SC पहुंचे कांग्रेस सांसद, कहा- CJI पर अभियोग चलाने का उपराष्‍ट्रपति को दें आदेश

नई दिल्‍ली । कांग्रेस के दो सांसदों ने सोमवार को सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल कर राज्यसभा के सभापति और देश क उपराष्ट्रपति वेंकैया नायडू के CJI दीपक मिश्रा के खिलाफ सांसदों द्वारा दिए गए महाभियोग नोटिस को अस्वीकार करने के आदेश को चुनौती दी है।

प्रताप सिंह बाजवा और एमी हर्षद राय याजनिक राज्‍यसभा से कांग्रेस सांसद हैं। इन्‍होंने अपनी याचिका में कोर्ट से कहा है कि उपराष्‍ट्रपति नायडू को अभियोग प्रस्‍ताव पर कार्यवाही शुरू करने का आदेश दिया जाए।

चुनौती का कोई कानूनी आधार नहीं:BJP

कांग्रेस सांसदों के सुप्रीम कोर्ट जाने पर सीनियर एडवोकेट व भाजपा नेता अमन सिन्‍हा ने कहा कि सीजेआइ दीपक मिश्रा के खिलाफ अभियोग के नोटिस को खारिज किए जाने को लेकर दिए जाने वाले राज्‍यसभा अध्‍यक्ष के नोटिस को चुनौती देने का कोई कानूनी आधार नहीं। राज्‍यसभा अध्‍यक्ष का निर्णय उचित था। अभियोग की नोटिस में दर्ज एक-एक मामले पर उन्‍होंने सही तरीके से विचार कर निर्णय लिया।

उपराष्‍ट्रपति ने किया था खारिज

उपराष्ट्रपति वेंकैया नायडू ने महाभियोग प्रस्ताव लाए जाने के नोटिस को यह कहते हुए खारिज कर दिया था कि सीजेआई के खिलाफ आरोप पूरी तरह से स्पष्ट नहीं हैं। इस पर कांग्रेस नेता और पूर्व कानून मंत्री कपिल सिब्बल ने कहा था कि उपराष्ट्रपति ने बहुत जल्दबाजी में प्रस्ताव को खारिज किया है, जबकि उन्होंने किसी विशेषज्ञ से इसके लिए सलाह भी नहीं ली।

जस्‍टिस चेलमेश्‍वर करेंगे मामले की सुनवाई

कांग्रेस नेता और वकील कपिल सिब्बल व प्रशांत भूषण ने दूसरे नंबर के वरिष्ठतम जज जस्टिस चेलमेश्वर की कोर्ट में याचिका दायर की और उसे सुनवाई के लिए लिस्ट करने का अनुरोध किया। शुरू में जस्टिस चेलमेश्वर ने सुनवाई से मना किया बाद में कहा कि वे मंगलवार को इस पर आदेश देंगे। जब जस्टिस चेलमेश्वर ने शुरू में सुनवाई से इंकार किया तब वकीलों का कहना था कि CJI मास्टर आफ रोस्टर हैं लेकिन ये मामला उन्हें पद ये हटाने का है इसलिए वे सुनवाई नहीं कर सकते। हालांकि जस्टिस चेलमेश्वर की पीठ ने फिर भी आज कोई आदेश नहीं दिया और उन्हें मंगलवार को आने को कहा।

याचिका के अनुसार, उपराष्ट्रपति ने महाभियोग प्रस्ताव को खारिज करने का जो फैसला दिया था, वह राजनीति से प्रेरित है। ऐसा करना लोकतंत्र के खिलाफ और अवैधानिक है। महाभियोग प्रस्ताव के खारिज होने के बाद ऐसा लगता है कि राजनीतिक कारण संवैधानिक आधार से ज्यादा अहम हो गए हैं।

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