न्यूज़ डेस्क : बंबई हाई कोर्ट ने कहा है कि पिता अपनी अविवाहित बेटी का विवाह होने तक उसका भरण-पोषण करने के बंधा हुआ है। न्यायमूर्ति केयू चंडीवाल ने यह फैसला सुनाया है। उन्होंने बहरीन आधारित व्यक्ति को अपनी सबसे बड़ी बेटी को गुजारा भत्ता देने को कहा कि जो बालिग हो गई है।
अदालत ने कुटुम्ब अदालत के उस आदेश को अस्वीकृत कर दिया जिसमें उसने बड़ी बेटी के लिए पति से गुजारा-भत्ता की पत्नी की मांग को खारिज कर दिया था। उसकी बड़ी बेटी की शादी नहीं हुई थी और आर्थिक रूप से वह स्वतंत्र है।
न्यायाधीश ने 16 अक्तूबर को फैसला सुनाते हुए कहा कि पिता अपनी बेटियों को तब तक गुजारा-भत्ता देने के लिए जिम्मेदार है जब तक कि उनकी शादी नहीं हो जाती। अगर बड़ी बेटी अविवाहित है लेकिन अपनी गहिणी मां पर निर्भर है तो वह गुजारा-भत्ता पाने की हकदार है।
कुटुम्ब अदालत ने पिता को अपनी दो नाबालिग बच्चों को गुजारा-भत्ता देने का आदेश दिया था लेकिन बड़ी बेटी के लिए गुजारा-भत्ता के मां के दावे को खारिज कर दिया था। इस दम्पत्ति के दो बेटियां और एक पुत्र है। इस परिवार का मुखिया बहरीन सरकार के वित्त विभाग में काम करता है और वह दो साल में एक बार अपने परिवार के पास आता है। पत्नी का दावा था कि उसके पति की आमदनी 90 हजार रुपये प्रतिमाह है लेकिन इस व्यक्ति की दलील थी कि उसकी आमदनी करीब तीस हजार रुपये ही है।
वर्ष 2008 में पत्नी अपनी सास के पास रहने के लिए रायगढ़ जिले में आ गई थी लेकिन जब वह दो साल बाद वापस गई तो पता चला कि पति ने उसे तलाक देकर दूसरी शादी कर ली है। इसी के बाद पिछले साल 23 मई को पत्नी ने गुजारा भत्ते के लिए कुटुम्ब अदालत में मामला दायर किया था। कुटुम्ब अदालत ने इस व्यक्ति को अपनी पत्नी को पांच हजार रुपये महीना और नाबालिग बच्चों को 2500 एपए महीना गुजारा भत्ता देने का आदेश दिया था।
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