न्यूज़ डेस्क : मीडिया खबरों के मुताबिक उस टाइम कैप्सूल का नाम ‘कालपात्र’ दिया गया था। कहा जाता है कि 1970 के दशक में जब इंदिरा गांधी की लोकप्रियता काफी ज्यादा थी, जब उन्होंने लालकिले के परिसर में इस टाइम कैप्सूल को रखवाया था। यह भी दावा किया गया कि इस टाइम कैप्सूल में आजादी मिलने के बाद के 25 सालों के महत्वपूर्ण घटनाक्रमों का जिक्र है और उससे जुड़े साक्ष्य हैं। हालांकि विपक्ष ने इसकी आलोचना करते हुए कहा था कि वह गांधी परिवार का महिमामंडन करने के लिए ऐसा कर रही हैं।
यह पहला मामला नहीं : हालांकि ऐसा नहीं है कि टाइम कैप्सूल को जमीन के भीतर रखने का यह पहला मामला होगा। भारत के इतिहास में ऐसा पहले भी हो चुका है। भारत की पहली महिला प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ऐसा कर चुकी हैं। जेएनयू के प्रोफेसर आनंद रंगनाथन ने एक तस्वीर ट्वीट कर यह जानकारी दी। पूर्व पीएम इंदिरा गांधी ने 15 अगस्त, 1973 को लालकिले के पास एक टाइम कैप्सूल जमीन में दबाया था। हालांकि यह पता नहीं चल सका है कि उसमें क्या साक्ष्य थे और क्या जानकारियां थीं, जिसे सहेजा गया था।
मीडिया खबरों के मुताबिक उस टाइम कैप्सूल का नाम ‘कालपात्र’ दिया गया था। कहा जाता है कि 1970 के दशक में जब इंदिरा गांधी की लोकप्रियता काफी ज्यादा थी, जब उन्होंने लालकिले के परिसर में इस टाइम कैप्सूल को रखवाया था। यह भी दावा किया गया कि इस टाइम कैप्सूल में आजादी मिलने के बाद के 25 सालों के महत्वपूर्ण घटनाक्रमों का जिक्र है और उससे जुड़े साक्ष्य हैं। हालांकि विपक्ष ने इसकी आलोचना करते हुए कहा था कि वह गांधी परिवार का महिमामंडन करने के लिए ऐसा कर रही हैं।
सत्ता बदली तो खोदकर निकाला गया टाइम कैप्सूल : तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी का यह कदम पहले से ही विपक्षी नेताओं को खटक रहा था। मोरारजी देसाई ने चुनावों में वादा किया कि अगर उनकी सरकार बनी तो इसे खोदकर निकाला जाएगा। 1977 में कांग्रेस ने सत्ता गंवाई और उनकी सरकार बनी।
तत्कालीन पीएम मोरारजी देसाई ने वादा निभाते हुए इसे खोदकर निकलवाया भी। मगर इसका कभी खुलासा नहीं हुआ कि इस कालपत्र में क्या लिखा हुआ था। इतने साल बीत जाने के बाद भी इस राज से अभी तक परदा नहीं हटा है।
आखिर क्या है टाइम कैप्सूल
दरअसल टाइम कैप्सूल एक ऐसा सुरक्षित कंटेनर होता है, जो हर तरह का मौसम झेलने में सक्षम होता है। इसे विशेष तत्वों से बनाया जाता है। इसे जमीन की काफी ज्यादा गहराई में दफनाया जाता है ताकि सैकड़ों साल तक इसमें रखे साक्ष्य को कोई नुकसान न पहुंचे। इसका मकसद इतिहास को सुरक्षित रखना है ताकि भविष्य के लोग इसके बारे में जान सकें।
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