भारतीय सैन्य अकादमी से प्रशिक्षण प्राप्त कर चूका है तालिबान का यह प्रमुख नेता ‘स्टानिकजई’, जनोये पूरी कहानी
न्यूज़ डेस्क : अफगानिस्तान में तालिबान सरकार बनाने की तैयारी में है। इसका शीर्ष नेतृत्व कौन है, सरकार में कौन शामिल होगा, इस बात को लेकर दुनिया भर में खूब चर्चा हो रही है। तालिबान की कमान हिबतुल्लाह अखुंदजादा के हाथों में है। मुल्ला अब्दुल गनी बरादर के राष्ट्रपति बनने की चर्चा के बीच मुल्ला मोहम्मद याकूब, सिराजुद्दीन हक्कानी, और शेर मोहम्मद अब्बास स्टानिकजई के भी सरकार में शामिल होने की संभावना है। आपको जानकार हैरानी होगी कि तालिबान के शीर्ष नेतृत्व में शामिल बेहद कट्टर नेता स्टानिकजई का भारत से भी संबंध रहा है।
कौन है शेर मोहम्मद अब्बास स्टानिकजई
तालिबान के प्रमुख चेहरों में से एक शेर मोहम्मद अब्बास स्टानिकजई अमेरिका के साथ हुए शांति समझौते में भी शामिल रहा था। वह बेहद कट्टर धार्मिक नेता है। तालिबान की सरकार में उप मंत्री पद पर रहा चुका है। वह पिछले एक दशक से दोहा में तालिबान के राजनीतिक कार्यालय में रह रहा है। 2015 में उसे तालिबान के राजनीतिक कार्यालय का प्रमुख बनाया गया था। उसने कई देशों की राजनयिक यात्राओं पर तालिबान का प्रतिनिधित्व किया है।
भारत से क्या है संबंध
शेर मोहम्मद अब्बास स्टानिकजई देहरादून में भारतीय सैन्य अकादमी (आइएमए) के 1982 बैच में रह चुका है। यहां सहपाठी उन्हें ‘शेरू‘ कह कर बुलाते थे। जब वह आईएमए में भगत बटालियन की केरेन कंपनी में शामिल हुआ था तब वह 20 साल का होने वाला था। उसके साथ 44 अन्य विदेशी कैडेट भी इस बटालियान का हिस्सा थे।
स्टानिकजई के सहपाठी रह चुके मेजर जनरल डीए चतुर्वेदी (सेवानिवृत्त) ने टाइम्स ऑफ इंडिया को बताया कि जब वह देहरादून में था तब उसके विचार बिल्कुल कट्टरपंथी नहीं थे। वह बहुत मिलनसार व्यक्ति था। वह एक आम अफगान कैडेट था जो यहां अपने समय का आनंद ले रहा था। चतुर्वेदी परम विशिष्ट सेवा पदक, अति विशिष्ट सेवा पदक और सेना पदक प्राप्त कर चुके हैं।
कर्नल (सेवानिवृत्त) केसर सिंह शेखावत, भी स्टानिकजई के सहपाठी रह चुके हैं। उन्हें उसके साथ सप्ताहांत में लंबी पैदल यात्रा अभियानों और नदी किनारे की यात्राओं याद आ रही हैं। कर्नल शेखावत ने अंग्रेजी अखबार को बताया है ऋषिकेश में जब हम गंगा नदी में नहाने गए तो तैराकी की चड्डी वाली तस्वीर में हम साथ हैं।
लोगार प्रांत के बाराकी बराक जिले में 1963 में जन्मा स्टानिकजई मूल रूप से पश्तून है और तालिबान में सबसे पढ़ा-लिखा नेता है। राजनीति विज्ञान में मास्टर्स करने के बाद उसने डेढ़ साल के लिए आईएमए में अपना प्री-कमीशन प्रशिक्षण पूरा किया था। यह सोवियत संघ के अफगानिस्तान पर कब्ज़ा करने के ठीक बाद हुआ था।
उस समय तक भारतीय सैन्य संस्थान ने अफगानों के लिए अपने दरवाजे खोल दिए थे। प्रशिक्षण पूरा करने के बाद वह लेफ्टिनेंट के रूप में अफगान नेशनल आर्मी में शामिल हुआ था। उसने सोवियत-अफगान युद्ध और अफगानिस्तान की मुक्ति के लिए लड़ाई लड़ी। 1996 में, उसने सेना छोड़ दी और तालिबान में शामिल हो गया।
क्या भारत के लिए तुरूप का पत्ता हो सकता है स्टानिकजई
उसके पूर्व सहपाठियों को लगता है कि भारत में उसके प्रशिक्षण की पृष्ठभूमि विदेश मंत्रालय के लिए एक तुरूप का पत्ता हो सकता है। सरकार चाहे तो स्टानिकजई के सहयोग से तालिबान के साथ बातचीत करने का एक रास्ता खोला जा सकता है। हालांकि भारत ने अभी तालिबान शासन को मान्यता देने के मुद्दे पर अपने पत्ते नहीं खोले हैं।
भारत ‘वेट एंड वाच’ की स्थिति में है क्योंकि अफगानिस्तान में हालात अस्थिर हैं। तालिबान के साथ बातचीत के सवाल पर जयशंकर ने कहा कि इस समय हमारी नजर काबुल में तेजी से बदल रहे हालात पर है। तालिबान और उसके प्रतिनिधि काबुल में हैं। हमें उनसे वहां से बात करनी होगी।
बताया जा रहा है कि इसी तालिबान नेता ने भारत सरकार को यह प्रस्ताव दिया था भारत अपनी राजनयिक मौजूदगी अफगानिस्तान में बनाए रखें। इस हालांकि हालांकि भारत ने उसकी बात को नहीं माना और सोमवार और मंगलवार को भारतीय राजदूत और अन्य कर्मचारियों को काबुल से निकाल लिया था।
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