विश्वविद्यालय अनुदान आयोग ने विश्वविद्यालय और कॉलेजों के लिए बौद्धिक संपदा अधिकार (आईपीआर) पर ऑनलाइन कार्यशाला का आयोजन किया
विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) ने आज शिक्षा मंत्रालय के प्रतिष्ठित सप्ताह के तहत विश्वविद्यालय और कॉलेजों के लिए बौद्धिक संपदा अधिकार (आईपीआर) पर ऑनलाइन कार्यशाला का आयोजन किया। शिक्षा मंत्रालय के उच्च शिक्षा विभाग की संयुक्त सचिव (आईसीसी व सतर्कता) श्रीमती नीता प्रसाद, वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय के उद्योग संवर्द्धन और आंतरिक व्यापार विभाग (डीपीआईआईटी) व महानियंत्रक एकस्व अभिकल्प एवं व्यापार चिह्न (सीजीपीडीटीएम) के संयुक्त सचिव श्री राजेन्द्र रत्नू और यूजीसी के सचिव प्रोफेसर रजनीश जैन उद्घाटन सत्र को संबोधित किया।
विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) के सचिव प्रोफेसर रजनीश जैन ने अपने स्वागत भाषण में आईपीआर के महत्व व देश की छवि में इसके महत्व, देश की नॉलेज पूल के निर्माण में इसकी प्रासंगिकता और इसके कानूनी पहलुओं को रेखांकित किया। उन्होंने आगे एक निर्माता और प्रर्वतक के रूप में भारत की स्थिति के ऐतिहासिक पहलू का उल्लेख किया। यूजीसी के सचिव ने आगे आज के विचार-विमर्श में आईपीआर के बारे में जागरूकता उत्पन्न करने को लेकर उम्मीद व्यक्त की।
शिक्षा मंत्रालय के उच्च शिक्षा विभाग की संयुक्त सचिव (आईसीसी और सतर्कता) श्रीमती नीता प्रसाद ने अपने विशेष भाषण में नवाचार, अनुसंधान और रचनात्मकता की नींव के रूप में बौद्धिक संपदा के महत्व पर जोर दिया। उन्होंने इस बात को विशेष तौर पर साझा किया कि देश में एक मजबूत नवाचार व आईपीआर संस्कृति बनाने के लिए आवश्यक कदम उठाए गए हैं, जिसके परिणामस्वरूप प्रासंगिक नवाचार और आईपी संख्या, चाहे वह आईपी फाइलिंग, आईपी अनुदान व आईपी निपटान हो, में उल्लेखनीय सुधार हुआ है। हालांकि, सभी बदलावों के बावजूद भारत, आईपीआर के मामले में कई देशों से पीछे है। उन्होंने आगे इस बात पर जोर दिया कि इसकी वजह पेटेंट दाखिल करने को लेकर छात्रों में जागरूकता की कमी हो सकती है।
श्रीमती नीता प्रसाद ने इस क्षेत्र में सरकार की पहल को साझा किया। इनमें अक्टूबर, 2020 में आईपी साक्षरता व जागरूकता के लिए शुरू किए गए कपिला कार्यक्रम व पेटेंट दाखिल करने के लिए निर्धारित शुल्क में कमी करने का निर्णय शामिल हैं। उन्होंने यह सुझाव देते हुए अपनी बात को समाप्त किया कि न केवल भारत बल्कि, अन्य देशों में भी संबंधित आईपीआर द्वारा ज्ञान और आविष्कारों की रक्षा करके आगे बढ़ा जा सकता है।
वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय के डीपीआईआईटी व सीजीपीडीटीएम के संयुक्त सचिव श्री राजेन्द्र रत्नू ने अपने मुख्य भाषण में कहा कि एकजुट होकर ऊर्जा को सामंजस्य में बदलने की जरूरत है। उन्होंने कहा कि अलग रहकर काम करने की जगह सहभागिता की जरूरत है। श्री रत्नू ने आगे इस बात पर जोर दिया कि कला व विज्ञान, दोनों में नवाचार और सृजन को बढ़ावा देने की आवश्यकता है। साथ ही, इस सामूहिक सांस्कृतिक विरासत को संरक्षित करने की भी जरूरत है।
उन्होंने आगे उद्योग, शिक्षा जगत और आईपीआर के पंजीकरण के बीच साझेदारी को भी महत्वपूर्ण बताया।
इस कार्यशाला में उद्घाटन सत्र के बाद तकनीकी सत्र का आयोजन हुआ। इस सत्र में आईपी क्षेत्र के विशेषज्ञों ने संबोधित किया और विषयवस्तु का संक्षिप्त विवरण दिया।
पेटेंट और डिजाइन की सहायक नियंत्रक डॉ. उषा राव ने बौद्धिक संपदा अधिकार का एक विवरण प्रस्तुत किया। उन्होंने आईपीआर व विभिन्न प्रकार के आईपी और उनके शासकीय निकायों की जरूरत व महत्व के बारे में विस्तार से जानकारी प्रदान की। डॉ. उषा राव ने भारत में आईपीआर के विभिन्न अधिनियमों और नियमों का भी उल्लेख किया। इसके अलावा उन्होंने पेटेंट प्रक्रियाओं को दाखिल करने के विभिन्न तरीकों पर भी चर्चा की।
तकनीकी सत्र के दूसरे विशेषज्ञ पेटेंट और डिजाइन के सहायक नियंत्रक श्री सुखदीप सिंह थे। उन्होंने आईपीआर के क्षेत्र में शैक्षिक संस्थानों के लिए विभिन्न योजनाओं और विशेषाधिकारों पर बात की। उन्होंने यह कहते हुए अपने संबोधन की समाप्ति की कि इस क्षेत्र में आगे बढ़ने के लिए विश्वविद्यालयों में आईपी प्रबंधन प्रकोष्ठों की स्थापना, विशेषज्ञ प्रशिक्षक और टीआईएससी (तकनीकी और नवाचार सहायता केंद्र) की स्थापना शामिल है।
विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) के अतिरिक्त सचिव डॉ. सुरेंद्र सिंह के धन्यवाद ज्ञापन के साथ इस वेबीनार का समापन हुआ। वेबीनार ने उच्च शैक्षणिक संस्थानों (एचईआई) के लिए आईपीआर के प्रासंगिक पहलुओं पर चर्चा की। इस कार्यशाला का आयोजन आईपीआर जागरूकता की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम था।
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