पिछले 50 साल में यह पहला अवसर है जब कोई प्रधानमंत्री करेगा यह काम, जाने

न्यूज़ डेस्क : अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी यानी एएमयू 22 दिसंबर को अपना शताब्दी समारोह मनाने जा रही है। इसमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बतौर मुख्य अतिथि शामिल होंगे। पिछले 50 साल में यह पहला अवसर है जब प्रधानमंत्री अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के किसी कार्यक्रम को संबोधित करने जा रहे हैं। इससे पहले 1964 में तत्कालीन प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री ने एएमयू के दीक्षांत समारोह को संबोधित किया था। 

 

 

इस समारोह को यादगार बनाने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी एक विशेष डाक टिकट भी जारी करेंगे। अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो तारिक मंसूर ने बताया कि प्रधानमंत्री से वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए शताब्दी समारोह को संबोधित करेंगे। इस दौरान कार्यक्रम में केंद्रीय शिक्षा मंत्री रमेश पोखरियाल निशंक भी मौजूद रहेंगे। आइए जानते हैं एएमयू के गौरवशाली इतिहास के बारे में

 

 

1875 में बतौर स्कूल हुई शुरुआत :

17वीं शताब्दी के महान समाज सुधारक सर सैयद अहमद खां ने आधुनिक शिक्षा की जरूरत को देखते हुए 1875 में एक स्कूल शुरू किया था, जो आगे चलकर मोहम्डन एंग्लो ओरिएंटल कॉलेज के तौर पर जाना गया। दिसंबर 1920 में इसी कॉलेज को अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी बनाया गया। आज देश के एक जाने माने केंद्रीय विश्वविद्यालय के तौर पर ख्याति प्राप्त अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय यानी एएमयू में 250 से ज्यादा पाठ्यक्रम पढ़ाए जाते हैं। यहां समूचे भारत ही नहीं वरन विदेशों से भी छात्र उच्च शिक्षा प्राप्त करने के लिए आते हैं।  

 

 

कई पूर्व छात्र शीर्ष पदों पर रहे : 

एएमयू से शिक्षा प्राप्त कर चुके विद्यार्थी राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति के साथ-साथ दूसरे देशों में भी सत्ता की शीर्ष भूमिका तक पहुंचे हैं। देश के तीसरे राष्ट्रपति डॉ. जाकिर हुसैन और खान अब्दुल गफ्फार खान को भारत रत्न से सम्मानित किया जा चुका है। एएमयू से पढ़े हामिद अली अंसारी देश के उप राष्ट्रपति रहे। वहीं, पाकिस्तान के पहले प्रधानमंत्री लियाकत अली खान भी एएमयू से पढ़े थे। एएमयू के पूर्व छात्रों में पूर्व क्रिकेटर लाला अमरनाथ, कैफी आजमी, राही मासूम रजा, गीतकार जावेद अख्तर, अभिनेता नसीरुद्दीन शाह, प्रो इरफान हबीब, उर्दू कवि असरारुल हक मजाज, शकील बदायूनी, प्रो शहरयार आदि बड़े चेहरे भी शामिल हैं। 

 

 

भारत का कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय : 

एक जमाने में इसे भारत का कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय भी कहा जाता था। ब्रिटिश राज के समय यह कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय की तर्ज पर बनाया गया पहला उच्च शिक्षण संस्थान था। इसकी स्थापना 1857 के दौर के बाद भारतीय समाज की शिक्षा के क्षेत्र में पहली उपलब्धि मानी जाती है। 

 

 

विश्वविद्यालय का अल्पसंख्यक दर्जा :

1967 में अजीज पाशा नामक व्यक्ति की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने एएमयू को अल्पसंख्यक संस्थान मानने से मना कर दिया था। लेकिन बाद में 1981 में तत्कालीन केंद्र सरकार ने फिर से कानून में संशोधन किए और विश्वविद्यालय का अल्पसंख्यक दर्जा बहाल कर दिया। कई बार इसके नाम और दर्जे को बदलने की मांग भी उठती रही है। हालांकि, इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 2005 में एएमयू को अल्पसंख्यक का दर्जा देने वाला कानून रद्द कर दिया और कहा कि अजीज पाशा मामले में सुप्रीम कोर्ट का फैसला सही है। 

 

 

लाइब्रेरी में दुर्लभ पांडुलिपियां भी : 

संसद ने 1951 में AMU संशोधन एक्ट पारित किया, जिसके बाद इस संस्थान के दरवाजे गैर-मुसलमानों के लिए खोले गए। विश्वविद्यालय के कई कोर्स में सार्क और राष्ट्रमंडल देशों के छात्रों के लिए सीटें आरक्षित हैं। एएमयू में औसतन हर साल लगभग 500 विदेशी छात्र एडमिशन लेते हैं। यह केंद्रीय विश्वविद्यालय कुल 467.6 हेक्टेयर जमीन में फैला हुआ है। विश्वविद्यालय की मौलाना आजाद लाइब्रेरी में 13.50 लाख पुस्तकों के साथ तमाम दुर्लभ पांडुलिपियां भी मौजूद हैं।

 

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