न्यूज़ डेस्क : सुप्रीम कोर्ट मौत की सजा के मामलों में पीड़ित और समाज केंद्रित दिशानिर्देश बनाने के लिए केंद्र की याचिका पर विचार करने के लिए शुक्रवार को राजी हो गया। केंद्र सरकार ने 22 जनवरी को याचिका दायर कर दलील दी थी कि मौजूदा दिशानिर्देश केवल आरोपी और दोषी केंद्रित हैं।
मुख्य न्यायाधीश एसए बोबडे, जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस सूर्यकांत की पीठ ने उन सभी पक्षकारों से जवाब मांगा है, जिनकी याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने 2014 में शत्रुघ्न चौहान मामले में दोषियों को मौत की सजा देने संबंधित दिशानिर्देश बनाए थे।
पीठ ने ने साफ तौर पर कहा है कि केंद्र सरकार की याचिका पर सुनवाई करते हुए शत्रुघ्न चौहान मामले से संबंधित दोष साबित करने और मौत की सजा का मुद्दा यथावत रहेगा। इसमें कोई छेड़छाड़ नहीं होगी। पीठ ने शत्रुघ्न चौहान मामले में नामित प्रतिवादियों को नोटिस जारी किया।
जघन्य अपराध में शामिल लोगों के ‘न्यायिक प्रक्रिया का मजाक’ बनाने पर गौर करते हुए केंद्र ने 22 जनवरी को सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया और डेथ वारंट जारी होने के बाद फांसी की सजा की समय सीमा सात दिन करने की मांग की। 2012 के निर्भया सामूहिक दुष्कर्म मामले में चार दोषियों के फांसी की सजा में विलंब को देखते हुए केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट में यह अर्जी दायर की थी।
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