नई दिल्ली: लोकसभा चुनाव के पहले देश की राजनीति में समीकरण बहुत तेजी से बदल रहे हैं. एक ओर जहां कांग्रेस के महाधिवेशन में इस बात यूपीए के कुनबे को और बढ़ाकर बीजेपी की अगुवाई वाले गठबंधन एनडीए को जोरदार टक्कर देने का प्लान बनाया है. लेकिन विपक्षी की एकता को बड़ा झटका लग सकता है. देश में अब तीसरे मोर्चे की कवायद बहुत तेजी से शुरू हो गई है. तेलंगाना के मुख्यमंत्री और तेलंगाना राष्ट्र समिति (टीआरएस) के अध्यक्ष के चंद्रशेखर राव (केसीआर) ने पश्चिम बंगाल की अपनी समकक्ष ममता बनर्जी से सोमवार को मुलाकात की है.ममता बनर्जी के साथ बैठक के बाद संवाददाताओं से बातचीत में तेलंगाना राष्ट्र समिति के प्रमुख राव ने कहा कि देश को वैकल्पिक एजेंडा और वैकल्पिक राजनीतिक शक्ति की जरूरत है. असली संघीय मोर्चा बनाने का प्रयास कर रहे हैं. आज संघीय मोर्चे की शुरुआत है, हम कांग्रेस और भाजपा के खिलाफ विकल्प तैयार करने के लिये सभी समान सोच वाले दलों से बातचीत करेंगे.’’
वहीं ममता बनर्जी से यह पूछे जाने पर कि क्या उनकी पार्टी कांग्रेस से हाथ मिलाने के खिलाफ है तो उन्होंने कहा, ‘‘आप अपने शब्द मेरे मुंह में नहीं डालें. जो भी राहुल ने कहा है, मैं उनसे पूरी तरह सहमत हूं. उन्होंने अपनी राय जाहिर की है. उसमें क्या हर्ज है.’’ उन्होंने कहा, ‘‘राहुल ने रविवार को अपनी राय जाहिर की थी, लेकिन उन्होंने नहीं पूछा है कि हमारी राय क्या है- हम अपनी राय जाहिर करेंगे.’’
क्या हो सकता है तीसरे मोर्चे का गणित
के चंद्रशेखर राव का तीसरा मोर्चा बनाने के पीछे एक सोची-समझी गणित भी है. तमिलनाडु में जब 2014 के चुनाव में पूर्व मुख्यमंत्री जयललिता ने पोस्टरों के जरिए ये संदेश दिया था कि वो प्रधानमंत्री बनना चाहती हैं, तो राज्य की जनता ने उन्हें समय 39 में से 37 लोकसभा सीटें दी थीं जब पूरे देश में मोदी लहर थी. लोगों का मानना है कि अगर बीजेपी इस बार 230 सीटों से कम जीतती है तो नरेंद्र मोदी का दोबारा प्रधानमंत्री बनना मुश्किल हो जाएगा क्योंकि इस बार बीजेपी को शायद ही इतनी पार्टियां समर्थन करें. चंद्रशेखर राव को अगर सीधे केंद्र की राजनीति में आते हैं तो हो सकता है कि तेलंगाना में उनकी पार्टी जयललिता की तरह ही चमत्कार कर जाए और तेलुगू सम्मान के नाम पर आंध्र प्रदेश में भी कमाल कर सकते हैं.
आंध्र प्रदेश के सीएम चंद्रबाबू नायडू भी मोदी सरकार से नाराज हैं और हो सकता है वह भी केसीआर के साथ ही चले जाएं. यहां गौर करने वाली बात ये है कि यूपीए-1 में आंध्र से 29 और यूपीए-2 में 33 सांसद थे. अगर टीडीपी और टीआरएस मिलकर 30-35 सीटें जीतती हैं तो वह तीसरे मोर्च में सबसे बड़े दावेदार बन सकते हैं.
क्या बनेगा तीसरा मोर्चा?
तीसरे मोर्चे के समर्थन में कई छोटी पार्टियों के नेता हैं. इसमें झारखंड से हेमंत सोरेने, असुद्दीन ओवैसी भी हैं. वहीं नीतीश कुमार भी कई बार तीसरे मोर्चे के समर्थन पिछले कई सालों से बयान देते रहे हैं. नीतीश कुमार भी प्रधानमंत्री पद का दावेदार हैं. हो सकता है तीसरे मोर्चे की शक्ल लेने पर एनडीए और यूपीए से कई पार्टियां टूटकर इसमें शामिल हो जाएं. इनमें वामदल भी हो सकते हैं. अगर यूपी, बंगाल, तमिलनाडु और तेलंगाना जैसे राज्यों में मिलाकर करीब पौने दो सौ सीटों के लिए क्षेत्रीय पार्टियां एकजुट होती हैं तो यही बड़ी ताकत बन सकती है.
किसको होगा ज्यादा नुकसान
तीसरे मोर्चे के गठन से सबसे ज्यादा नुकसान कांग्रेस को हो सकता है. उत्तर प्रदेश में हाल ही में हुए उपचुनाव में सपा-बसपा ने मिलकर चुनाव लड़ जहां बीजेपी हारी लेकिन कांग्रेस प्रत्याशियों की जमानत जब्त हो गई. अगर ऐसा ही तालमेल हर ज्यादातर राज्यों में हो जाता है तो कांग्रेस और बीजेपी के लिए दोनों के लिए मुश्किल होगी. इन हालात में कांग्रेस का राहुल गांधी को पीएम बनाने का भी गड़बड़ा सकता है. अगर कांग्रेस चुनाव के बाद कांग्रेस तीसरे मोर्चे के साथ भी जाती तो भी जरूरी दल नहीं है कि पार्टियां राहुल के नाम पर सहमत हो जाएं. हालांकि कांग्रेस जानती है कि तीसरे मोर्चे की सरकार अगर बनने के हालात पैदा भी हुए तो पंजे की मदद के बिना मुमकिन नहीं होगा. वहीं तीसरे मोर्चे की सुगबुगहाट बीजेपी के लिए किसी खतरे से कम नहीं होगी.
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