पूज्य सद्गुरुदेव आशिषवचनम्
।। श्री: कृपा ।।
पूज्य “सद्गुरुदेव” जी ने कहा – मानस दुर्बलता-आत्महीनता, स्वयं के प्रति अस्वीकृति जीवन से पलायन है। अतः अपनी निजता में लोटें; जहाँ अनन्त सामर्थ्य और अतुल्य तेज़ विद्यमान है…! कोई भी मनुष्य परिपूर्ण नहीं होता, इसलिए अपने भीतर छुपी अच्छाइयों को उजागर करें। हाँ, अपनी कमियों एवं गलतियों में सुधार व संशोधन अवश्य करें, लेकिन उन कमियों व गलतियों को अपने जीवन का केंद्र बिंदु न बनने दें। हर इंसान में कोई न कोई हुनर अवश्य होता है, यदि मनुष्य अपने भीतर छिपे हुए सद्गुणों को खोज कर अपने आत्मविश्वास को जगा ले तो उसे जीने में आनंद आने लगता है। आत्मविश्वास को जगाने, बढ़ने व बनाए रखने में ध्यान और योग का बड़ा महत्व है। इससे न केवल आत्मविश्वास का बल्कि सम्पूर्ण व्यक्तित्व का विकास होता है। इंसान इन्द्रियों और मन से मिलकर बना है, यदि यह दोनों ही वश में हो जाएं तो आत्मविश्वास क्या आत्मरूपांतरण तक हो सकता है। ध्यान और योग से मन शांत एवं एकाग्रचित होता है। जीवन में संतुष्टि का पर्दापर्ण होता है। भय साहस में बदलने लगता है, भटकाव स्थिरता में बदलने लगता है। ध्यान एवं योग को दिनचर्या में नियमित शामिल करें और अपने अंदर आत्मविश्वास को पैदा करें…।
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पूज्य “आचार्यश्री” जी कहा करते हैं कि जीवन विस्तार और फैलाव का नाम है, इसलिए जीवन को एक यात्रा कहते हैं क्योंकि इसी यात्रा में हम न केवल दूरी तय करते हैं बल्कि हमारा विकास भी होता है, इसलिए जो भी हमें जन्म के साथ मिला उसको बढ़ाना चाहिए, उसमें वृद्धि होनी चाहिए, तभी हममें आत्मविश्वास जागेगा। इंसान को चाहिए कि अपनी क्षमताएँ बढ़ाये। फिर वह धैर्य हो या किसी को माफ़ करना, सुनना हो अथवा सहन करना। सबको विस्तार दें, अपनी सोच को सीमित न रखें, परम्पराओं और अंधविश्वास में बंधकर न रहें। जीवन में बड़ा लक्ष्य बनायें, बिना लक्ष्य के जीना यानी वक्त, ऊर्जा और धन को व्यर्थ ही गंवाना है। बिना उद्देश के, नियम के जिन्दगी खाली एवं बोझिल लगने लगती है, जो आत्मविश्वास को खोखला कर देती है। इसलिए अपनी दिनचर्या को नियमबद्ध करें। अधिक से अधिक समय का सदुपयोग करें। जिन विषयों में आपकी रुचि हो उनसे सम्बंधित अनुभवी लोगों से बातचीत करें और अपने जानकारी के दायरे को विस्तार प्रदान करें। हो सके तो अपना कोई रोल मॉडल अवश्य चुनें, जो आपको समय-समय पर ऊर्जावान बनाने के साथ-साथ मार्गदर्शन भी प्रदान करे…।
पूज्य “आचार्यश्री” जी ने कहा – जब हम अग्नि के समक्ष बैठते हैं तो ताप की अनुभूति होती ही है, ठीक वैसे ही परमात्मा के समक्ष बैठने से उनका अनुग्रह भी मिलता ही है। प्रभु के समक्ष हमारे सारे दोष भस्म हो जाते हैं ध्यान साधना से सम्पूर्ण परिवर्तन आ सकता है। जब एक बार निश्चय कर लिया कि मुझे परमात्मा के अतिरिक्त अन्य कुछ भी नहीं चाहिए तो भगवान आ ही जाते है, यह आश्वासन शास्त्रों में भगवान ने स्वयं ही दिया है। जब ह्रदय में अहैतुकी परम प्रेम और निष्ठा होती है तब भगवान मार्गदर्शन भी स्वयं ही करते हैं। उनकी उपस्थिति के सूर्य को अपने भीतर चमकने दो। जब उनकी उपस्थिति के प्रकाश से ह्रदय पुष्प की भक्ति रूपी पंखुड़ियाँ खिलेंगी तो उसकी महक अपने ह्रदय से सर्वत्र फ़ैल जायेगी। हे प्रभु ! यह मेरापन, सारी वासनाएँ और सम्पूर्ण अस्तित्व आपको समर्पित है। जल की यह बूँद आपके महासागर में समर्पित है जो आपके साथ एक है, अब कोई भेद ना रहे। परमात्मा एक प्रवाह है, उसे स्वयं के माध्यम से प्रवाहित होने दें। कोई अवरोध मत खड़ा करें। फिर आप पाएँगे कि वह प्रवाह हम स्वयं हैं….।
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