जब इस्त्रायली ने एक झटके में मिस्र के 286 विमान नष्ट कर दिए , बहुत रोचक है कहानी

इस लड़ाई की शुरुआत हुई थी पांच जून, 1967 को. इस्त्रायली समय के अनुसार सुबह सात बज कर 10 मिनट पर 

जब इस्त्रायल का हमला हुआ तो मिस्र के लगभग सभी विमान जमीन पर थे और उनके पायलट नाश्ता कर रहे थे 

इस हमले में इस्त्रायल ने अपनी वायुसेना के 12 विमानों को छोड़ कर सभी विमानों को झोंक दिया था 

मिस्र के कुल 420 लड़ाकू विमानों में से 286 विमान नष्ट कर दिए गए थे

 

न्यूज़ डेस्क : इस लड़ाई की शुरुआत हुई थी पांच जून, 1967 को। इस्त्रायली समय के अनुसार सुबह सात बज कर 10 मिनट पर। फ्रांस में 50 के दशक मे बने रॉकेटों से लैस 16 मैजिस्टर फाउगा प्रशिक्षण विमानों ने हैटजोर हवाई ठिकाने से टेकऑफ किया। ये फाउगा विमान मिस्टियर और मिराज जेटों द्वारा इस्तेमाल की जाने वाली फ्रीक्वेंसियां ट्रांसमिट कर रहे थे और ये आभास दे रहे थे कि वो मिस्टियर और मिराज विमानों की तरह हवाई गश्त की ड्यूटी पर हैं। 

 

चार मिनट बाद असली बमवर्षक औरेगन ने हैटजोर हवाई ठिकाने से उड़ान भरी। इसके पांच मिनट बाद रमाट डेविड ठिकाने से मिराज युद्धक विमानों के पूरे स्क्वाड्रन और हात्जेरिम एयर बेस से दो इंजनों वाले 15 वाटूर्स विमानों ने उड़ान भरी। साढ़े सात बजते-बजते इस्त्रायली वायु सेना के 200 विमान हवा में थे। 

 

इससे पहले इस्त्रायली वायुसेना के कमांडर मोट्टी हॉड का रेडियो संदेश सभी पायलटों के हेडफोन पर सुनाई दिया था, ‘उड़िए, दुश्मन पर छा जाइए, उसे बर्बाद कर उसके टुकड़ों को पूरे रेगिस्तान में फैला दीजिए ताकि आने वाली कई पीढ़ियों तक इसराइल अपनी भूमि पर सुरक्षित रह सके।’ 

 

धरती से सिर्फ 15 मीटर ऊपर उड़ान : 1967 के युद्ध पर मशहूर किताब ‘सिक्स डेज ऑफ वॉर’ लिखने वाले माइकल बी ओरेन लिखते हैं, ‘ये सारे विमान धरती से सिर्फ 15 मीटर ऊपर उड़ रहे थे ताकि मिस्र के 82 रडार केंद्र इन विमानों के रास्ते का पता न लगा सकें। इनमें से अधिकतर विमान पहले पश्चिम की तरफ भूमध्यसागर की तरफ गए। वहां से उन्होंने यू टर्न लिया और मिस्र की तरफ मुड़ गए। दूसरे विमानों ने लाल सागर की तरफ से मिस्र के बहुत अंदर बने हवाई ठिकानों का रुख किया। सारे विमान बहुत कड़ाई से रेडियों ‘साइलेंस’ का पालन कर रहे थे। साथ-साथ उड़ रहे पायलट हाथ के इशारे से एक दूसरे से संपर्क कर रहे थे। सारा खेल ही यही था कि मिस्र के तट पर पहुंचने से पहले उन्हें इसकी हवा तक न लग पाए।’ 

 

इससे पहले इस्त्रायली वायु सेना के चीफ ऑफ ऑपरेशन कर्नल रफा हारलेव ने सभी पायलटों से कह दिया था कि उन्हें विमान में तकनीकी खराबी आ जाने के बाद भी रेडियो संपर्क स्थापित नहीं करना है। ऐसी दशा में उन्हें अपने विमान को समुद्र में क्रैश कर देना होगा। 

