कन्या का पूजन करने से सभी प्रकार के दुख, दरिद्र और समस्याएं दूर हो जाती है- आचार्य राहुल कृष्ण जी शास्त्री
इंदौर, फरवरी 2020: जिसके समान कोई नहीं हो, जो सबसे विलक्षण हो, उसे कन्या कहते हैं और कन्या का पूजन करने से सभी प्रकार के दुख, दरिद्र और समस्याएं दूर हो जाती है। इसीलिए हमारे धर्म में कन्या पूजन की परंपरा है और हम कन्या को देवी मानते हैं। मातृशक्ति का महत्व समझाते हुए श्री पितरेश्वर हनुमान मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा समारोह में चल रही श्रीमद्भागवत कथा के पांचवे दिन कथा में आचार्य राहुल कृष्ण जी शास्त्री ने कहा कि जीवन में धर्म अति आवश्यक हैं। यदि धर्म ना हो तो मनुष्य पशुवत हो जाता है । धर्म, भगवान के ह्रदय से उत्पन्न हुआ है और उनकी पीठ से अधर्म। दोनों ही समाप्त नहीं हो सकते क्योकि ईश्वर से उत्पन्न हुए है। अधर्म के बढ़ने पर धर्म की स्थापना के लिए स्वयं ईश्वर आते हैं ।
ईश्वर अपने साथ माया को भी लाते हैं, जो सुख देने वाली है परंतु हम माया के बंधन में बंध कर ईश्वर को भूल जाते हैं । माया बांधती है और ईश्वर मुक्त कर देते है। हम माया के वशीभूत होकर जब यह मानने लगते हैं कि हम कर्ता है , जो हो रहा है वो हम कर रहे हैं तो जीवन में उलझन होती है। क्योंकि जब कर्ता हम हैं तो अच्छे बुरे का फल भी हमें ही लेना होगा।
भगवान, बुद्धि का विषय नहीं है, तर्क का विषय भी नहीं है, मन का विषय भी नहीं है, भगवान केवल अनुभव का विषय है। भगवान का नाम भगवान से भी ज्यादा महत्व रखता है। भगवान का दर्शन तो बड़ी तपस्या और साधना के बाद होता है परंतु भगवान का नाम सबके लिए सुलभ है, सहज है और सभी के पास रहता है। भगवान का नाम तारने वाला है। कथा में विधायक रमेश मेंदोला, आनंद चंदू राव शिंदे, महेश दलोद्रा, दिनेश शर्मा, महामंडलेश्वर स्वामी श्री बालकदास जी, जीतू जिराती जी आदि उपस्थित थे।
आचार्य शास्त्री जी ने कहा कि हम अपने जीवन को संस्कारों के साथ जीते है। यह हमारी संस्कृति की विशेषता है। परंतु पाश्चात्य संस्कृति से प्रभावित होकर हम अपने संस्कारों से विरत हो रहे हैं, इससे समाज में विषमता उत्पन्न हो रही है । जो गाय का अनादर करते हैं, अपने से बड़ों का अनादर करते हैं, महापुरुषों का अनादर करते हैं, जो संत महात्माओं का अनादर करते हैं , उनकी आयु लक्ष्मी, धर्म, कीर्ति, पुण्य, लोक- परलोक, योग- भोग के साधन सभी कुछ नष्ट हो जाता है।
इसी प्रसंग में राजा परीक्षित की कथा सुनाते हुए आचार्य जी ने स्पष्ट किया कि गौ माता की सेवा से यह पाप भी धूल सकता है क्योंकि गौ माता की कृपा से ही भागवत प्रकट हुई है। आपने भागवत जी की कथा सुनाते हुए सरल शब्दों में स्पष्ट किया की सत्य से , मन के विग्रह से, इंद्रियों के दमन से ,श्रद्धा- दया -तितिक्षा और यज्ञ से भगवान की प्राप्ति होती है । यह भगवान के रूप है। जैसे वस्तुओं की शुद्धि प्रक्षालन से होती है ,ब्राह्मण की शुद्धि यज्ञ से होती है ,इंद्रियों की शुद्धि तपस्या से और मन की शुद्धि संतोष से होती है वैसे ही आत्मा की शुद्धि के लिए आत्मज्ञान की आवश्यकता होती है। कथा के पांचवे दिन भी यहां भक्तों का मेला सा लगा हुआ है । केवल इंदौर ही नहीं बल्कि आसपास के शहरों और ग्रामीण क्षेत्रों से भी लोग सपरिवार कथा का पुण्य लाभ लेने पितृ पर्वत पर आ रहे हैं ।
19 दिवसीय इस विशाल आयोजन में आगे अतिरुद्र यज्ञ और नगर भोज का आयोजन भी होगा।
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