रोज़ सड़क किनारे बैठी एक बूढी महिला लोगों के आगे अपना हाथ फैलाती है और जीने के लिए कुछ रोटी का इंतजाम हो जाये इसलिए पैसे इक्कठा करती है l यह वो है जो अपने बच्चो को अपना जीवन मानती थी, उनको अपना पूरा जीवन दे दिया, उनमे अपने जीवन की सारी कमाई लगा दी , उनको काबिल बनाने मे अपनी पूरी क़ाबलियत लगा दी , अपने सपनों को भूल उनका सपना पूरा करने मे लगी रही, अपने अरमानो का गला घोट दिया उनके अरमानों को पूरा करने मे l और वो आज इसकों इसके हालात पर छोड़ चले गए, वो सपने पूरे करने जो सपना कभी इसका भी था l
जब उसके करीब जा कर उसकी आँखों मे देखा तो ऐसे ना जाने कितने सवाल उसकी आँखों मै दफन थे l मानों वो पूछ रही थी की मेरी क्या गलती है ? उसकी यह वीरान और नम आँखे किसी अपने को खोज रही थी , की काश कोई अब मुझे भी सहारा देता की मैं अब थक गई हु , मानों उसकी नम आंखे अपने औलादों के लिए और अपने औलादों की क्रूरता पर हमेशा नम रहती है , ना वो आंसू बहा पाती और नहीं वो आंसू पी पाती बस नम रहती है , और इन आँखों मे वीरानिया भी है और सवाल भी की क्या कोई कभी मेरी वीरानिया दूर कर मुझे साहारा देगा l ऐसे ही किसी अपने को खोजती वो बूढी आंखे रोज़ सुबह से शाम तक ऐसे किसी का इंतज़ार कर घर चली जाती है l
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