2005 से रही है नीतीश और रामविलास में टशन, सरकार नहीं बनने से बनी थी दूरियाँ

न्यूज़ डेस्क : लोक जनशक्ति पार्टी और जनता दल यू का टशन नया नहीं है। 2005 में भी लोजपा, नी‍तीश कुमार के खिलाफ खड़ी हो गई थी। सीएम पद को लेकर नीतीश को समर्थन न देने के चलते आखिरकार बिहार में किसी की सरकार नहीं बन पाई थी। प्रदेश में मध्‍यावधि चुनाव कराने पड़े थे।

 

 

बिहार में 2005 में विधानसभा का चुनाव फरवरी-मार्च में हुआ था। उन दिनों केंद्र में अटल बिहारी बाजपेयी के नेतृत्‍व में एनडीए की सरकार थी और रामविलास पासवान मंत्रिमंडल के प्रमुख चेहरों में थे। लेकिन चुनाव के ठीक पहले इस्‍तीफा देकर उन्‍होंने लोक जनशक्ति पार्टी बनाई और बिहार में लालू, नीतीश के खिलाफ अकेले ताल ठोंक दी। बताते हैं कि उस वक्‍त नीतीश चाहते थे कि रामविलास उनके साथ रहकर लालू परिवार के खिलाफ छिड़ी मुहिम में शामिल हों लेकिन रामविलास अकेले ही मैदान में उतरे। 

 

 

2005 में विधानसभा के आम चुनाव में लोक जनशक्ति पार्टी का प्रदर्शन काफी अच्‍छा रहा। 29 सीटों पर पार्टी ने जीत हासिल की। चुनाव में किसी राजनी‍तिक दल को पूर्ण बहुमत नहीं मिला था। सरकार बनाने की जद्दोजहद शुरू हुई तो नीतीश कुमार ने एक बार फिर रामविलास पासवान को जोड़ने की कोशिश की लेकिन वह इसके लिए तैयार नहीं हुए। कहते हैं कि तब रामविलास पासवान ने किसी मुस्लिम को मुख्‍यमंत्री बनाने की मांग रखकर समर्थन की उम्‍मीद कर रहे नीतीश को पीछे हटने पर मजबूर कर दिया था। 

 

 

चुनाव खत्‍म हो चुके थे लेकिन बिहार का राजनीतिक संकट खत्‍म होने का नाम नहीं ले रहा था। इस बीच लोक जनशक्ति पार्टी के विधायकों को तोड़ने की कोशिशों की खबरें भी आईं जिनका तब नीतीश कुमार ने पुरजोर ढंग से खंडन किया था। बहरहाल, सरकार बनाने को लेकर लम्‍बे समय तक चली इस उठापटक में लोक जनशक्ति पार्टी और नीतीश कुमार के बीच दूरियां बढ़ती चली गईं। इस उठापटक के बावजूद रामविलास पासवान के अड़े रहने की वजह से तब कोई दल सरकार नहीं बना सका और मजबूरन अक्‍टूबर-नवम्‍बर में मध्‍यावधि चुनाव कराने पड़े। 

 

 

मध्‍यावधि चुनाव में हुआ नुकसान
मध्‍यावधि चुनाव में लोक जनशक्ति पार्टी का काफी नुकसान हुआ। उसकी सीटें 29 से घटकर 10 रह गईं। जेडीयू-भाजपा गठबंधन को पूर्ण बहुमत मिला और नीतीश कुमार राज्‍य के मुख्‍यमंत्री बने। 

 

 

 

जेपी मूवमेंट में साथ रहे, फिर राहें हुईं जुदा

रामविलास पासवान, नीतीश कुमार, लालू प्रसाद यादव और सुशील मोदी सहित बिहार की राजनीति में महत्‍वपूर्ण भूमिका निभाने वाले कई नेता पहले पटना विश्‍वविद्यालय फिर जयप्रकाश नारायण के ‘सम्‍पूर्ण क्रांति’ आंदोलन में साथ रहे थे। लेकिन सत्‍ता की लड़ाई में उनकी राहें जुदा होती चली गईं। जेपी मूवमेंट से निकले लालू और नीतीश बिहार के मुख्यमंत्री बने तो रामविलास पासवान 1996 से लगातार (2009-2014 को छोड़कर) केंद्र में मंत्री रहे। सुशील कुमार मोदी भी एक दशक से ज्‍यादा समय से बिहार के डिप्‍टी सीएम हैं। राजनीतिक विश्‍लेषक कहते हैं कि रामविलास पासवान भले दशकों से केंद्र की राजनीति में महत्‍वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं लेकिन बिहार के सीएम की कुर्सी पर उनकी बराबर नजर रही है। अब उनके बेटे चिराग भी ‘पाटलीपुत्र’ के सिंहासन के इस सत्‍ता संग्राम के लिए अपनी सेना तैयार करने में जुटे हैं। इसके लिए उन्‍हें बिहार में नीतीश के समानांतर अपनी राजनीतिक जमीन तैयार करनी होगी। अंजाम क्‍या होगा यह तो 10 नवम्‍बर को बिहार विधान सभा चुनाव के परिणाम आने के बाद ही साफ हो पाएगा लेकिन उन्‍होंने इसके लिए ताल ठोंक दी है।

 

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