इंदौर, 04 मार्च 2019: वामा साहित्य मंच और घमासान डॉट कॉम के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित अखिल भारतीय महिला साहित्य समागम के पहले दिन सोमवार को विभिन्न विषयों पर खूब चिंतन-मनन हुआ। जाल सभागृह में हो रहे इस समागम के उद्घाटन- सत्र की मुख्य अतिथि वरिष्ठ साहित्यकार उषा किरण खान और अतिथि वक्ता वरिष्ठ कहानीकार व उपन्यासकार कृष्णा अग्निहोत्री थीं।
21 वीं सदी महिलाओं की सदी है
वरिष्ठ साहित्यकार उषा किरण खान जी ने कहा कि 21वीं सदी स्त्रियों की है, वे कुंठा से बाहर आ रहीं हैं व अपने अधिकारों के प्रति सजग हो रही हैं, संघर्ष को स्त्री को ही पार करना है। स्त्रियों में नैतिकता अधिक है। साहित्य किसी विषय पर आधारित न हो। उन्होंने कहा कि स्त्रियां काया की छाया मानी जाती रही हैं किंतु इस सदी में यह छाया संज्ञा होने जा रही है। अर्धनारीश्वर की कल्पना में ही स्त्री और पुरुष में भेद नहीं किंतु कालांतर में स्त्री को पददलित कर दिया गया। महिला किसी को नीचा दिखाए बिना भी अपने को खड़ा कर सकती है। स्त्री पहले भी बिना अक्षरज्ञान के अपने आप को अभिव्यक्त करती रहीं हैं। मिथिला क्षेत्र में अक्षरज्ञान के बिना भी लोक कलाओं के माध्यम से स्त्रियों ने उसे जीवित रखा है।
सीता का वर्णन करते हुए उन्होंने आगे कहा कि इतिहास व काव्य विशिष्ट व्यक्ति पर लिखा जाता है। भारतीय नारी केवल घूँघट व सीमा में रहने वाली ही हो आवश्यक नहीं है। मजदूर, गतिब, दलित, शोषित स्त्रियों पर भी लिखा जाए और उनके संस्कार भिन्न है।लेखन नारी की संवेदना से पिघलकर लिखना प्रारंभ होता है। रवींद्रनाथ टैगोर व शरत चंद्र का उदाहरण दे कर कहा कि पुरुषों ने भी स्त्री पर लिखा किंतु जब स्त्री अपने बारे में लिखती है तो व अधिक सशक्त लिख सकती हैं। नारी के संघर्ष का सम्मान कर लिखें। स्त्रियों में भी बहनापा बढ़ाना होगा। एक स्त्री के ऊपर अत्याचार का विरोध करना होगा।
साहित्य समाज की विसंगतियों की औषधि
वरिष्ठ साहित्यकार कृष्णा अग्निहोत्री जी ने कहा कि साहित्य समाज की विसंगतियों की औषधि है और इस साहित्य कुंभ में यह औषधियां डल रही हैं। स्त्री भोग्या नहीं है और स्वतंत्रता के बाद से काल व समय का गठबंधन हुआ व क्रष्णा सोबती, मंनु भदारी का साहित्य कालजाई हैं। साहित्य को बंधन में मत बाँधिये, रूढ़ियों का विरोध हो और दोगली मान्यताओं का विरोध होना चाहिए। लेखन में साहस की आवश्यकता है। व्यष्टि से शमिष्ट् तक पहुँचाना ही साहित्य का अभिमान है। इंदौर की उर्वर भूमि की चर्चा कर यहाँ की साहित्यिक योगदान की चर्चा की गई।
