पूज्य सद्गुरुदेव आशिषवचनम्
।। श्री: कृपा ।।
पूज्य “सद्गुरुदेव” जी ने कहा – जीवन रचना में विचारों की प्रमुख एवं महत्वपूर्ण भूमिका है। स्वस्थ्य, विधेयक और पवित्र विचार ही सकारात्मक सृजन, जीवन सिद्धि और सफलता के उत्प्रेरक एवं मूल-आधार हैं। दिव्य विचार मनुष्य की श्रेष्ठ सम्पदा है। अतः अपने मनोगत विचारों के प्रति सचेत रहें ..!विफल होने का कारण हमारे जीवन में किसी व्यापक उद्देश्य या सोच का नहीं होना है। सोच जब तक तंग है, जीवन तब तक जंग है। विचारों का तेज ही आपको ओजस्वी बनाता है और जीवन संग्राम में एक कुशल योद्धा की भाँति विजय भी दिलाता है। जिसके विचार प्रबुद्ध हैं उसकी आत्मा प्रबुद्ध है और जिसकी आत्मा प्रबुद्ध है उससे परमात्मा दूर नहीं है। इसलिए शुभ-विचारों को जाग्रत कीजिये, उन्हें परिष्कृत कीजिये और जीवन के हर क्षेत्र में पुरस्कृत होकर देवताओं के तुल्य ही जीवन व्यतीत करिये। विचारों की पवित्रता से ही मनुष्य का जीवन उज्ज्वल एवं उन्नत बनता है, इसके अतिरिक्त जीवन को सफल बनाने का कोई उपाय मनुष्य के पास नहीं है। विचार की प्रचण्ड शक्ति असीम, अमर्यादित, अणुशक्ति से भी प्रबल है।
विचार जब घनीभूत होकर संकल्प का रूप धारण कर लेता हैं तो स्वयं प्रकृति अपने नियमों का व्यतिरेक करके भी उसको मार्ग देती है। इतना ही नहीं उसके अनुकूल बन जाती है। मनुष्य जिस तरह के विचारों को प्रश्रय देता है, उसके वैसे ही आदर्श, हाव-भाव, रहन-सहन ही नहीं, शरीर में तेज, मुद्रा आदि भी वैसे ही बन जाते हैं। जहाँ सद्विचार की प्रचुरता होगी वहाँ वैसा ही वातावरण बन जायेगा। जहाँ घृणा, द्वेष, क्रोध आदि से सम्बन्धित विचारों का निवास होगा वहाँ नारकीय परिस्थितियों का निर्माण होना स्वाभाविक है। मनुष्य में यदि इस तरह के विचार घर कर जायें कि मैं अभागा हूँ, दुखी हूँ, दीन-हीन हूँ उसका अपकर्ष कोई भी शक्ति रोक नहीं सकेगी। वह सदैव दीन-हीन परिस्थितियों में ही पड़ा रहेगा। इसके विपरीत मनुष्य में सामर्थ्य, उत्साह, आत्म-विश्वास, गौरवयुक्त विचार होंगे तो प्रगति-उन्नति स्वयं ही अपना द्वार खोल देगी। अतः सद्विचारों की सृजनात्मक शक्ति का उपयोग ही व्यक्ति को सर्वतोमुखी सफलता प्रदान करता है …।
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पूज्य “आचार्यश्री” जी ने कहा – विचारों की शक्ति अपार है, विचार ही संसार की धारणा के आधार और मनुष्य के उत्थान-पतन के कारण होते हैं। विचारों द्वारा प्रशिक्षण देकर मस्तिष्क को किसी भी ओर मोड़ा या लगाया जा सकता है। अस्तु, बुद्धिमानी इसी में है कि मनुष्य मनोविकारों और बौद्धिक स्फुरणाओं में से वास्तविक विचार चुन ले और निरन्तर उनका चिन्तन एवं मनन करते हुए, मस्तिष्क का परिष्कार कर डाले। इस अभ्यास से कोई भी कितना ही बुद्धिमान, परोपकारी, परमार्थी और मुनि, मानव या देवता का विस्तार पा सकता है। सरलता से बड़ी कोई सिद्धि नहीं है। पानी जैसे बनो जो अपना रास्ता स्वयं बनाता है। पत्थर जैसे ना बनो जो दूसरों का भी रास्ता रोक लेता है। हजारों दीयों को एक ही दिए से, बिना उसका प्रकाश कम किए प्रज्वलित किया जा सकता है। खुशियां बांटने से बढ़ती है। हमारे विचार ही हमारे जीवन का आधार होते हैं। अच्छे और शुभ विचारों का हमारे जीवन में एहम योगदान रहता है।
अच्छे संस्कार और अच्छे विचार घर के अच्छे वातावरण में जन्म लेते हैं। सकारात्मक रहना महत्वपूर्ण है, क्योंकि सुंदरता अंदर से बाहर आती है। आंतरिक सौंदर्य आत्म सुधार का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा है। अगर आप दुनिया से अपने लिए सर्वश्रेष्ठ पाना चाहते है, तो आपको दुनिया को अपना सर्वश्रेष्ठ देना भी होगा। विचारवान लोग ही सफल होते है और सफल लोग अपने फैसले से दुनिया बदल देते हैं। जबकि नाकामयाब लोग दुनिया के डर से अपने फैसले बदल देते हैं। हमारी समस्या का समाधान केवल हमारे पास है। दूसरों के पास तो केवल सुझाव है। तो आइये ! सफलता, असफलता की संभावनाओं के आकलन में अपना समय नष्ट न करें, अपने लक्ष्य को निर्धारित करें और कार्य आरम्भ करें …।
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