पूज्य सद्गुरुदेव आशिषवचनम्
।। श्री: कृपा ।।
पूज्य “सद्गुरुदेव” जी ने कहा – भगवन्नाम स्मरण में अपार-ऊर्जा, अखण्ड-आनन्द और असीम-शान्ति समाहित है। अतः भगवदीय स्मृति सर्वथा श्रेयस्कर और कल्याणकारक है ..! नाम स्मरण से ही होगा – जीव का उद्धार। भगवान के नाम का जप सभी विकारों को मिटाकर दया, क्षमा, निष्कामता आदि दैवीय गुणों को प्रकट करता है। भगवन्नाम स्मरण से जापक में सौम्यता आने लगती है और उसका आत्मिक बल बढ़ता जाता है, चित्त पावन होने लगता है, रक्त के कण पवित्र होने लगते हैं एवं दुःख, चिंता, भय, शोक, रोग आदि निवृत होने लगते हैं। इससे सुख-समृद्धि और सफलता की प्राप्ति में मदद मिलने लगती है। भगवान के नाम का जाप ही संसार से मुक्ति का एक मात्र उपाय है। कलियुग में भगवन्नाम स्मरण की महिमा का विशेष महत्व है। नाम स्मरण कलि के पापों का नाश करनेवाला है। इससे श्रेष्ठ कोई अन्य उपाय सारे वेदों में भी देखने को नहीं आता। भगवन्नाम स्मरण के द्वारा षोडश कलाओं से आवृत्त जीव के आवरण नष्ट हो जाते हैं। तत्पश्चात जैसे बादल के छट जाने पर सूर्य की किरणें प्रकाशित हो उठती हैं, उसी तरह परब्रह्म का स्वरूप प्रकाशित हो जाता है। देवर्षि नारदजी के द्वारा नाम-मंत्र के जप की विधि पूछने पर श्रीब्रह्माजी बोले – इसके जप की कोई विशिष्ट विधि नहीं है। कोई पवित्र हो या अपवित्र, इस नाम-मंत्र का निरन्तर जप करने वाला मुक्ति को प्राप्त करता ही है …।
पूज्य “आचार्यश्री” जी ने कहा – वस्तु, पदार्थ और प्राप्त संग्रह की नश्वरता-क्षणभंगुरता और उनसे प्राप्त होने वाले सुख-दुःख का अनुभव जगत की अनित्यता और अस्थिरता का परिचय देते हैं। अतः अखण्ड-आनन्द; स्थायी प्रसन्नता, भगवद-भजन एवं अविनाशी स्वरूप के बोध में है। स्थायी प्रसन्नता ही सभी लक्ष्यों का परम लक्ष्य है और यह चेतनता की वह अवस्था है, जो आपके भीतर पहले से विद्यमान है। भगवन्नाम अनंत माधुर्य, ऐश्वर्य और सुख की खान है। स्वार्थ को छोड़कर दूसरे के हित के लिए चिंता करना ही भगवान को प्रेम में बांधने का उपाय है और यह तभी संभव है जब व्यक्ति संतों की संगति में रहे। सत्संग की बातें सुनने का यह असर होता है कि व्यक्ति का कुसंग कम हो जाता है। इस प्रकार दूसरों के प्रति ईर्ष्या व द्वेष भाव रखने के बजाए सभी के प्रति आत्मीयता रखें, क्योंकि यही सुखी जीवन का आधार है …।
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पूज्य “आचार्यश्री” जी ने कहा – इंसान कितना भी सुंदर क्यों ना हो परंतु उसकी परछाई हमेशा काली होती है। “मैं महान हूँ …” यह आत्मविश्वास है; लेकिन …, “सिर्फ मैं ही महान हूँ …” यह अहंकार है ! जीवन की वास्तविक सफलता तो तब है जब भीतर की सुंदरता को प्रखर किया जाए। और, भीतर की सुंदरता है अपने अंदर के चैतन्य तत्व को अनुभव करना क्योंकि यही वास्तविक ज्ञान है। किसी ने बिलकुल सही बात कही है कि मैं आपको इसलिए सलाह नहीं दे रहा हूँ कि मैं ज़्यादा समझदार हूँ, बल्कि इसलिए दे रहा हूँ कि मैंने ज़िंदगी में ग़लतियाँ आपसे ज़्यादा की है। दुनिया में छोड़ने जैसा यदि कुछ है तो, दूसरों को नीचा दिखाना छोड़ दें। पूज्य आचार्यश्री जी ने कलियुग में भगवान का नाम स्मरण करना कल्पवृक्ष के समान बताया उन्होंने कहा कि कलियुग में हरि-नाम के अतिरिक्त भव-बंधन से मुक्ति प्रदान करने वाला दूसरा कोई और साधन नहीं है …।
पूज्य “आचार्यश्री” जी ने कहा – इस भौतिक युग में जितना प्रभाव यंत्रशक्ति का है उस से भी कहीं ज्यादा प्रभाव और शक्ति मंत्र शक्ति की है और ये काम भी जल्दी करती है। मंत्र की शक्ति सूक्ष्म स्तर पर काम करती है और इसका परिणाम हमारे भौतिक स्तर पर भी दिखलाई देता है। वास्तव में मन्त्र साधना एक अलौकिक और दिव्य साधना है इस से हमारी सोयी हुई चेतन शक्ति, जो की हमारे अंदर ही विद्यमान है जाग जाती है और प्रतिदिन दिव्य अनुभूतियां अनुभूत होने लगती हैं। हमारे इस शरीर में बहुत सी चमत्कारी शक्तियां सुषुप्त अवस्था में क्रियाहिन ही पड़ी रहती हैं, लेकिन जो कोई भी मंत्र-जप साधना करके इनको जगाता है, उसके ज्ञान के प्रकाश से युग चमक जाता है। माता-पिता तो हमारे इस शरीर को जन्म देते हैं और ये शरीर उन्हीं के शरीर से बनता है। लेकिन अगर कोई सच्चे संत-सत्पुरुष मिल जायें तो वो हमारे अंदर की सोई हुई शक्तियों को जगा देते हैं। अगर साधक मंत्र जप का अनुष्ठान किसी सच्चे सद्गुरु के मार्गदर्शन में करे तो निश्चय ही साधक की अध्यात्मिक उन्नति में चार चाँद लग जाते हैं …।
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