पूज्य सद्गुरुदेव आशीषवचनम्
।। श्री: कृपा ।।
पूज्य “सद्गुरुदेव” जी ने कहा – भगवान भक्त-वत्सल, परम-कृपालु और सर्वत्र नित्य-विद्यमान सत्ता हैं। विशुद्ध अन्तःकरण-आर्द्र भाव से की गई प्रार्थना से वो शीघ्र ही द्रवीभूत हो जाते हैं। प्रभु नृसिंह आसुरी-वृत्तियों का नाश कर प्रह्लाद की भांति दिव्य आह्लादकारी वृत्तियों का सृजन करें। अध्यात्म की राह पर आगे बढ़ने की प्रेरणा दे रहा है यह संक्रमण काल। अध्यात्म का अर्थ है – अपने वास्तविक स्वरूप में लौटना। अध्यात्म स्वभाव की यात्रा है। मनुष्य सत्ता में विद्यमान सनातन महासत्ता सर्वत्र चित-घन, पूर्ण-परमानंद स्वरूप है। यह विश्वरूपा प्रकृति उसका ही एक धर्म परिणाम है, सनातन का धर्म परिणाम सनातन होता है। परम सब प्रकार से पूर्ण है, अतः उसमें कुछ भी अपूर्णता नहीं। इस सत्य का अनावरण है – अध्यात्म। स्वस्थ समाज के लिए आत्म-जागरण आवश्यक है। व्यक्ति को संस्कारित करना ही अध्यात्म का काम है। अध्यात्म की पवित्र ज्योति में जीवन संबंधी सम्पूर्ण समस्याओं के संदर्भ नए-नए अर्थों, अपरिभाषित व्याख्याओं और सरल परिभाषाओं के रूप में प्रकट होते हैं। इसी से मनुष्य स्वयं को ढंग से समझ पाता है। उसे पता चलता है कि प्राकृतिक जीवन का अंतिम लक्ष्य आधुनिकता की अनेक छिद्रयुक्त नावों पर बैठ यात्रा कर दुर्घटनाग्रस्त होने के लिए नहीं, अपितु सहज-सरल प्राकृतिक जीवन जीने के लिए है …।
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