उपराष्ट्रपति ने शिक्षा की पहुंच और गुणवत्ता बढ़ाने के लिए प्रौद्योगिकी को काम में लाने का आह्वान किया
‘शिक्षा में औपनिवेशिक खुमार से उबरने की जरूरत’: उपराष्ट्रपति
एनईपी भारत में शैक्षिक परिदृश्य को बदलने की रूपरेखा है: उपराष्ट्रपति
उपराष्ट्रपति ने साक्षरता और लैंगिक समानता में भारत की प्रगति की सराहना की, शिक्षा में डिजिटल विभाजन को खत्म करने का आग्रह किया
‘नवाचार को फलने-फूलने के लिए अनुकूल माहौल बनाएं’ उपराष्ट्रपति
श्री नायडु ने द न्यू इंडियन एक्सप्रेस ‘थिंकएडु’ बैठक के 10वें संस्करण में भाग लिया
उपराष्ट्रपति, श्री एम. वेंकैया नायडु ने आज शिक्षा की पहुंच और गुणवत्ता बढ़ाने के लिए प्रौद्योगिकी का उपयोग करने का आह्वान किया। इस बात का जिक्र करते हुए कि किस प्रकार महामारी के दौरान ज्ञान को पहुंचाने के लिए नई सीमाएं खुली, श्री नायडु ने कहा कि ‘डिजिटल उपकरणों ने शिक्षा को अधिक दिलचस्प और संवादात्मक बना दिया है’। उन्होंने बढ़ते डिजिटल विभाजन को खत्म करते हुए प्रौद्योगिकी में नई संभावनाओं की खोज करने का आह्वान किया।
महामारी के दौरान अध्ययन की निरंतरता सुनिश्चित करने में देश के शिक्षकों के योगदान की सराहना करते हुए, श्री नायडु ने कहा कि उन्होंने तेजी से ऑनलाइन मोड में आकर शिक्षा की प्रक्रिया को जारी रखा। उन्होंने कहा, “ अध्यापकों ने अपने शानदार मिशन में विद्यार्थियों को केन्द्र में रखा और कम से कम नुकसान होने दिया।”
चेन्नई में द न्यू इंडियन एक्सप्रेस ‘थिंकएडु’ बैठक के 10वें संस्करण में भाग लेते हुए, श्री नायडु ने इस बात की आवश्यकता पर जोर दिया कि ‘शिक्षा के अपने दृष्टिकोण के माध्यम से सोचने और अपने देश को हम ‘विद्या प्राप्ति राष्ट्र’ कैसे बना सकते हैं।’
राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी 2020) का भारत में शिक्षा परिदृश्य को बदलने के लिए एक रूपरेखा के रूप में जिक्र करते हुए, श्री नायडु ने कहा कि समग्र शिक्षा और देश में “हमें शिक्षा को और अधिक एकीकृत करना चाहिए”, श्री नायडु ने समग्र शिक्षा की आवश्यकता और देश के युवाओं के लिए रोजगार के नए रास्ते खोलने की आवश्यकता पर बल दिया। उप-राष्ट्रपति ने कहा, “हमें शिक्षा को अधिक एकीकृत बहु-अनुशासनात्मक और प्रासंगिक बनाना चाहिए।”
श्री नायडु ने कहा कि शिक्षा को राष्ट्रीय परिवर्तन का एक साधन बनना चाहिए। उन्होंने कहा कि शिक्षा को ऐसे नागरिक तैयार करने में मदद करनी चाहिए जो अनुभवी, ग्रहणशील और अभिव्यक्तिशील हों, जो सोचने और महसूस करने वाले हों, जिनमें दुनिया को और अधिक रहने योग्य जगह बनाने के लिए उस ज्ञान को प्राप्त करने के साथ-साथ उसका इस्तेमाल करने की संवेदना हो।
शिक्षा में ‘औपनिवेशिक खुमार’ से उबरने की आवश्यकता पर जोर देते हुए, श्री नायडु ने कहा कि भारतीय ऐतिहासिक हस्तियों को संजोना और विख्यात किया जाना चाहिए और उनकी कहानियों को स्कूली पाठ्यक्रम में शामिल किया जाना चाहिए। श्री नायडु ने कहा कि ‘अंग्रेज बहुत समय पहले चले गए थे, लेकिन हम अभी भी मैकॉले की प्रणाली का अनुसरण कर रहे हैं।’
इस संबंध में उपराष्ट्रपति ने कहा कि कम से कम प्राथमिक स्तर तक मातृभाषा में शिक्षा बच्चों में शिक्षा के परिणामों को बढ़ावा देगी और उन्हें उनकी अमूर्त विरासत से जोड़ेगी। उन्होंने स्थानीय भाषाओं को प्रशासन और न्यायपालिका की भाषा के रूप में उपयोग करने का भी आह्वान किया।
