केन्द्रीय गृह एवं सहकारिता मंत्री श्री अमित शाह ने नई दिल्ली में सहकारिता नीति पर राष्ट्रीय सम्मेलन को संबोधित किया
6 जुलाई, 2021 भारत के सहकारिता क्षेत्र के लिए बहुत महत्वपूर्ण दिन था जब प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी के नेतृत्व में पहली बार भारत सरकार ने सहकारिता मंत्रालय की स्थापना की और सालों से इस क्षेत्र से जुड़े लोगों की सहकारिता के सिद्धांत को मान्यता देने की मांग को पूरा किया
मोदी जी ने सहकारिता क्षेत्र के सामने ‘सहकार से समृद्धि’ का लक्ष्य रखा है
ग्रामीण विकास और गरीब व्यक्तियों को रोज़गार देने में, वो सम्मानपूर्वक जीवन जी सकें, ऐसा एक आर्थिक मॉडल बनाने में, सहकारिता की एक बहुत बड़ी भूमिका रही
विकसित राज्यों में कोई गांव ना रहे जहां पैक्स (PACS), दुग्ध सहकारी मंडी, कोऑपरेटिव, क्रेडिट सोसायटी या सहकारी बैंक ना हो, कोई ऐसा क्षेत्र ना रहे जहां कोऑपरेटिव की संभावना और पहुंच ना हो
विकसित राज्यों को सेचुरेशन की ओर ले जाना, विकासशील राज्यों को विकसित बनाना और पिछड़े राज्यों को सीधे विकसित राज्यों की श्रेणी में ले जाने के लिए रणनीति बनाना
अगर ऐसा कर पाते हैं तो आने वाले 20-25 सालों में हम सहकारिता क्षेत्र को नई ऊंचाई पर पहुंचा सकते हैं और देश के विकास में बहुत बड़ा हिस्सा सहकारिता क्षेत्र का हो, इस प्रकार की स्थिति का निर्माण कर सकते हैं
मुनाफ़े का सामान रूप से वितरण केवल कोऑपरेटिव कर सकती है और पूरा मुनाफ़ा शेयरधारकों के पास जाए और प्रबंधन पर ख़र्च न्यूनतम हो, ऐसा केवल सहकारिता के माध्यम से हो सकता है
देश का एक बहुत बड़ा तबक़ा जो आर्थिक रूप से पिछड़ा हुआ है, सहकारिता एकमात्र ऐसा मॉडल है जो देश के 80 करोड़ लोगों को आर्थिक रूप से संपन्न बना सकता है
हमें सहकारिता आंदोलन को आज के समय की चुनौतियों के लिए तैयार करना होगा, स्थिरता को दूर करना होगा, बदलाव लाने होंगे, पारदर्शिता लानी होगी, तभी छोटे से छोटे किसान का भरोसा हम पर बढ़ेगा
हमें चुनाव में लोकतांत्रिक मूल्यों को क़ानून के तहत स्वीकारना होगा तब संभावनाओं को प्लेटफ़ॉर्म मिलेगा और जब तक संभावनाओं को मंच नहीं मिलता, कोई क्षेत्र प्रगति नहीं कर सकता
हमें प्रोफ़ेश्नलिज़्म को स्वीकारना होगा और कॉर्पोरेट गवर्नेंस के सभी सिद्धातों को कोऑपरेटिव की भावना के साथ स्वीकारना होगा
हमारे देश में इफ़्को, अमूल जैसे कई मॉडल हैं जिन्होंने कॉर्पोरेट गवर्नेंस के पदचिन्हों पर चलते हुए कोआपरेटिव की भावना को भी अक्षुण्ण रखा है
देश में आज लगभग 8,55,000 कोऑपरेटिव चल रहे हैं, 1,77,000 क्रेडिट सोसाइटी हैं, अन्य 700,000 सहकारी समितियां हैं, 17 राष्ट्रीय स्तर के सहकारी संघ हैं, 33 स्टेट कोऑपरेटिव बैंक हैं, 63,000 से ज्यादा एक्टिव पैक्स हैं और 12 करोड से ज्यादा सदस्य हैं और लगभग 91% गांवों में आज कोऑपरेटिव्स की उपस्थिति है
जो बाधाएँ हैं, उन्हें नए प्रावधान कर, नई नीति बनाकर और सामंजस्य बिठाकर हटाना है और यह तभी हो सकता है कि समग्रता से आज की सभी जरूरतों को पूरा करने वाली एक सहकारी नीति बनाई जाए
