न्यूज़ डेस्क : श्री काशी विश्वनाथ धाम 18 महीने में साकार होगा। मकर संक्रांति के महापर्व पर कार्यदायी संस्था ने निर्माण कार्य शुरू करा दिया। बुधवार को काशी विश्वनाथ मंदिर और मणिकर्णिका घाट के बीच खाली स्थान पर भूमिपूजन के बाद विश्वनाथ धाम का निर्माण कार्य आरंभ हुआ। श्री काशी विश्वनाथ मंदिर के पुजारियों ने विधिवत पूजन के बाद नींव में ईंट रखकर काम की शुरुआत कराई।
बुधवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ड्रीम प्रोजेक्ट पर काम शुरू हो गया। इससे पहले कार्यदायी संस्था पीएसपी के प्रोजेक्ट मैनेजर शशिकांत प्रजापति और मंदिर के कार्यपालक अधिकारी विशाल सिंह ने विधि-विधान से पूजा की। गणेश पूजन के बाद भूमिपूजन किया गया। श्री काशी विश्वनाथ धाम परियोजना पर 339 करोड़ रुपये खर्च होंगे। कार्यदायी कंपनी का दावा है कि देश भर के विशेषज्ञों और उन्नत मशीनों से प्रोजेक्ट का काम 18 महीनों में यानी 2021 तक पूरा कर लिया जाएगा। प्रधानमंत्री इसका शिलान्यास 8 मार्च 2019 को किया था।
पहले चरण में मंदिर परिसर, दूसरे चरण में गंगा घाट क्षेत्र होगा विकसित
गुजरात की कंपनी के जनरल मैनेजर ने बताया कि पहले चरण में मंदिर परिसर और दूसरे चरण में गंगा घाट क्षेत्र को विकसित किया जाएगा। तीसरे चरण में नेपाली मंदिर से लेकर ललिता घाट, जलासेन घाट और मणिकर्णिका घाट के आगे सिंधिया घाट तक का हिस्सा शामिल है।
एक किलोमीटर लंबे इस क्षेत्र से श्रद्धालु स्नान करके आसानी से मंदिर तक दर्शन पूजन करने के लिए जा सकेंगे। यहां दुकानें, वेद विज्ञान शाला, कम्युनिटी हाल, सोविनियर शॉप, हेल्प डेस्क, कार्यालय, कंट्रोल रूम, संग्रहालय, यज्ञशाला का निर्माण होना है। साथ ही मुमुक्षु भवन का निर्माण और अन्य सुविधाएं शामिल हैं।
339 करोड़ रुपये की है परियोजना : काशी विश्वनाथ धाम में निर्माण कार्यों पर 339 करोड़ रुपये खर्र्च किए जाएंगे। इससे पहले मंदिर क्षेत्र के विस्तारीकरण के लिए चिह्नित 296 भूमि-भवनों को खरीदने के लिए 2017-18 में 40 करोड़ रुपये जारी किए गए थे। इसके बाद वित्तीय वर्ष 2018-19 में 358.33 करोड़ रुपये जारी किए गए। मंदिर प्रशासन ने अब तक कुल 268 संपत्तियां खरीदीं। इनमें से 247 भवनों को ध्वस्त किया जा चुका है।
अहिल्याबाई होल्कर ने अंतिम बार कराया था जीर्णोद्धार : श्री काशी विश्वनाथ मंदिर का जीर्णोद्धार अंतिम बार इंदौर की रानी अहिल्याबाई होल्कर ने 1780 में कराया था। वर्ष 1785 में प्रथम गवर्नर जनरल वारेन हेस्टिंग के आदेश पर तत्कालीन जिला मजिस्ट्रेट मोहम्मद इब्राहिम खान ने मंदिर के सिंहद्वार के सामने नौबत खाना बनवाया था।
यहां प्रतिदिन भोग के समय नगाड़ा और शहनाई बजती थी। पंजाब केसरी महाराणा रणजीत सिंह ने 1839 में इस मंदिर के शिखर को स्वर्ण मंडित करवाया। 28 जनवरी 1983 को उत्तर प्रदेश सरकार ने मंदिर का अधिग्रहण किया और इसके प्रबंध का कार्य ट्रस्ट की कार्यपालक समिति को सौंप दिया।
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