श्री नायडु ने सुझाव दिया कि ‘प्राचीन ज्ञान प्रणालियों के साथ-साथ कृत्रिम बुद्धिमत्ता जैसी समकालीन प्रगति पर ध्यान केंद्रित करने और कौशल शिक्षा पर जोर देने से एक ‘दृढ़ राष्ट्र’ की दिशा में भारत की प्रगति में तेजी आने की संभावना है।
एक ‘दृढ़ राष्ट्र’ वह है जिसे केवल व्यापक ज्ञान आधार और कौशल की एक पूरी श्रृंखला को शामिल कर गुणवत्तापूर्ण शिक्षा की नींव पर बनाया जा सकता है। श्री नायडु ने दोहराया, “गुणवत्तापूर्ण शिक्षा ऐसे ‘नए भारत’ के लिए सबसे आशाजनक मार्ग है जिसकी हम कल्पना करते हैं।”
उपराष्ट्रपति ने कहा कि भविष्य की शिक्षा को उद्यमिता और कौशल उन्नयन के माध्यम से ‘शिक्षा की दुनिया और काम की दुनिया के बीच सेतु का निर्माण’ करना चाहिए। उन्होंने कृषि में उच्च नवाचार और उत्पादकता सुनिश्चित करने के लिए उद्योग और कृषि विशेषज्ञों के साथ बातचीत बढ़ाने का भी आह्वान किया।
भारत के जनसांख्यिकी संबंधी लाभ का जिक्र करते हुए, श्री नायडु ने कहा कि भारत अपनी विकास यात्रा के महत्वपूर्ण चरण में है जब वह बड़े पैमाने पर लाभांश उत्पन्न कर सकता है और यह संभव है यदि उसके मानव संसाधन को गुणवत्तापूर्ण अध्ययन अवसरों के लिए समान पहुंच प्रदान की जाए। उन्होंने कहा कि सरकार, निजी क्षेत्र और शिक्षाविदों के साथ-साथ मीडिया को सहयोग करने और आवश्यक तालमेल हासिल करने के लिए मंच बनाना चाहिए।
इस अवसर पर, श्री नायडु ने स्वतंत्रता के बाद से शिक्षा के सभी स्तरों पर साक्षरता दर में सुधार और सकल नामांकन अनुपात में लिंग समानता के करीब पहुंचने में भारत की उपलब्धियों का उल्लेख किया। उन्होंने कहा, “हमारे पास जश्न मनाने के लिए बहुत कुछ है क्योंकि हम स्वतंत्रता के समय 18 प्रतिशत की साक्षरता दर से आगे बढ़कर 80 प्रतिशत पर पहुंच चुके हैं। श्री नायडु ने कहा कि भारत दुनिया की सबसे बड़ी शिक्षा प्रणालियों में से एक है जिसने विभिन्न शैक्षणिक, वैज्ञानिक और कॉरपोरेट निकायों में दुनिया के कुछ सबसे प्रतिष्ठित नेतृत्व पदों पर कब्जा करने वाले कई दिग्गज पैदा किए हैं।
उपराष्ट्रपति ने ‘विश्व गुरु’ के अर्थ को फिर से परिभाषित करने का आह्वान किया। उन्होंने कहा, “हमें श्रेष्ठ भारत, सक्षम भारत, आयुष्मान भारत और आत्मनिर्भर भारत के निर्माण के लिए एक रोड मैप तैयार करना चाहिए।”
नीति निर्माताओं से ‘अधूरे साक्षरता कार्य’ पर ध्यान केन्द्रित करने का आग्रह करते हुए, उपराष्ट्रपति ने यूनेस्को द्वारा प्रतिपादित शिक्षा के सभी चार स्तंभों – जानने के लिए शिक्षा, कार्य करने के लिए शिक्षा, शिक्षा कैसी हो और मिल-जुलकर रहने की शिक्षा पर बराबर जोर देकर ‘एक अध्ययन सोसाइटी’ बनाने की आवश्यकता पर जोर दिया।
लोगों के जीवन की गुणवत्ता में सुधार के रूप में शिक्षा के उद्देश्यों में से एक को रेखांकित करते हुए, श्री नायडु ने शिक्षाविदों से ‘प्रतिभा को पोषित करने, उत्कृष्टता को पहचानने और एक अनुकूल वातावरण बनाने के लिए इस प्रक्रिया को बढ़ावा देने’ का आह्वान किया जहां नवाचार पनपेगा।’
श्री नायडु ने सम्मेलन को डिजिटल मोड में कराने के लिए आयोजकों की सराहना की और कहा कि वह इस शिखर सम्मेलन में हुई उच्च गुणवत्ता वाली चर्चाओं और विचार-विमर्श से प्रभावित हुए हैं।
इस अवसर पर तमिलनाडु के सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम मंत्री, थिरु टीएम अनबरसन, राज्यसभा सांसद, श्री सुब्रमण्यम स्वामी, लोकसभा सांसद, श्री शशि थरूर, द न्यू इंडियन एक्सप्रेस के संपादकीय निदेशक श्री प्रभु चावला, द न्यू इंडियन एक्सप्रेस के सीईओ श्री लक्ष्मी मेनन और अन्य लोग उपस्थित थे।
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