8-9 महीने में हम एक संपूर्ण अद्यतन सहकारी नीति देश के सामने रख पाएंगे जो पैक्स से लेकर एपैक्स तक सभी सहकारी समितियों की जरूरतों को एड्रेस करेगी और एक ऐसा वातावरण बनाएगी जिससे सहकारिता का विस्तार हो
इसमें नए आयाम और क्षेत्र TEAM की भावना से ही जुड़ सकते हैं, टीम मतलब – T ट्रांसपेरेंसी, E एंपावरमेंट, A आत्मनिर्भर और M मॉडर्नाइजेशन
पूरे सहकारिता क्षेत्र का कंप्यूटराइजेशन और जो बड़ी-बड़ी सहकारी समितियां है उनके कामकाज में भी मॉडर्नाइजेशन और प्रोफेशनलिज्म लाना होगा
सहकारिता की नई नीति जो बनेगी इसमें – फ्री रजिस्ट्रेशन, पारदर्शिता, सहकारी संस्थाओं में समन्वय, राज्यों के कानूनों के बीच संवाद से समानता लाने का प्रयास, नए आयाम तलाशना, हर गांव तक पहुंच बनाना, क्रेडिट सोसाइटी बनाना, किसान की आय दोगुना करना, और, सभी प्रकार की सहकारिता की संस्थाओं को आर्थिक रूप से मज़बूत बनाने के लिए भी सहकारी नीति में प्रावधान होना चाहिए
एक परिपूर्ण और आज के समय के लिए उपयुक्त सहकारिता नीति हम बनाते हैं तो मोदी जी का पांच ट्रिलियन डॉलर अर्थव्यवस्था और किसानों की आय दोगुनी करने के लक्ष्यों में अपेक्षा से कई गुना ज़्यादा योगदान देश के अर्थतंत्र में कर सकते हैं
इस दो दिवसीय परिसंवाद में विचार मंथन के बाद जो अमृत निकलेगा वो एक नई नीति बनाएगा
नई सहकारी नीति पर हम देशभर से सभी स्थानीय भाषाओं में सहकारिता से जुड़े लोगों के सुझाव आमंत्रित कर रहे हैं
मैं सभी से आग्रह करता हूँ कि आप सब अपने-अपने राज्यों में इस पहल को नीचे सभी सहकारी समितियों तक पहुंचाएं ताकि छोटी ग्रामीण समिति चलाने वाला व्यक्ति भी अपना सुझाव दे सके
सबसे नीचे तक जाकर जैसे ग्रामीण दुग्ध उत्पादक समितियों और पैक्स से सुझाव आने चाहिएं तभी एक सर्वस्पर्शीय, सर्वसमावेशी और आज की ज़रूरतों के हिसाब से सहकारिता नीति बन सकती है
सहकारिता क्षेत्र से प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी की जो अपेक्षाएं हैं उन्हें हम पूरा करने में सफल होंगे और सहकारिता क्षेत्र निश्चित रूप से आर्थिक विकास का तीसरा मॉडल बनेगा
केन्द्रीय गृह एवं सहकारिता मंत्री श्री अमित शाह ने आज नई दिल्ली में सहकारिता नीति पर राष्ट्रीय सम्मेलन को संबोधित किया। इस अवसर पर सहकारिता राज्यमंत्री श्री बी एल वर्मा और सहकारिता सचिव श्री देवेंद्र कुमार सिंह सहित अनेक गणमान्य व्यक्ति उपस्थित थे।
इस अवसर पर अपने संबोधन में केन्द्रीय गृह एवं सहकारिता मंत्री ने कहा कि ये दो दिन का सेमिनार नई सहकार नीति पर विचार करने के लिए आयोजित किया गया है। उन्होंने कहा कि 6 जुलाई, 2021 का दिन भारत के सहकारिता क्षेत्र के लिए बहुत महत्वपूर्ण दिन था क्योंकि सालों से सहकारिता क्षेत्र से जुड़े लोगों की मांग थी कि भारत सरकार सहकारिता के सिद्धांत को मान्यता दे और इसके काम को गति देने के लिए एक अलग मंत्रालय का निर्माण करे। अंततोगत्वा, 6 जुलाई, 2021 को देश के प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी ने निर्णय लिया और भारत में पहली बार भारत सरकार ने सहकारिता मंत्रालय की स्थापना ही। इस मंत्रालय की स्थापना