नई दिल्ली । दिल्ली के विभिन्न टोल गेटों और प्रमुख चौराहों पर लगने वाला यातायात जाम दिल्ली वासियों के लिए एक बड़ी समस्या बन गया है। यह समस्या भी न सिर्फ पर्यावरण और अर्थव्यवस्था बल्कि स्वास्थ्य के लिए भी खासी नुकसानदायक साबित हो रही है।
इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि कमोबेश हर रोज लगने वाले इस जाम के दौरान साल भर में हजारों करोड़ रुपये का ईंधन बर्बाद हो जाता है।
आइआइटी मद्रास द्वारा कुछ समय पूर्व की गई इस शोध के तहत दिल्ली के सभी टोल गेटों और बड़े चौराहों का अध्ययन किया गया। इस दौरान पाया गया कि टोल गेटों पर जाम के दौरान जबकि चौराहों पर लालबत्ती होने के दौरान भी वाहन चालक गाडिय़ों का इंजन ऑन रखते हैं।
अगर इंजन बंद करते भी हैं तो उन्हें बार-बार उसे चालू करके गाड़ी आगे बढ़ाने पड़ती है। इसी क्रम में बड़ी मात्रा में ईंधन की बर्बादी होती है।
शोध के मुताबिक यह बर्बादी साल भर में करीब 60 हजार करोड़ रुपये की आंकी गई है। यह राशि दिल्ली के वित्त वर्ष 2017- 2018 के कुल वार्षिक बजट से भी करीब 14 फीसद ज्यादा है। शोध में यह भी बताया गया है कि सन 2030 तक ईंधन की यह बर्बादी 98 हजार करोड़ रुपये तक पहुंच जाने की संभावना है।
टोल गेटों सहित चौराहों पर लगने वाले इस जाम से सिर्फ ईंधन की ही बर्बादी नहीं होती बल्कि पर्यावरण भी दूषित होता है। सेंटर फॉर साइंस एंड एन्वायरमेंट (सीएसई) की जून माह में ही की गई एक शोध में सामने आया है कि चालू इंजन के साथ रेंगते वाहनों की लंबी कतार वायु प्रदूषण में भी इजाफा कर रही है।
इस दौरान हवा में नाइट्रोजन ऑक्साइड की मात्रा 38 फीसद तक बढ़ जाती है। दिल्ली को गुरुग्राम, फरीदाबाद, नोएडा और गाजियाबाद से जोडऩे वाले लिंक रोडों पर यह स्थिति और भी ज्यादा भयावह होती है।
एयर क्वालिटी मॉनिटरिंग विंग के प्रोग्राम मैनेजर विवेक चटटोपाध्याय इसमें संदेह नहीं कि टोल गेटों पर अनेक स्तरों पर अव्यवस्था देखने में आती है। इसी की वजह से वहां पर ट्रैफिक जाम लगता है। हालांकि अब मैन्यूल टोल कलेक्शन लगभग खत्म हो गया है, लेकिन कई बार सर्वर डाउन होने से कंप्यूटरीकृत सिस्टम में भी परेशानी आ जाती है।
टोल कर्मियों द्वारा लेन का अनुशासन ठीक से भी पालन नहीं कराया जाता। इसके अलावा ट्रक भी इस जाम में बड़ी भूमिका निभाते हैं। इस दिशा में सुधार के लिए विभिन्न स्तरों पर काम चल रहा है।
टोल गेटों पर जल्द ही वे-इन मोशन मशीन और रेडियो फ्रीक्वेंसी आइडेंटीफिकेशन (आरएफआइडी) तकनीक शुरू होने की प्रक्रिया भी जारी है। इससे ट्रकों को टोल से जल्द निकालने में मदद मिलेगी और तब जाम नाममात्र का रह जाएगा।
पर्यावरण प्रदूषण नियंत्रण प्राधिकरण के चैयरमेन डॉ. भूरेलाल का कहना है कि यह सही है कि टोल गेट दिल्ली की आबोहवा और यातायात व्यवस्था दोनों को ही व्यापक स्तर पर प्रभावित कर रहे हैं। खासकर दूसरे राज्यों से आने वाले ट्रक और डीजल चालित अन्य वाहन जाम का सबब भी बनते हैं और वायु प्रदूषण भी फैलाते हैं।
इनके पहियों तक में मिटटी लगकर आती है। लेकिन हाल ही में हमने देर रात के समय विभिन्न टोल गेटों का निरीक्षण कर इनकी खामियां सुधारने का प्रयास किया है। उम्मीद की जा सकती है कि जल्द ही मौजूदा स्थिति बेहतर होगी।
News Source: jagran.com
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