 

मंत्रियों तक को खुफिया अभ्यास की हवा नहीं : ये सभी इस्त्रायली पायलट मिस्र के पायलटों की तुलना में कहीं अधिक प्रशिक्षित थे। उनके ‘फ्लाइंग आवर्स’ भी उनसे ज्यादा थे और सबसे बड़ी बात उनके करीब-करीब सभी 250 विमान पूरी तरह से ऑपरेशनल थे। उन्होंने मिस्र के हवाई ठिकानों को उड़ाने का कई बार ‘मॉक’ अभ्यास किया था। इस अभ्यास को इतना खुफिया रखा गया था कि इस्त्रायल के कुछ मंत्रियों को छोड़ कर अधिकतर मंत्रियों को इसकी भनक तक नहीं थी। 

 

जर्मनी में पैदा हुए इस्त्रायली जासूस वॉल्फगैंग लॉट्ज ने अपने आप को पूर्व एसएस अफसर बताते हुए मिस्र की सेना के बड़े अधिकारियों से दोस्ती कर ली थी। वर्ष 1964 में अपने पकड़े जाने से पहले उन्होंने मिस्र की कई खुफिया खबरें इस्त्रायल तक पहुंचा दी थीं। इस्त्रायल को और भी खुफिया सूचनाएं अपने दूसरे जासूसों से मिली थीं। उनमें से एक था अली अल-अल्फी नाम का शख्स, जो राष्ट्रपति नासेर की मालिश किया करता था। मिस्री वायुसेना की सबसे बड़ी गलती थी कि उन्होंने अपने युद्धक विमानों को छिपाने की कोई कोशिश नहीं की थी। 

 

इस्त्रायल का सबसे बड़ा दुश्मन था यह शख्स, मौत की गुत्थी आज भी है अनसुलझी : एहूद याने अपनी किताब ‘नो मार्जिन्स फॉर एरर द : मेकिंग ऑफ द इस्त्रायल एयरफोर्स’ में लिखते हैं, ‘मिस्र ने अपने सारे विमानों को उनके ‘मेक’ के हिसाब से तैनात कर रखा था। मिग, इल्यूशन और टुपोलेव विमानों के अलग-अलग ठिकाने थे। हालांकि उनकी वायुसेना ने उनके लिए कंक्रीट ‘हैंगर्स’ बनाने के प्रस्ताव भेजे थे, लेकिन एक भी हैंगर बन कर तैयार नहीं हुआ था। मिस्र के सारे जहाज खुले आसमान के नीचे खड़े थे और उनके आसपास सैंडबैग तक की व्यवस्था नहीं की गई थी। इस्त्रायल के एयरफोर्स कमांडर मोट्टी हॉड कहा करते थे, आसमान में युद्धक विमान से खतरनाक कोई चीज नहीं है, लेकिन जमीन पर वो अपनी रक्षा करने में जरा भी सक्षम नहीं हैं।’ 

 

 

हमले के समय मिस्र के पायलट कर रहे थे नाश्ता : जब इस्त्रायल का हमला हुआ तो मिस्र के लगभग सभी विमान जमीन पर थे और उनके पायलट नाश्ता कर रहे थे। वो ये मान कर चल रहे ते कि अगर इस्त्रायली हमला भी करेंगे तो सुबह तड़के करेंगे। इसलिए उनके सारे विमान गश्त लगा कर मिस्र के समय के अनुसार आठ बज कर 15 मिनट तक अपने ठिकानों पर लौट आए थे। 

 

 

