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*आशीष कुमार ‘अंशु’*
देश में 2014 से पहले ऐसे दर्जनों खोल थे जहां कांग्रेस को सत्ता में बनाए रखने के लिए तरह—तरह के प्रयोग हुआ करते थे। चूंकि इन आवरणों पर अलग—अलग नाम चिपके थे, इसलिए प्रयोग असफल हो जाने पर भी कभी इल्जाम कांग्रेस पर नहीं आता था।
इन प्रयोगों में सबसे अधिक लोकप्रिय और लंबा चलने वाला एक प्रयोग था, साम्प्रदायिक शक्तियों से मुकाबला। इस प्रयोग के अन्तर्गत कांग्रेस सरकारों से ‘फंडेड’ सैकड़ों विद्वान, दर्जनों पार्टियों के साथ मिलकर अकेली भाजपा के खिलाफ प्रोपेगेंडा और आरएसएस को लेकर दुष्प्रचार करती थी। और इस परियोजना को नाम दिया गया था, साम्प्रदायिक शक्तियों से मुकाबला।
इस परियोजना से पैसा कमाने वाली एक महत्वपूर्ण किरदार तीस्ता सीतलवाड़ भी थीं। उन दिनों गुजरात में दो ही राजनीतिक पार्टियां आमने सामने थीं। एक का नाम था कांग्रेस और दूसरी थी भारतीय जनता पार्टी। तीस्ता साम्प्रदायिक शक्तियों से मुकाबला के नाम पर भारतीय जनता पार्टी के खिलाफ अभियान चला रहीं थी। एक यात्रा निकाली उन्होंने। कांग्रेस को सत्ता में बनाए रखने के लिए ‘साम्प्रदायिक शक्तियों से मुकाबला’ सफलतम प्रयोगों में से एक था। कांग्रेस ने इस पर खूब निवेश किया। कुल मिलाकर यह सारा काम 2014 तक आउटसोर्सड था। अब तो यह पवन खेड़ा और सुप्रिया श्रीनेत की निगरानी में सीधे सीधे चल रहा है। इसलिए कांग्रेस पार्टी के स्नेहित, पुष्पित पल्लवित यू ट्यूबर्स भूलकर भी ऐसी कोई बात नहीं कहते जो पवन सर या फिर सुप्रिया मैडम को नागवार गुजरे। वे एक बार को मल्लिकार्जुन सर को निराश कर सकते हैं लेकिन पवन सर और सुप्रिया मैडम को बिल्कुल नहीं।
कांग्रेस ने दशकों के अपने राज में एक मजबूत इको सिस्टम खड़ा कर लिया है। जिसे तोड़ पाना भाजपा के लिए दस साल के शासन के बाद भी मामूली बात नहीं है। गांव के किसी पुराने जमींदार की तरह कांग्रेस पार्टी को सरकार चलाने के दौरान कोई बात कहनी होती थी, वह खुद नहीं कहती थी। उसके लिए उन्होंने प्रणय रॉय को रखा था। उस बात को प्रोफेशनल तरीके से प्रणय राय का पूरा चैनल कहता था। इस चैनल के लिए राष्ट्रपति भवन के दरवाजे से लेकर कांग्रेस सरकार के खजाने तक खुले थे। अब उनका ‘चैनल’ रहा नहीं, इसलिए कांग्रेस यह काम अपने यू ट्यूबर्स से कराती है।
*एनडीटीवी की सस्ती कॉपी*
प्रणय रॉय की कॉपी बनने की कोशिश उनके ही स्कूल से निकले एक पत्रकार ने मोदी सरकार में की लेकिन वे अपने चैनल को एनडीटीवी नहीं बना सके। एनडीटीवी प्रोपेगेंडा टूल था लेकिन वह इस काम को बहुत प्रोफेशनल तरीके से करता था। मोदी सरकार में प्रणय रॉय को कॉपी करने की कोशिश में लगे ये नए पत्रकार अपने चैनल को एनडीटीवी की एक सस्ती कॉपी कह सकते हैं। जहां शोर अधिक है और पत्रकारिता ‘गोल’ है।
ऐसा नहीं है कि प्रणय रॉय को कॉपी कर रहे पत्रकार कम जानकार हैं या उनमें हुनर की कोई कमी है। कमी है तो सिर्फ विचार को लेकर प्रतिबद्धता की। प्रणय के लिए उनका चैनल एक मिशन था। कॉपी कर रहे पत्रकार के लिए उनका चैनल एक कारोबार है। उनका किसी पार्टी या विचार से कोई लगाव नहीं। उनकी प्रतिबद्धता एक व्यक्ति के प्रति है।
एनडीटीवी ने पत्रकारिता और पत्रकारों पर बहुत निवेश किया। चैनल द्वारा तैयार डॉक्यूमेंट्री और दर्जनों रिपोर्ट आज भी देखी जा सकती है। उसके पीछे रिपोर्टर की मेहनत साफ दिखाई देती है। एनडीटीवी की सस्ती कॉपी वाले चैनल को प्रतिदिन एक नया वेंचर खोलने की जल्दी है। जो चल रहा है, वहां ढेर सारा शोर और रिपोर्ट के पीछे उससे अधिक सन्नाटा पसरा है। एनडीटीवी प्रोपेगेंडा कर रहा था लेकिन वह इस कला में निपुण था। उसकी इस कुशलता से मुकाबला करता हुआ कोई दूसरा भारतीय न्यूज चैनल खड़ा नहीं हो सका।
एनडीटीवी की सस्ती कॉपी वाले चैनल को देखकर ऐसा लगता है कि कोई नया नया पेंटर एक आर्ट गैलरी में रखे न्यूड पेंटिंग को देखकर ‘नंगई’ को ही कला समझ बैठा है।
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