ट्रंप ने क्यों पीछे हटे, और क्यों अब अमेरिकी टैरिफ हमला केवल चीन पर केंद्रित है

डोनाल्ड ट्रंप ने अपने राष्ट्रपति कार्यकाल में अमेरिकी व्यापार नीति को नए सिरे से परिभाषित करने की कोशिश की। उन्होंने कई देशों पर टैरिफ लगाकर “अमेरिका फर्स्ट” नीति को आगे बढ़ाया, लेकिन बाद में उन्होंने कनाडा और मेक्सिको के मामले में नरमी दिखाई। वहीं, चीन के खिलाफ उनका रवैया लगातार सख्त रहा। आखिर ट्रंप ने बाकी देशों के लिए रुख क्यों बदला और चीन को ही निशाना क्यों बनाया? आइए विस्तार से समझते हैं।

ट्रंप की टैरिफ नीति में बदलाव

अपने शुरुआती दिनों में ट्रंप ने एल्यूमीनियम और स्टील जैसे उत्पादों पर वैश्विक टैरिफ लगाने की घोषणा की थी, जिससे कनाडा, मेक्सिको, और यूरोपीय संघ जैसे अमेरिकी सहयोगी देशों में चिंता की लहर दौड़ गई। हालांकि राजनीतिक दबाव और कूटनीतिक बातचीत के बाद ट्रंप ने कनाडा और मेक्सिको पर लगे टैरिफ को हटाने का फैसला किया। इसका उद्देश्य अमेरिका-मेक्सिको-कनाडा समझौते (USMCA) को सुचारू रूप से लागू करना था।

चीन पर क्यों बनी रही सख्ती

ट्रंप प्रशासन ने चीन पर लगाए गए टैरिफ में कोई ढील नहीं दी। इसके कई कारण थे:

  1. बौद्धिक संपदा की चोरी – अमेरिका का आरोप था कि चीन अमेरिकी कंपनियों की तकनीकी जानकारी चोरी करता है।

  2. अनुचित व्यापार व्यवहार – चीन पर यह भी आरोप था कि वह अपनी कंपनियों को सब्सिडी देकर वैश्विक प्रतिस्पर्धा को प्रभावित करता है।

  3. व्यापार घाटा – अमेरिका और चीन के बीच भारी व्यापार घाटे को कम करने के लिए ट्रंप ने टैरिफ को एक हथियार के रूप में इस्तेमाल किया।

इन कारणों से अमेरिका ने चीन से आयातित लगभग $200 अरब मूल्य के सामानों पर टैरिफ 10% से बढ़ाकर 25% तक कर दिए।

ट्रंप ने क्यों दिखाया नरमी?

कनाडा और मेक्सिको जैसे देशों के साथ व्यापारिक संबंध अमेरिका की सप्लाई चेन के लिए अत्यंत आवश्यक हैं। इन पर ज्यादा दबाव डालने से अमेरिकी उत्पादन और उपभोक्ताओं पर विपरीत प्रभाव पड़ सकता था। इसलिए ट्रंप ने इन देशों के साथ समझौता कर टैरिफ हटा दिए, लेकिन चीन के साथ स्थिति जटिल बनी रही।

चीन की प्रतिक्रिया

चीन ने भी जवाबी टैरिफ लगाकर अमेरिका के कृषि उत्पादों, विशेष रूप से सोयाबीन पर शुल्क बढ़ा दिया। इससे अमेरिकी किसानों को काफी नुकसान हुआ और घरेलू स्तर पर ट्रंप को आलोचना का सामना करना पड़ा। इसके बावजूद उन्होंने चीन के साथ कड़ा रुख बनाए रखा, यह दिखाने के लिए कि वे राष्ट्रीय हितों से समझौता नहीं करेंगे।

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