इस्त्रायल में उस समय सुबह के सात बज कर 15 मिनट हो रहे थे। माएकल बी ओरेन अपनी किताब ‘सिक्स डेज ऑफ वॉर’ में लिखते हैं, ‘उस समय सिर्फ चार ट्रेनी पायलट हवा में थे और उनके पास कोई आक्रामक क्षमता नहीं थी। उसी समय अल- माजा बेस से दो इल्यूशन – 14 ट्रांसपोर्ट विमानों ने उड़ान भरी। एक विमान में सवार थे फील्ड मार्शल अमेर और एयर कमांडर सिदकी महमूद। ‘दूसरे विमान में आंतरिक खुफिया विभाग के प्रमुख हुसैन -अल-शफी, इराकी प्रधानमंत्री और एक वरिष्ठ सोवियत सलाहकार अबू-सुवैर हवाई ठिकाने की तरफ बढ़ रहे थे। मिस्र के सारे एयर कमांडर या तो उन दो विमानों में बैठे हुए थे या उनमें बैठे लोगों का नीचे उतरने का इंतजार कर रहे थे। इन इल्यूशन विमानों को अपने रडार पर देख कर इस्त्रायली थोड़े चिंतित भी हुए कि वो उनके बढ़ते हुए विमानों को देख लेंगे।’ 

 

 

हमले की पहली चेतावनी जॉर्डन के ‘अजलुन’ रडार सेंटर से : स्त्रायल के बढ़ते विमानों के बारे में पहली चेतावनी इन इल्यूशन विमानों ने नहीं बल्कि ब्रिटेन द्वारा जॉर्डन को दिए गए ‘अजलुन’ रडार सिस्टम से आई। सवा आठ बजे स्टेशन के रडार की स्क्रीनों पर बार-बार ‘ब्लिप्स’ आने लगे। हालांकि जॉर्डन की वायुसेना समुद्र की तरफ बड़ी संख्या में इसराइली विमानों के आने-जाने की आदी हो गई थी, लेकिन इस बार उनके जमावड़े का घनत्व पहले से कहीं अधिक था। 

 

ड्यूटी पर तैनात अफसर ने अम्मान में जनरल रियाद के मुख्यालय पर पहले से तय कोडवर्ड ‘इनाब’ भेजा जिसका मतलब था युद्ध। उन्होंने ये महत्वपूर्ण सूचना काहिरा में मिस्र के रक्षा मंत्री शम्स बदरान को बढ़ा दी, लेकिन उनके छोर पर इस महत्वपूर्ण ‘टिप ऑफ’ को ‘डिसाइफर’ नहीं किया जा सका। मिस्र ने एक दिन पहले ही जॉर्डन को बताए बिना अपनी ‘इनकोडिंग फ्रीक्वेंसीज’ को बदल दिया था। 

 

‘अजलुन’ पर बैठे विशेषज्ञ इस बात का अंदाजा ही नहीं लगा पाए कि उनके रडार पर आने वाले ‘ब्लिप्स’ इस्त्रायली युद्ध विमानों के थे या समुद्र में मौजूद अमेरिकी या ब्रिटिश विमानवाहक से उड़ने वाले विमानों के। अचानक उनके रडार के स्क्रीन पर दिखाई दिया कि इन विमानों ने साइनाई का रुख कर लिया है। उन्होंने कोडवर्ड के जरिए मिस्र को आगाह करने की बहुतेरी कोशिश की, लेकिन मिस्र में इस कोडवर्ड को पढ़ा ही नहीं जा सका। 

 

इस्त्रायल ने हमले में अपनी पूरी वायुसेना झोंकी : लेकिन अगर ये संदेश पढ़ भी लिए गए होते तब भी इस पर तुरंत कारवाई करने के लिए रक्षा मंत्री शम्स बदरान वहां मौजूद नहीं थे। कुछ ही घंटे पहले वो ये निर्देश दे कर सोने चले गए थे कि उन्हें जगाया न जाए। इसी तरह डिकोडिंग के इंचार्ज कर्नल मसूद-अल जुनैदी और एयर ऑपरेशन के प्रमुख जनरल जमाल अफीफी भी वहां मौजूद नहीं थे। 

 

दुनिया की सबसे खतरनाक खुफिया एजेंसी, ‘नामुमकिन’ ऑपरेशन को भी दिए हैं अंजाम : महमूद रियाद अपनी किताब ‘द स्ट्रगल फॉर पीस इन मिडिल ईस्ट’ में लिखते हैं, ‘वायुसेना के खुफिया विभाग ने कई बार इस्त्रायल के हमले के बारे में आगाह किया था, लेकिन सुप्रीम हेडक्वार्टर पर तैनात फील्ड मार्शल अमेर के प्रति वफादारी और नासेर के प्रति अविश्वास रखने वाले अफसरों ने इस लीड की अनदेखी की।’

