पूज्य “सदगुरुदेव” जी ने कहा – भगवान के माधुर्य भाव को अभिव्यक्ति करने वाला, उनके दिव्य माधुर्य रस का आस्वादन कराने वाला सर्वोत्कृष्ट ग्रंथ श्रीमद्भागवत ही है। श्रीमद् भागवत कथा ईश्वर का साकार रूप है। श्रीमद् भागवत कथा श्रवण से जन्म जन्मांतर के विकार नष्ट होकर प्राणी मात्र का लौकिक व आध्यात्मिक विकास होता है। जहां अन्य युगों में धर्म लाभ एवं मोक्ष प्राप्ति के लिए कड़े प्रयास करने पडते हैं। कलियुग में कथा सुनने मात्र से व्यक्ति भवसागर से पार हो जाता है। सोया हुआ ज्ञान वैराग्य कथा श्रवण से जाग्रत हो जाता है। कथा कल्पवृक्ष के समान है, जिससे सभी इच्छाओं की पूर्ति की जा सकती है। श्रीमद भागवत ज्ञान का दीप है। भागवत कथा सुनने से धर्म एवं ज्ञान का मार्ग प्रशस्त होता है और मानव जीवन के पाप-दोषों का निवारण करता है। जिस प्रकार गंगा सभी को बगैर भेद भाव के मोक्ष देती है, उसी प्रकार भागवत महापुराण भी सभी के श्रवण करने का कल्याणकारी उपाय है। भागवत पुराण धर्म ग्रंथों का महासमुद्र है जिसमें सद्ज्ञान का अमृतरूपी अथाह ज्ञान भरा हुआ है। यही ज्ञान हमें हमारे पापों से दूर करके मोक्ष के मार्ग की ओर ले जाएगा….।
पूज्य “आचार्यश्री” जी ने कहा – भागवत कथा का अमृतपान करने से मनुष्य की आत्मा व मन पवित्र होते हैं। भागवत कथा से मन का शुद्धिकरण होता है, इससे संशय दूर होता है और शांति व मुक्ति मिलती है। भागवत कलयुग का अमृत और सभी दु:खों की औषधि है। भगवान के विभिन्न कथाओं का सार श्रीमद भागवत मोक्षदायिनी है। इनके श्रवण से परीक्षित को मोक्ष की प्राप्ति हुई और कलयुग में आज भी इसका प्रत्यक्ष प्रमाण देखने को मिलता है। श्रीमद् भागवत कथा सुनने से प्राणी को मुक्ति प्राप्त होती है। “पूज्यश्री” जी ने कहा – कलियुग में भागवत साक्षात श्रीहरि का रूप है। कथा श्रवण मात्र से पापों का हरण हो जाता है। भागवत कथा श्रवण से भगवान से निकटता बढ़ती है और मन का असंतोष कम होता है। पावन ह्रदय में इसका स्मरण करने पर करोड़ों पुण्यों का फल प्राप्त हो जाता है। इस कथा को सुनने के लिए देवी-देवता भी तरसते हैं। श्रीमद् भागवत कथा श्रवण मात्र से ही प्राणी का कल्याण संभव है…।
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पूज्य “आचार्यश्री” जी ने कहा – कथाओं की पिटारी है भागवत् यह ब्रह्म-गायित्री है। ये वेदों का सार है। यह स्वयम मंत्र है। इसमें अनेक आख्यान-उपाख्यान-व्याख्यान रूपक दृष्टान्त सिद्धांत है। यह एक मात्र औषधि है जो मन की मूढ़ता, चित्त का चांचल्या, बुद्धि के भ्रम, देह की जड़ता अथवा कोई जो हमारा प्रमाद है, उसके संमूलोच्छेदं के लिए, उसके उन्मूलन के लिये एक मात्र औषधि है। यह जो प्रकाशक है, तारक है। भागवत कथा ज्ञान का वह भण्डार है, जिसके वचन और सुनने से वातावरण में शुद्वता आती है। भागवत कथा का अमृतपान करने से मनुष्य की आत्मा व मन पवित्र होते हैं। भगवान श्रीकृष्ण की लीलाओं को जानकर सुख की अनुभूति होती है। कथा की सार्थकता तब ही सिद्व होती है। जब हम इसे अपने जीवन व्यवहार में धारण करें। मन के शुद्विकरण के साथ संशय दूर होता है और शान्ति व मुक्ति मिलती है…।
पूज्य “आचार्यश्री” जी ने कहा कि कथा जीवन के अनुपयोगी रसों को नियंत्रित करती है। आम आदमी के जीवन में कथा का अहम महत्व है। कथा व्यक्ति को अनुशासित करती है और अपने आप पर नियंत्रण पाने की कला सिखलाती है। जीवन को संतुलित व व्यवस्थित करना कथा है। ‘पूज्यश्री” जी ने कहा कि हम कथा में जिसकी चर्चा करते हैं, वह अनंत है। कथा का प्रत्येक संदर्भ नूतन व आनंददायक होता है। हरि कथा ही कथा बाकी सब व्यर्थ और व्यथा है। कथा जीवन के उस रस को जीवित करती है जो हमारे जीवन में नहीं है। जिस रस को हम बाहर ढूंढते हैं, वह श्रीमद् भागवत कथा के श्रवण मात्र से मिल जाता है। उन्होंने भक्तों को भी सीख दी कि कथा श्रवण के बाद हम भी ऐसे सात्विक हो जाएं कि हमारा जीवन एक कथा बन जाए
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