न्यूज़ डेस्क : इस साल जून महीना भीषण गर्मी से तपा है। मौसम विभाग की एक रिपोर्ट के अनुसार यह बीते 100 साल में पांचवां सबसे ज्यादा सूखा जून का महीना था। इस पूरे महीने में बारिश औसत से 35 फीसदी कम दर्ज हुई है। आमतौर पर इस महीने में 151 मिलीमीटर बारिश होती है लेकिन इस बार ये आंकड़ा 97.9 मिलीमीटर ही रहा है। देश के कुछ राज्यों में मानसून की आमद हो चुकी है और बारिश का असर भी दिखना शुरू हो गया है। मुंबई में पहली बारिश से ही शहर में कई स्थानों पर जलभराव हो गया है। वहीं मध्यप्रदेश के कुछ शहर भी जलमग्न हो गए हैं।
कमजोर रहा मानसून : संभावना है कि जून की समाप्ति के पहले तक 106 से 112 मिलीमीटर बारिश हो सकती है। इससे पहले 2009 में सबसे कम 85.7 मिलीमीटर हुई थी। 2014 में 95.4 मिलीमीटर, 1926 में 98.7 मिलीमीटर और 1923 में 102 मिलीमीटर बारिश दर्ज हुई थी। 2009 और 2014 ऐसे साल थे, जब अल-नीनो के प्रभाव के चलते मानसून कमजोर रहा। इस साल भी ऐसी ही स्थिति बताई जा रही है।
कैसे प्रभावित होता है मानसून? : अल-नीनो के प्रभावित रहने से पूर्वी और मध्य प्रशांत महासागर की सतह में असामान्य रूप से गर्मी की स्थिति रहती है। जिससे हवाओं का चक्र प्रभावित होता है। ये चक्र भारतीय मानसून पर विपरीत प्रभाव डालता है।
हालांकि मौसम वैज्ञानिकों ने अल-नीनो के देर से सक्रिय होने की आशंका पहले ही जता दी थी। वहीं बीते सप्ताह की स्थिति में सुधार हुआ है और लंबे समय से सूखे की मार झेल रहे क्षेत्रों जैसे मराठवाड़ा और विदर्भ में बारिश हुई है। अब बताया जा रहा है कि 30 जून तक बंगाल की खाड़ी में कम दबाव की स्थिति बन सकती है। जिससे अगले महीने के पहले हफ्ते में ओडिशा, मध्य प्रदेश और उत्तर पश्चिम भारत में अच्छी बारिश हो सकती है।
अच्छे मानसून की उम्मीद : मौसम विभाग को उम्मीद है कि 30 जून के बाद मानसून में अच्छी रफ्तार दिखाई देना शुरू हो जाएगी। इस बात की काफी उम्मीद है कि मानसून मध्य भारत और गुजरात के बाकी हिस्सों की ओर बढ़ेगा। जुलाई में कम दबाव के चलते मानसून के बेहतर होने की उम्मीद है। जुलाई का महीना खरीफ की फसल की बुआई के लिए महत्वपूर्ण होता है। इस महीने को सबसे अधिक बारिश वाला महीना भी माना जाता है।
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