 

इस्त्रायलियों के लिए ये मिनट बहुमूल्य साबित हुए। इस हमले में इस्त्रायल ने अपनी वायुसेना के 12 विमानों को छोड़ कर सभी विमानों को झोंक दिया था। दूसरे शब्दों में उन्होंने देश के आसमान के रक्षण को खुदा के हवाले छोड़ रखा था। बाद में इस्त्रायल के प्रधानमंत्री बने यित्जाक राबिन ने एक इंटरव्यू में बताया था- हम इस हमले की सफलता के बारे में पूरी तरह से आश्वस्त नहीं थे। हमने इस हमले की असफलता की संभावना को देखते हुए दुश्मन के हवाई ठिकानों पर हमला करने की एक और योजना बना रखी थी। इस्त्रायली वायुसेना के मुख्यालय पर मैं, मोशे दायान, वीजमान और इस्त्रायली वायुसेना के कमांडर मोट्टी हॉड हमले के परिणाम का इंतजार कर रहे थे। हमें पहले 45 मिनट एक पूरे दिन की तरह लग रहे थे। 

 

 

इस्त्रायली विमानों ने चार की फॉर्मेशन में हमला किया : अब तक इस्त्रायल के आगे उड़ने वाले विमान समुद्र पार कर चुके थे। उन्होंने इलेक्ट्रॉनिक जैमिंग तकनीक का इस्तेमाल कर सोवियत विमानों को अपने हमले की भनक नहीं लगने दी थी। इस्त्रायली वायुसेना के प्रमुख मोट्टी हॉड इस्त्रायल डिफेंस रिपोर्ट में लिखते हैं, ‘इस्त्रायली समय के अनुसार साढ़े सात बजे उन्हें अपना पहला लक्ष्य दिखाई दे गया था। फायद और किबरीत हवाई ठिकानों के बारें में मिस्र के खुफिया विभाग को गलतफहमी थी कि ये ठिकाना इस्त्रायली विमानों की पहुंच के बाहर है। मिस्र के सारे जेट खुले में अर्धगोलाकार शेप में खड़े हुए थे। बहुत से हवाई ठिकानों पर सिर्फ एक हवाई पट्टी थी। हमें इन्हें सिर्फ ब्लॉक भर करना था। इसके बाद वहां मौजूद विमानों के लिए कोई मौका नहीं था।’ 

 

आसमान में ‘विजिबिलिटी’ बेहतरीन थी। इस्त्रायली जेट एकदम से 9000 फीट की ऊंचाई पर चले गए और मिस्र के रडारों पर पहली बार उनकी झलक दिखाई दी। उन्होंने नीचे डाइव लगाई। वो चार का ‘फॉर्मेशन’ बनाते हुए नीचे आए और दो विमानों ने जोड़ा बना कर हमला किया। हर विमान ने तीन चक्कर लगाए। उनकी पहली प्राथमिकता थी रनवे को नष्ट करना, फिर लंबी दूरी के विमानों को बर्बाद करना, जिनसे इस्त्रायली शहरों को खतरा हो सकता था और फिर अंतिम लक्ष्य था मिग विमानों को उड़ने लायक न रखना। 

 

 

हर चक्कर के लिए सात से दस मिनट दिए गए थे। वापसी के लिए 20 मिनट, विमान में दोबारा तेल भरने के लिए आठ मिनट और पायलट के आराम के लिए 10 मिनट निर्धारित किए गए थे। एक घंटे के अंदर विमान दोबारा हमला करने के लिए तैयार हो जाते थे। उस घंटे के दौरान मिस्र के हवाई ठिकानों पर लगातार हमले हो रहे थे। 

 