के पीछे उद्देश्य बहुत स्पष्ट है। मोदी जी ने सहकारिता क्षेत्र के सामने ‘सहकार से समृद्धि’ का लक्ष्य रखा है। क़ानून की दृष्टि से देखें, तो 1904-05 से देश में सहकारिता का अस्तित्व आया और अलग दृष्टि से देखें तो हमारे यहां सहकारिता का विचार सदियों पुराना है। हर क्षेत्र में सहकारिता के सिद्धांत के आधार पर भारत में काम होता रहा है। लेकिन क़ानून की रचना के अनुसार लगभग 100-125 वर्षों से सहकारिता भारत में है। इस यात्रा में गौरवपूर्ण योगदान सहकारिता का रहा है। इसके साथ-साथ ग्रामीण विकास और गरीब व्यक्तियों को रोज़गार देने में, वो सम्मानपूर्वक जीवन जी सकें, ऐसा एक आर्थिक मॉडल बनाने में, सहकारिता की एक बहुत बड़ी भूमिका रही।
श्री अमित शाह ने कहा कि आज़ादी के बाद तुरंत ही, विशेषकर सरदार पटेल के प्रयासों से, देशभर में सहकारिता आंदोलन को एक बड़ी गति मिली। लेकिन कालक्रम में ये नज़र में आया कि लगभग 1960-70 के दशक से सहकारिता आंदोलन में स्थिरता आई और गिरावट भी। कई राज्यों में ये गिरावट देखने को मिली। विकसित राज्यों में कोई गांव ना रहे जहां पैक्स (PACS), दुग्ध सहकारी मंडी, कोऑपरेटिव, क्रेडिट सोसायटी या सहकारी बैंक ना हो। कोई ऐसा क्षेत्र ना रहे जहां कोऑपरेटिव की संभावना और पहुंच ना हो, जैसे मत्स्य उद्योग, विनिर्माण, उत्पादन जैसे कई क्षेत्रों में काफ़ी संभावना है। विकसित राज्यों को सेचुरेशन की ओर ले जाना, विकासशील राज्यों को विकसित बनाना और पिछड़े राज्यों को सीधे विकसित राज्यों की श्रेणी में ले जाने के लिए रणनीति बनाना।
केन्द्रीय सहकारिता मंत्री ने कहा कि मुनाफ़े का समान रूप से वितरण केवल कोऑपरेटिव कर सकती है। पूरा मुनाफ़ा शेयरधारकों के पास जाए और प्रबंधन पर ख़र्च न्यूनतम हो, ऐसा केवल सहकारिता के माध्यम से हो सकता है। देश का एक बहुत बड़ा तबक़ा जो आर्थिक रूप से पिछड़ा हुआ है, सहकारिता एकमात्र ऐसा मॉडल है जो देश के 80 करोड़ लोगों को आर्थिक रूप से संपन्न बना सकता है। ये प्रयोग और इनके अच्छे परिणामों को भी हमने देखा है, चाहे लिज्जत, अमूल या कर्नाटक की मिल्क कोऑपरेटिव्स हों।
श्री अमित शाह ने कहा कि हमें सहकारिता आंदोलन को आज के समय की चुनौतियों के लिए तैयार करना होगा, स्थिरता को दूर करना होगा, बदलाव लाने होंगे, पारदर्शिता लानी होगी, तभी छोटे से छोटे किसान का भरोसा हम पर बढ़ेगा। हमें चुनाव में लोकतांत्रिक मूल्यों को क़ानून के तहत स्वीकारना होगा तब संभावनाओं को प्लेटफ़ॉर्म मिलेगा और जब तक संभावनाओं को मंच नहीं मिलता, कोई क्षेत्र प्रगति नहीं कर सकता। अगर पोटेंशियल वाले लोगों को मंच देना है तो लोकतांत्रिक तरीक़ों को हमें और मज़बूती, सुदृढ़ता और कठोरता के साथ लागू करना होगा। हमें प्रोफ़ेश्नलिज़्म को स्वीकारना होगा और कॉर्पोरेट गवर्नेंस के सभी सिद्धातों को कोऑपरेटिव की भावना के साथ स्वीकारना होगा। हमारे देश में इफ़्को, अमूल जैसे कई मॉडल हैं जो चलते तो कॉर्पोरेट गवर्नेंस के सिद्धांतों के आधार पर लेकिन उन्होंने कोऑपरेट्व की भावना को भी अक्षुण्ण रखा है। इस प्रकार के मॉडल हमें खड़े करने होंगे। सहकारी संस्थाओं को कार्यपूंजी और प्लांट और मशीनरी के लिए ऋण ठीक से मिल जाए, हमें इसके लिए भी इन्फ़्रास्ट्रक्चर खड़ा करना होगा।
