न्यूज़ डेस्क : तुर्की वैसे तो एक बहुत ही खूबसूरत देश है, जो यूरेशिया में स्थित है। दरअसल, यूरेशिया एक भौगोलिक भूखंड है, जो यूरोप और एशिया महाद्वीप को मिलाकर बना है। इस देश का कुछ भाग यूरोप में और अधिकांश भाग एशिया में पड़ता है। इसीलिए इसे यूरोप और एशिया के बीच का ‘पुल’ भी कहा जाता है। क्या आप जानते हैं कि तुर्की को ‘यूरोप का रोगी’ या ‘यूरोप का मरीज’ भी कहा जाता है? जी हां, इसके पीछे एक बड़ा ही रोचक इतिहास है। तो चलिए पलटते हैं इतिहास के उन पन्नों को, जिससे हमें ये पता चल सके कि आखिर तुर्की को ऐसा अजीबोगरीब नाम क्यों मिला।
तुर्की का इतिहास तो काफी पुराना है। ईसा से पूर्व यूनानियों का बसाव और फिर स्थानांतरण और ईसा के बाद सन् 800-1400 तक तुर्क जाति का प्रादुर्भाव तुर्की के इतिहास की प्रमुख लिखित घटना है। माना जाता है कि 1200 ईसा पूर्व के आसपास होमर के ओडिसी में वर्णित ‘ट्रॉय की लड़ाई’ भी तुर्की के पश्चिमी तट पर ट्रॉय के वासियों और यूनानी द्वीपों पर बसे साम्राज्यों के बीच हुई थी।
पूर्व में तुर्की कई साम्राज्यों के आधीन रहा है। 530 ईसा पूर्व में यह ईरान के फारसी साम्राज्य का हिस्सा बना था और कई सालों तक यह यूनानियों द्वारा संघर्ष के कारण ग्रीक और ईरानी साम्राज्यों में बंटा रहा। 330 ईसा पूर्व में फिर तुर्की सिकंदर महान के यूनानी (मेसीडोनी) साम्राज्य के अंदर अंतर्गत आ गया और फिर बाद में यह रोमन साम्राज्य और सासानी साम्राज्य का भी हिस्सा बना। सासानी साम्राज्य के अंत (635 ईस्वी) के बाद यहां इस्लाम का प्रचार हुआ और फिर औगुज, सल्जूक और उस्मानी तुर्क सुन्नी इस्लाम में परिवर्तित हो गए।
16वीं शताब्दी के आते-आते तुर्क या ऑटोमन साम्राज्य (उस्मानी साम्राज्य) ने पूरे तुर्की पर अपना कब्जा जमा लिया था। 18वीं शताब्दी तक तो यह साम्राज्य अति विशाल था और शक्तिशाली बना रहा, लेकिन बाद में तुर्की सुल्तानों की विलासी प्रवृति और लोगों पर अत्याचार ही इस विशाल साम्राज्य के पतन का कारण भी बन गया।
ऑटोमन सुल्तानों का अत्याचार तुर्की पर इतना बढ़ गया कि यहां रहने वाले लोग धीरे-धीरे अपनी स्वतंत्रता के लिए आंदोलन करने लगे। इससे ऑटोमन साम्राज्य कमजोर पड़ने लगा। 19वीं सदी में इस साम्राज्य के पतन की प्रक्रिया लगातार बढ़ती रही और फिर धीरे-धीरे तुर्की की हालत इतनी खराब हो गई कि इसे ‘यूरोप का मरीज’ कहा जाने लगा।
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