सब्सिडी देने की घोषणा की है अर्थात ये सब्सिडी लगभग 4 रूपए यूनिट पड़ती है.
परन्तु यदि कृषि पम्पों द्वारा होने वाली खपत का आंकलन करें तो चौकाने वाले तथ्य सामने आते है:
विद्युत् नियामक आयोग द्वारा 10 घंटे प्रतिदिन बिजली आपूर्ति के आधार पर कृषि पम्पों की खपत का निर्धारण निम्नानुसार किया है:
- माह अप्रैल से सितम्बर 80 यूनिट प्रति हॉर्सपॉवर प्रति माह
- अक्टूबर से मार्च 170 यूनिट प्रति हॉर्सपॉवर प्रति माह
- अस्थायी पंप कनेक्शन 195 यूनिट प्रति हॉर्सपॉवर प्रति माह
इस आधार कुल खपत इस प्रकार है:
Ø 3 हॉर्स पॉवर के लगभग 17 लाख पम्पों की कुल खपत 765 करोड़ यूनिट
Ø 5 हॉर्स पॉवर के 9 लाख कृषि पम्पों की कुल खपत 675 करोड़ यूनिट
Ø 4.5 लाख अस्थायी कनेक्शन वाले कृषि पम्पों की कुल खपत 79 करोड़ यूनिट
कुल खपत 1519 करोड़ यूनिट
इस प्रकार इन पम्पों की कुल खपत 1519 करोड़ यूनिट है. यह खपत तब है जब माना जाये कि स्थायी कनेक्शन 12 माह सतत रूप से चलते हैं. परन्तु वास्तविकता ये है कि माह अप्रैल के पश्चात ना तो भू-जल स्तर रहता है, व प्रायः सभी जल स्त्रोत नदी नाले न्यूनतम स्तर पर रहते हैं और न ही बड़े स्तर पर खेती किसानी होती है व फसल भी हार्वेस्टर से काट ली जाती है. जून माह में प्रारंभ होने से मध्य सितम्बर तक सिंचाई की कोई आवश्यकता सामान्यतः नहीं होती है तथा अक्टूबर से मार्च तक की 6 माह में भी लगातार पम्प नहीं चलते हैं. अतः वास्तविक खपत इस खपत का अधिकतम 70 प्रतिशत माने तो वास्तविक खपत 1063 करोड़ यूनिट होगी.
विद्युत नियामक आयोग ने बिजली की खपत 2075 करोड़ यूनिट दर्शायी है जबकि वास्तविक खपत 1063 करोड़ यूनिट है अतः साफ़ रूप से 1000 करोड़ यूनिट बिजली विद्युत मंडल द्वारा किसानों के नाम पर दिखाकर चोरी से कहीं और बेचीं जा रही है और इस 1000 करोड़ यूनिट बिजली पर दी जाने वाली 4000 करोड़ रु की सब्सिडी का साफ़ घोटाला हुआ है.
बिजली चोरी छुपाने के लिए नहीं लगा रहे मीटर :-
मध्यप्रदेश शासन द्वारा भारत सरकार के साथ किये गए समझौते में समूह ट्रांसफार्मरों पर मीटर लगाने का अनुबंध हुआ है परन्तु इसके बावजूद प्रदेश के कुल 3.21 लाख समूह ट्रांसफार्मरों में से मात्र 45000 (14%) में मीटर लगे हुए हैं. इस समूह ट्रांसफार्मरों पर मीटर न लगाना सरकार द्वारा बिजली की चोरी और सब्सिडी की लूट को छुपाने के लिए किया जा रहा है |
4000 करोड़ की सब्सिडी के उपयोग से बच सकती थी सैकड़ों किसानों की जानें:
आज मध्यप्रदेश में सभी तरफ किसान आत्महत्या कर रहा है. आत्महत्या करने के कारण उसकी फसल का दाम न मिलना और कर्जा बढ़ना है, केवल प्याज ही नहीं, किसान की हर फसल का दाम बुरी तरह से गिरा है. राज्य सरकार द्वारा बिजली चोरी में दी गयी 4000 करोड़ की सब्सिडी का उपयोग यदि किसानों का कर्ज माफ़ करने या फसल का उचित दाम देने में होता तो सैकड़ों किसानों का जीवन बच सकता था.
आम आदमी पार्टी शिवराज सिंह जी से मांग करती है की वह जवाब दे कि किसानों के नाम पर दी जाने वाली 1000 करोड़ यूनिट बिजली कहाँ जा रही है और इस पर दी जाने वाली 4000 करोड़ की सब्सिडी का उपयोग किसके लिए किया जा रहा है.
आम आदमी पार्टी मांग करती है कि किसानों के नाम पर की जा रही बिजली चोरी रोकी जाये और 4000 करोड़ की सब्सिडी किसानो के कर्ज को माफ़ करने व् फसल के उचित दाम के लिए दी जाये. साथ ही आम आदमी पार्टी चेतावनी देती है की आने वाले दिनों में किसानों के नाम पर की जाने वाली इस लूट की सच्चाई को जन-जन तक पहुँचाया जायेगा.
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