केन्द्रीय गृह एवं सहकारिता मंत्री ने आज मैं जब कह रहा हूं कि नई सहकारी नीति की आवश्यकता है तो उस वक्त हमें अपराध भाव से अपने परफॉर्मेंस को देखने की जरूरत नहीं है। देश में आज लगभग 8,55,000 कोऑपरेटिव अच्छे चल रहे हैं, 1,77,000 क्रेडिट सोसाइटी चल रही हैं, अन्य 700,000 सहकारी समितियां चल रही हैं, 17 राष्ट्रीय स्तर के सहकारी संघ हैं, 33 स्टेट कोऑपरेटिव बैंक हैं, 63,000 से ज्यादा एक्टिव पैक्स हैं और उनमें लगभग सभी गांवों को समाहित कर लिया गया है और 12 करोड से ज्यादा सदस्य हैं और लगभग 91% गांवों में आज कोऑपरेटिव्स की उपस्थिति है। यह बताता है कि हमारा काम कितना सरल है, इतनी मजबूत नींव पर एक इमारत खड़ी करनी है। धीरे-धीरे हमारी पॉलिसी, हमारे कार्यकलाप और जरूरत पड़े तो कानून भी, जो कालबाह्य होता जा रहा है उसे हमें सोच विचार कर बदलना पड़ेगा और देश के विकास में ढेर सारा योगदान कोऑपरेटिव का है।
श्री अमित शाह ने कहा कि हमारा आधार बहुत मज़बूत है और इस पर बहुत बड़ी इमारत बनानी है। जो बाधाएँ हैं, उन्हें नए प्रावधान कर, नई नीति बनाकर और सामंजस्य बिठाकर हटाना है और यह तभी हो सकता है कि समग्रता से आज की सभी जरूरतों को पूरा करने वाली एक सहकारी नीति बनाई जाए। मुझे लगता है कि 8-9 महीने में हम एक संपूर्ण अद्यतन सहकारी नीति देश के सामने रख पाएंगे जो पैक्स से लेकर एपैक्स तक सभी सहकारी समितियों की जरूरतों को एड्रेस करेगी और एक ऐसा वातावरण बनाएगी जिससे सहकारिता का विस्तार हो। इसमें नए आयाम और क्षेत्र जुड़ें और वह TEAM भावना से ही हो सकता है। टीम से मेरा मतलब है – T ट्रांसपेरेंसी, E एंपावरमेंट, A आत्मनिर्भर और M मॉडर्नाइजेशन। पूरे सहकारिता क्षेत्र का कंप्यूटराइजेशन और जो बड़ी-बड़ी सहकारी समितियां है उनके कामकाज में भी मॉडर्नाइजेशन और प्रोफेशनलिज्म लाना होगा।
केन्द्रीय गृह एवं सहकारिता मंत्री ने कहा कि नई सहकारी नीति के उद्देश्य सहकार मंत्रालय तय करना नहीं चाहता, हम इसे ओपन छोड़ना चाहते हैं। दो दिन में सहकार विभाग की वेबसाइट पर सहकारिता नीति के लिए देश की सभी भाषाओं में सुझाव को निमंत्रण देंगे। उन्होंने कहा कि ग्रामीण सहकारी समिति चलाने वाले लोगों को, छोटी सी कोऑपरेटिव बैंक चलाने वाले लोगों को दिक्कत आती है। जब तक उनके सुझाव नहीं आ जाते, हो सकता है वह सुझाव सहकारिता की नीति बनाने के लिए उपयोग ना हों मगर सहकारिता की बाधाएं भी तो दूर करनी है। अगर एक ही एक्सरसाइज से दो काम होते हैं तो यह करना चाहिए।