फ्रांस की मदद से तैयार किए गए डुरेंडल्स बमों का इस्तेमाल : फैद एयरबेस पर मिस्टियर्स विमानों से हमला करने वाले कैप्टेन अवीहू बिन नून ने याद किया, ‘जब हम अपने लक्ष्य पर पहुंचे तो आसमान साफ हो चुका था। जब मैं डाइव करके बम गिराने वाला था तो मैंने देखा के रनवे के एक छोर पर चार मिग टेकऑफ करने की तैयारी कर रहे थे। मैंने उनके ऊपर ही अपने बम रिलीज कर दिए, जिसका नतीजा ये हुआ कि उनमें से दो विमान तो फौरन ही लपटों से घिर गए।’

 

ये ‘डुरेंडल्स’ बम थे, जिन्हें इस्त्रायल ने एक गुप्त मिशन में फ्रांस के साथ मिल कर बनाया था। 180 पाउंड के इन बमों की खासियत ये थी कि ये बहुत सटीक ढंग से निशाने पर गिरते थे। एक बम के गिरने के बाद पांच मीटर चौड़ा और 1.6 मीटर लंबा गड्ढ़ा बन जाता था, जिसकी वजह से रन वे इस्तेमाल करने लायक नहीं रहता था। उसकी तुरंत मरम्मत भी मुश्किल हो जाती थी, क्योंकि बमों के ‘फ्यूज’ थोड़े-थोड़े अंतराल पर फटते रहते थे। 

 

अबू सुवेर बेस पर ही एक घंटे के अंदर इस तरह के सौ से अधिक बम गिराए गए। बिन नून आगे बताते हैं, ‘हमने बेस पर मौजूद 40 मिग विमानों में से 16 को नष्ट कर दिया और वापसी में हमने सैम -2 बैट्री को भी नहीं छोड़ा। हमने ऊपर से देखा पूरा ठिकाना आग की लपटों से घिरा हुआ था।’ 

 

रनवे पर तीन जगह सटीक बमबारी : नीचे मिस्र के पायलट पूरी तरह से सदमें में थे। उन्हें उनके रक्षण को भेद पाने की इस्त्रायली क्षमता पर यकीन ही नहीं हो पा रहा था। मालिस बेस के कमांडर ब्रिगेडियर जनरल तहसीन जकी ने बाद में ‘द स्वॉर्ड ड द ऑलिव’ पुस्तक के लेखक वैन क्रेवेल्ड को दिए इंटरव्यू में याद किया, ‘मैंने जेट जहाजों की आवाज सुनी। मैंने आवाज आने की दिशा में देखा। मुझे सिलेटी रंग के दो सुपर मिस्टियर्स विमान आते दिखाई दिए। उन्होंने पहले रनवे की शुरुआत पर दो बम गिराए। उनके पीछे दो विमान और थे। उन्होंने रनवे के बीचों-बीच बम गिराए और आखिरी दो जहाजों ने जहां रनवे समाप्त होता था, वहां बम गिराए। दो मिनटों में पूरा रनवे इस्तेमाल करने लायक नहीं बचा था।’

 

बेनी सुवैफ और लक्सर हवाई ठिकानों पर खड़े टुपोलेव -16 विमानों में इतनी जोर से धमाका हुआ कि हमला करने वाला एक विमान भी उसकी चपेट में आ गया। साइनाई में जबल लिबनी, बिर अल-थमादा और बिर गफगफा हवाई ठिकानों पर इस्त्रायल के मिराज और मिस्टियर विमानों ने कतार में खड़े दर्जनों मिग विमानों को नष्ट कर दिए। कुछ मिग विमानों ने टेकऑफ करने की कोशिश भी की, लेकिन वो नाकाम रहे। सिर्फ अल अरीश ठिकाने पर जानबूझ कर इम उम्मीद में रनवे को नुकसान नहीं पहुंचाया गया कि वक्त पड़ने पर वहां इस्त्रायल के ट्रांसपोर्ट जहाजों को लैंड कराया जा सके। 

 

डॉग फाइट्स की नौबत ही नहीं आई : इस्त्रायली समय आठ बजे तक साइनाई के चार एयरबेस पूरी तरह से ध्वस्त हो चुके थे और साइनाई में मिस्र की सेना का सुप्रीम हेडक्वार्टर से संचार संपर्क पूरी तरह से टूट चुका था। आधे घंटे के अंदर मिस्र की वायुसेना के 204 विमान जमीन पर ही नष्ट हो चुके थे। इस सफलता से इस्त्रायली खुद आवाक थे। 

