न्यूज़ डेस्क : भारत के साथ नक्शा विवाद शुरू करने के बाद अब नेपाल ने अपना रुख बदलते हुए कहा है कि उसने सीमा विवाद को सुलझाने के लिए बातचीत की पेशकश की थी, लेकिन भारत ने इस पर समय से प्रतिक्रिया नहीं दी। ये बातें नेपाल के विदेश मंत्री प्रदीप ज्ञावली ने शुक्रवार को एक प्रेस वार्ता में कहीं।
ज्ञावली ने कहा, ‘जब भारत ने नवंबर 2019 में अपने राजनीतिक नक्शे का आठवां संस्करण प्रकाशित किया था, तो इसमें नेपाल के क्षेत्र में आने वाले कालापानी, लिपुलेख और लिंपियाधुरा भी शामिल थे। नेपाल ने राजनीतिक बयानों और राजनियक माध्यमों के सहारे इसका विरोध किया था। ‘
‘हमने वार्ता के प्रस्ताव भेजे, भारत ने जवाब नहीं दिया’
उन्होंने कहा, हमने कई बार अपने भारतीय मित्रों से औपचारिक रूप से सीमा से संबंधित इन समस्याओं को सुलझाने के लिए कूटनीतिक बातचीत शुरू करने के लिए कहा। हमने इसके लिए संभावित तारीखों का भी सुझाव दिया लेकिन भारत की ओर से हमारे प्रस्ताव पर समय से जवाब नहीं दिया गया।
‘साल 1947 में हुआ त्रिपक्षीय समझौता अब निरर्थक’
गोरखा भर्ती को ज्ञावल ने बीते जमाने की विरासत बताते हुए कहा कि यह नेपाली युवाओं के लिए विदेश जाने के लिए खुला पहला दरवाजा था। बीते समय में इसने रोजगार के कई अवसर उत्पन्न किए, लेकिन बदली परिस्थितियों में कई प्रावधानों पर सवाल उठ रहे हैं। 1947 का त्रिपक्षीय समझौता निरर्थक हो गया है।
‘भारत और चीन के संबंध तय करेंगे एशिया का भविष्य’
वहीं, भारत और चीन के बीच चल रहे सीमा विवाद को लेकर भी नेपाल के विदेश मंत्री ने अपनी राय रखी। ज्ञावल ने कहा कि भारत और चीन के संबंध कैसे रहते हैं और वे अपने मतभेदों को किस तरह से हल करते हैं, इसका एशिया के भविष्य पर सीधा असर पड़ेगा।
नए नक्शे में भारतीय जमीन को नेपाल ने अपना बताया
नेपाल ने अपना नए नक्शे में भारत के लिपुलेख, कालापानी और लिंपियाधुरा को नेपाल ने अपने क्षेत्र में शामिल कर लिया है। इस नक्शे को नेपाल की संसद से भी मंजूरी मिल चुकी है। हालांकि, इसे गलत बताते हुए नेपाल के ही कई नेता विरोध दर्ज करा चुके हैं।
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