श्री अमित शाह ने कहा कि सहकारिता की नई नीति जो बनेगी इसमें कम से कम इतनी चीजों को तो हमने एड्रेस करना चाहिए। जैसे, फ्री रजिस्ट्रेशन, राजनीतिक उद्देश्य से आज कोऑपरेटिव सोसायटी का रजिस्ट्रेशन विशेषकर एग्रीकल्चर कोऑपरेटिव सोसायटी का रजिस्ट्रेशन बंद हो गया है। फ्री रजिस्ट्रेशन के लिए हम इसमें क्या प्रोविजन प्रोविजन कर सकते हैं। दूसरा, पारदर्शिता, एडमिनिस्ट्रेशन, भर्ती और प्रशिक्षकों और कर्मचारियों के प्रशिक्षण में पारदर्शिता। कंप्यूटराइजेशन के लिए भी सुझाव चाहिए और लोकतांत्रिक पद्धति से चुनाव हो, जैसे भारत का चुनाव आयोग चुनाव कराता है। उन्होंने कहा कि क्या हम ऐसी तटस्थ संस्था का विचार कर सकते हैं जो कोऑपरेटिव चुनाव को हर स्तर पर पारदर्शिता तरीके से तटस्थता के साथ करा सके। तीसरा, अलग-अलग सहकारी संस्थाओं में समन्वय। एक गांव में 5 सहकारी संस्थाएं चल रही है मगर उन सब के बीच में समन्वय की कोई व्यवस्था नहीं है, ना एक दूसरे की मदद करने की कोई व्यवस्था है। हर गांव में जितने भी कोऑपरेटिव्स हैं, इसकी एक नोडल कोआपरेटिव बनकर वो सिर्फ समन्वय का काम करेगी। मुझे लगता है कि यह समय की जरूरत है और अगर यह 50 साल पहले किसी ने बना लिया होता तो बहुत सारी कोऑपरेटिव्स आज बंद नहीं होती। चौथा बिंदु, राज्यों के कानूनों के बीच संवाद से समानता लाने का प्रयास। राज्य का कोऑपरेटिव कानून एक्सक्लूजिवली राज्य की विधानसभा का अधिकार है, लेकिन संवाद करके, समन्वय बनाकर और सहमति से कानून के बीच समानता लाए बगैर कोऑपरेटिंव लंबा नहीं चल सकता। कोई चीज थोपकर नहीं की जा सकती, इस पर हमें विचार करना होगा। पांचवा, नए आयामों को तराशना, जैसे इंश्योरेंस, हेल्थ, टूरिज्म, प्रोसेसिंग, स्टोरेज और सेवा क्षेत्र। मगर कोऑपरेटिव को नए आयामों में भी ले जाकर इसका दायरा बढ़ाना चाहिए जिसके लिए नई सहकारिता नीति में इसकी व्यवस्था करनी पड़ेगी। छठा बिंदु, हर गांव तक पहुंच बनाना। मोदी जी ने कहा है कि अमृत महोत्सव वर्ष में हर क्षेत्र में अपना एक लक्ष्य करना चाहिए। क्या हम लक्ष्य तय कर सकते हैं कि आज हम आज़ादी के 75वें साल में हैं और 85 साल होते होते देश के हर गांव में दुग्ध उत्पादक मंडी और पैक्स जरूर होंगे। कम से कम इतना हम जरूर कर सकते हैं। एक क्रेडिट सोसाइटी भी बना लेते हैं तो मैं मानता हूं कि देश के आर्थिक विकास और 60- 70 करोड़ लोग, जो विकास की दौड़ में पीछे रह गए, उन लोगों को सम्मानजनक जीवन देने में सहकारिता सफल हो सकती है। निष्क्रिय पैक्स को सक्रिय बनाने के लिए या तो उसे लिक्विडेशन में ले जाकर नए पैक्स की रजिस्ट्रेशन की अनुमति देने के लिए राज्यों को इनीशिएटिव लेने पड़ेंगे। हर गांव के अंदर पहुंच बढ़ाना ही हमारी नई पॉलिसी का लक्ष्य होना चाहिए। गांव को आत्मनिर्भर और मज़बूत बनाना भी हमारा सहकारिता नीति का लक्ष्य होना चाहिए। किसान की आय दोगुना करना भी सहकारिती नीति का ही लक्ष्य होना चाहिए। सभी प्रकार की सहकारिता की संस्थाओं को आर्थिक रूप से मज़बूत बनाने के लिए भी सहकारी नीति में प्रावधान होना चाहिए। मैं आपके सामने सोचने के लिए बिंदु रख रहा हूं। लेकिन अगर एक परिपूर्ण और आज के समय के लिए उपयुक्त सहकारिता नीति हम बनाते हैं तो मोदी जी का पांच ट्रिलियन डॉलर अर्थव्यवस्था और किसानों की आय दोगुनी करने के लक्ष्यों में अपेक्षा से कई गुना ज़्यादा योगदान देश के अर्थतंत्र में कर सकते हैं।
केन्द्रीय सहकारिता मंत्री ने कहा कि इस स्पिरिट के साथ हर ज़िले में हमारे सहकार
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