 

किसी ने कल्पना भी नहीं की थी कि एक अकेली स्क्वाड्रन पूरे एयरबेस को निष्क्रिय कर देगी। दिलचस्प बात ये थी कि इस्त्रायली पायलटों को निर्देश थे कि वो पांच मिनट का ईधन और अपने एक तिहाई हथियार हवा में होने वाली ‘डॉग फाइट्स’ के लिए बचा कर रखें, लेकिन हवा में इस्त्रायली विमानों को एक बार भी चुनौती नहीं दी गई। जमीन से भी उनके ऊपर कोई तगड़ा फायर नही आया। 

 

मिस्र के वायुसेना प्रमुख फील्ड मार्शल अमेर ने मिस्र की सभी 100 एंटी एयरक्राफ्ट बैटरीज को इस डर से फायर न करने के आदेश दिए कि कहीं वो मिस्र के विमानों को ही इस्त्रायल का विमान न समझ लें। सिर्फ काहिरा में विमानभेदी तोपों ने इस्त्रायली विमानों को थोड़ा विचलित करने की कोशिश की, लेकिन वहां भी उनके निशाने सटीक नहीं थे। 

 

बाद में इन विमानभेदी तोपों के कमांडर मेजर सैद अहमद रबी ने बताया, ‘आखिर में मैंने खुद बिना आदेश के फायरिंग शुरू करने का फैसला लिया। मुझे डर था कि इसके लिए मुझे कहीं ‘कोर्टमार्शल’ न किया जाए, लेकिन इसके लिए मुझे वीरता पदक दिया गया।’ रबी ने दावा किया कि उन्होंने इस्त्रायल के कई विमान मार गिराए, लेकिन इस्त्रायल ने कहा कि इस हमले में उनके सिर्फ एक विमान को नुकसान पहुंचा और वो भी उनकी ही ‘हॉक’ मिसाइल का शिकार हुआ। 

 

‘मिस्र की वायुसेना का अस्तित्व समाप्त’ : इस्त्रायली वायुसेना की सफलता को जितना संभव हो सका गुप्त रखा गया ताकि संयुक्त राष्ट्र द्वारा लागू किए जा रहे युद्ध विराम में देरी की जा सके। इस बीच आठ बज कर 15 मिनट पर रक्षा मंत्री मोशे दायान ने थलसेना के हमले के लिए ‘रेड शीट’ पासवर्ड जारी किया और इस्त्रायली टैंक भी तेजी से साइनाई में घुस गए। 

 

हमले की दूसरी लहर में इस्त्रायली युद्धक विमानों ने लगातार हमले करते हुए मिस्र के 14 हवाई ठिकानों और सभी रडार केंद्रों को बर्बाद कर दिया। इस दौरान उनका ‘सरप्राइज एलिमेंट’ समाप्त हो चुका था और उन्होंने ‘रेडियो साइलेंस’ को भी तिलांजलि दे दी थी। मिस्र की तरफ से उनका विरोध मामूली था। थोड़ा बहुत विरोध विमानभेदी तोपों की फायरिंग से आ रहा था। 

 

 

दूसरे राउंड में करीब 100 मिनटों में इस्त्रायली विमानों ने 164 चक्कर लगाए और 107 और विमान नष्ट किए। उनको कुल नौ विमानों का नुकसान हुआ। उस सुबह मिस्र के कुल 420 लड़ाकू विमानों में से 286 विमान नष्ट कर दिए गए। इनमें 30 टुपोलेव-16, 17 इल्यूशन-28, 12 सुखोई -7 और 90 मिग -21 विमान शामिल थे। मिस्र की वायुसेना के एक तिहाई पायलट इन हमलों में मारे गए थे। 10 बज कर 35 मिनट पर इस्त्रायली वायुसेना के प्रमुख मोट्टी हॉड ने जनरल राबिन की तरफ मुड़ कर वो मशहूर जुमला बोला था, ‘मिस्र की वायुसेना का अस्तित्व समाप्त हो चुका है।’

 

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