न्यूज़ डेस्क : किसी वैज्ञानिक को स्पेशल सुरक्षाबलों की कड़ी सुरक्षा के बीच खास गाड़ियों के काफिले में देखना आम बात नहीं है। वो भी तब जब ये सुरक्षा व्यवस्था देश के राष्ट्रपति के लिए तैनात की गई सुरक्षा व्यवस्था से अधिक हो। लेकिन यहां बात हो रही है… डॉ. अब्दुल कादिर खान की जिन्हें ए.के. खान के नाम से भी जाना जाता है और ये कोई आम वैज्ञानिक नहीं हैं।
डॉ. अब्दुल कादिर खान को पाकिस्तान के परमाणु कार्यक्रम का जनक माना जाता है। इस साल 1 अप्रैल को डॉ. खान 83 साल के हो गए हैं। पेशे से इंजीनियर डॉ. खान एक दशक से अधिक वक्त तक परमाणु बम बनाने की तकनीक, मिसाइल बनाने के लिए यूरेनियम की एनरिचमेन्ट, मिसाइल में लगने वाले उपकरण और पुर्जों के व्यापार में काम कर चुके हैं। लेकिन, ये पाकिस्तान ही था जहां उन्हें काफी शोहरत हासिल हुई। कहा जाता था कि 1980 और 1990 के दशक में इस्लामाबाद के सबसे ताकतवर व्यक्ति डॉ. खान ही थे। स्कूलों की दीवारों पर उनकी तस्वीरें दिखती थीं, उनकी तस्वीरें सड़कों-गलियों में पोस्टरों पर दिखती थीं। उन्हें 1996 और 1999 में दो बार देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मान निशान-ए-इम्तियाज से भी नवाजा गया।
भारत से लेकर यूरोप तक का सफर करने वाले डॉ. अब्दुल कादिर खान का जन्म अविभाजित भारत के भोपाल में 1935 में एक साधारण परिवार में हुआ था। उस वक्त यहां ब्रिटेन की हुकूमत थी। जब भारत आजाद हुआ को खान परिवार पाकिस्तान में जाकर बस गया। 1960 में पाकिस्तान के कराची विश्वविद्यालय से मेटालर्जी यानि धातु विज्ञान की पढ़ाई करने के बाद खान ने परमाणु इंजीनियरिंग से संबंधित और पढ़ाई करने के लिए पश्चिमी जर्मनी, बेल्जियम और नीदरलैंड्स का रुख किया।
साल 1972 में उन्हें एमस्टरडैम में मौजूद फिज़िकल डायनमिक्स रिसर्च लेबोरेटरी में नौकरी मिली। कंपनी छोटी थी लेकिन एक मल्टीनेशनल कंपनी यूआरइएनसीओ (यूरेन्को) के साथ इसका करार था। बाद में परमाणु उपकरणों और ख़ुफ़िया जानकारी के बाजार की दुनिया में डॉ. खान के लिए उनका ये काम अहम रहा।
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