डिजिटल डाटा संरक्षण कानून: आम नागरिक और पत्रकारों की अभिव्यक्ति पर मंडराता खतरा

नई दिल्ली, 21 अप्रैल: केंद्र सरकार द्वारा लाया गया ‘डिजिटल पर्सनल डाटा प्रोटेक्शन (DPDP) एक्ट’ अब नागरिकों की निजता की रक्षा से ज़्यादा, उनकी जानकारी पाने के अधिकार और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के लिए एक चुनौती बनता जा रहा है। इसी विषय पर प्रेस क्लब ऑफ इंडियाइंडियन वूमेन प्रेस कोरएडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया और दिल्ली यूनियन जर्नलिस्ट्स के संयुक्त तत्वावधान में राजधानी दिल्ली में एक विचार-मंथन मीटिंग का आयोजन हुआ।
इस मीटिंग में पत्रकारों, सामाजिक कार्यकर्ताओं और लोकतंत्र की रक्षा के लिए काम कर रहे संगठनों ने गहरी चिंता जताई। उनका कहना है कि नया डाटा संरक्षण कानून पत्रकारों के लिए सूचना इकट्ठा करने के अधिकार पर सीधा प्रहार करता है। आरटीआई के ज़रिए सूचना मांगना तो पहले से ही मुश्किल था, लेकिन इस नए कानून के आने के बाद यह लगभग असंभव बना दिया गया है। सबसे बड़ी चिंता यह है कि अगर कोई पत्रकार या नागरिक कोई ऐसी जानकारी उजागर करता है जिससे सरकार असहमत हो, तो उस पर 500 करोड़ रुपए तक का जुर्माना लगाया जा सकता है। यह किसी भी लोकतांत्रिक समाज में सूचना और विचारों की आज़ादी को धमकाने जैसा कदम है।
डिजिटल पर्सनल डाटा प्रोटेक्शन एक्ट (DPDP), 2023 में दावा किया गया था कि यह नागरिकों के निजी डाटा की सुरक्षा के लिए बनाया गया है। लेकिन अब केंद्र सरकार इसके नए ड्राफ्ट में संशोधन लेकर आई है, जिसमें डाटा के इस्तेमाल को लेकर नियम इतने कठोर बना दिए गए हैं कि सरकारी सूचना तक पहुंचना बेहद कठिन हो जाएगा। इस कानून के तहत अब कोई भी व्यक्ति या संस्था किसी व्यक्ति की जानकारी तभी इकट्ठा कर सकती है जब उसे पहले से अनुमति मिली हो। इसका असर पत्रकारों की रिपोर्टिंग पर सीधा पड़ेगा, क्योंकि वे कई बार ज़मीनी हकीकत जानने के लिए गोपनीय स्रोतों या सरकारी अभिलेखों का सहारा लेते हैं।
मीटिंग में वक्ताओं ने स्पष्ट रूप से कहा कि यह कानून सत्ता के खिलाफ सवाल उठाने वालों की आवाज़ दबाने का एक औज़ार बन सकता है। इस कानून की आड़ में सरकार उन सूचनाओं को भी छिपा सकती है जो जनहित से जुड़ी होती हैं।  पत्रकारों ने मांग की कि विपक्षी दलों को इस मुद्दे को संसद में ज़ोरदार ढंग से उठाना चाहिए, और जनता को भी समझना होगा कि यह सिर्फ पत्रकारों का मुद्दा नहीं है, बल्कि यह हर उस व्यक्ति का मामला है जो सच जानना चाहता है।
मीटिंग में यह सुझाव भी रखा गया कि इस कानून में स्पष्ट अपवाद जोड़े जाएं जिनके तहत जनहित में सूचनाएं उजागर करने वालों को संरक्षण मिले। साथ ही, 500 करोड़ रुपए के भारी-भरकम जुर्माने को गैर-आवश्यक बताया गया, जिसे हटाया जाना चाहिए। वक्ताओं ने यह भी मांग की कि सरकार ड्राफ्ट पर जनता की राय लेने के लिए वास्तविक जन संवाद करे, न कि औपचारिकता निभाकर कानून पारित कर दे।
डिजिटल डाटा संरक्षण कानून का उद्देश्य यदि वाकई नागरिकों की निजता की रक्षा है, तो इसे पत्रकारिता और नागरिक स्वतंत्रता के खिलाफ नहीं होना चाहिए। लेकिन वर्तमान रूप में यह कानून न सिर्फ सूचना का अधिकार सीमित करता है, बल्कि जनता की आवाज़ और लोकतंत्र के चौथे स्तंभ यानी मीडिया पर अनावश्यक बंदिश भी लगाता है। इसलिए समय की मांग है कि कानून में आवश्यक सुधार हों, ताकि यह नागरिक हित और राष्ट्रीय सुरक्षा दोनों के बीच संतुलन बनाए रख सके।

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