ध्याननीय है कि युवा जेसुइट के रूप में भारत आने के बाद बुल्के ने अपना अधिकांश समय, अपने 1982 में देहावसान तक, सेंट ज़ेवियर्स कॉलेज रांची में बिताया. संस्कृतियों की सीमायें पार कर, बुल्के आधुनिक हिंदी के एक आधार स्तंभ हो गए. उन्होंने भगवान राम महाकाव्य परंपरा पर, गोस्वामी तुलसीदास की अद्वितीयता पर, तथा अन्य लेखन-क्षेत्रों में मुलभूत योगदान दिया.
17 सितम्बर 2020: शिकागो के अर्थशास्त्री राज साह ने बेल्जियम में जन्मे हिंदी के प्रख्यात विद्वान फादर कामिल बुल्के के सम्मान में एक स्मृति पट्टिका भेंट की. उल्लेखनीय है कि इस पट्टिका का अनावरण उनके जन्मस्थान बेल्जियम के नौक-हाईस्ट क्षेत्र के रम्सकपैल गांव में किया गया.
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श्री साह ने बुल्के की मेंटरशिप की कृतज्ञता हेतु रम्सकपैल को स्मृति पट्टिका भेंट की. नौक-हाईस्ट के मेयर, काउंट लियोपोल्ड लिपन्स ने पट्टिका के अनावरण के अवसर पर कहा, “हम बेल्जियम वासियों के लिए, एवं हमारी आने वाली पीढ़ियों के लिए, फादर बुल्के की भारत में बनाई धरोहर महत्वपूर्ण है. हम प्रोफेसर साह के आभारी हैं कि उन्होंने अपने मेंटर के जन्मस्थान पर उनकी श्रेय स्मृति को स्थायित्व दिया.”
डा० साह यूनिवर्सिटी ऑफ शिकागो में पब्लिक पालिसी तथा अर्थशास्त्र के प्रोफेसर हैं. इन्हें जापानी सरकार ने अपने सम्राट की ओर से “द ऑर्डर ऑफ द राइजिंग सन, गोल्ड रेज विद नेक रिबन” से सम्मानित किया. यह सम्मान जापान सरकार की आर्थिक और वित्तीय नीतियों में इनके योगदान के लिए मिला. श्री साह आईआईएम अहमदाबाद के डिस्टिंग्विश्ड फेलो हैं. वह पहले मैसाचुसेट्स इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी, प्रिंसटन यूनिवर्सिटी, यूनिवर्सिटी ऑफ पेनसिल्वेनिया, और येल यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर रह चुके हैं.
सेंट जेवियर्स में श्री साह के साथ अध्ययन कर चुके रांची उच्च न्यायालय के वरिष्ठ अधिवक्ता श्री राजीव शर्मा ने बताया, “प्रोफेसर साह और फादर बुल्के एक जुगलबंदी के समान थे. ज्ञानार्जन-आतुर विद्यार्थी को एक अद्भुत आचार्य मिले, जिनके व्यक्तिगत मार्गदर्शन में बौद्धिकता और सार्थकता का समन्वय सदा रहता था.”
यूनिवर्सिटी ऑफ शिकागो में मानवशास्त्र के एमेरिटस प्रोफेसर राल्फ निकोलस ने कहा, “भारतीय गुरु-शिष्य संबंध में विशिष्ट गहराई होती है. गुरु के प्रति शिष्य की भावना पर समय का, या गुरु का वर्षों पहले दिवंगत हो जाने का, कोई प्रभाव नहीं पड़ता.”
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