महिला को संवेदनाओं और भावनाओं का अनुभूतिे का चित्रण किया जाना चाहिये। महिला सजग है और अच्छा लेखन कर रहीं हैं। लेखिकाओं को आपसी संपर्क को तवज्जो भी दी जानी चाहिये। एक- दूसरे का सम्मान करना होगा। प्रकाशन के लिए, अनुवाद के लिए भी सुविधाएं मिलनी चाहिये। लेखन के लिए लेखिकाओं को भी सुविधाएं मिलनी चाहिये। युवा वरिष्ठ का भेद भी मिटना चाहिये। अतिथियों का स्वागत आयोजन समिति की चेयरपर्सन पद्मा राजेन्द्र, बेला जैन, सुरभि भावसार, मंजू मिश्रा ने किया। आभार अध्यक्ष शिवानी राठौर ने माना।
प्रथम सत्र: लघु कथाओं मे नारी पात्रों के सकारात्मक तेवर
आयोजन का प्रथम सत्र ‘लघु कथाओं में नारी पात्रों के सकरात्मक तेवर’ विषय पर आधारित था। इस कार्यक्रम की बीज वक्तव्यकार लखनऊ की साहित्यकार डॉक्टर मिथिलेश दीक्षित थीं। इस सत्र की चर्चाकर भोपाल की लता अग्रवाल व गुरुग्राम की अनघा जोगलेकर थीं। मिथिलेश जी का स्वागत शोभा प्रजापति, लता अग्रवाल जी का स्वागत विनीता चौहान, अनघा जोगलेकर का स्वागत नुपूर् वागले ने किया
स्त्री-पुरुष लेखन जैसा भेद काल्पनिक
मिथिलेश जी ने अपने बीज वक्तव्य में कहा कि सम्मेलन तो ऐतिहासिक है। गहन संवेदनशीलता लेखन का गुण है। स्त्री-पुरुष लेखन जैसा भेद काल्पनिक है। पुरुषों में संवेदना का जागरण स्त्रियाँ ही कर सकती हैं। शोषण के विरुद्ध महिला आवाज उठा रही है। लघुकथा का मूल स्वरूप बदला है और इस महिलाओं ने इसे नया आयाम दिया हैं। नए विषय नए क्षितिज गढ़े जा रहे हैं। नारी को मुक्ति नहीं अधिकार चाहिए। हर क्षेत्र में वे अपने सम्मान व अधिकार चाहती हैं। अभिरुचि में बादलाव भी ध्यान देने योग्य हैं।
महिलाओं की पृष्ठभूमि व लघुकथा में स्त्रियों की भूमिका की चर्चा करते हुए उन्होने कहा कि लघुकथा के क्षेत्र में महिलाएं सराहनीय कार्य का रहीं हैं व हर क्षेत्र में स्त्री के तेवर नजर आ रहे हैं । हिंदी साहित्य को समृद्ध करने में महिला साहित्यकारों का विशेष योगदान रहा है। वैश्विक विषयों पर लिख रहीं हैं, विज्ञान तकनीक का उपयोग भी वे कर रहीं हैं, साथ ही उपभोक्ता वादी व भौतिकतावादी भी बड़ा है। नारी अपनी अस्मिता, अधिकार व स्वाधीन लेखन के लिए भी वह संघर्ष कर रही हैं। साहित्य में सोशल मीडिया के प्रयोग के लाभ व हानि दोनो हैं। यह तेवर नारी शिक्षा, विश्व की स्थिति, सुरक्षा, असमानता, वृद्धों की स्थिति, अन्याय, शिक्षा, मजदूर किसान, सैनिक, युद्ध, समाज सबके लिए है। विभिन्न लघुकथा व लघुकथाकार के माध्यम से उन्होंने विविध तेवरों को प्रस्तुत किया।
नारी ने अब ना कहना सिख लिया है
लता अग्रवाल ने अपने उद्बोधन में भारतीय स्त्रियों की जिजीविषा को नमन करते हुए कहा कि वे हर परिस्थिति से पार पा सकती हैं। स्त्री ने अब ना कहना सीख लिया है । कई कालजयी रचनाओं का उल्लेख कर उन्होंने कहा कि स्त्री चेतना को स्थापित करने के प्रयासों का वर्णन किया है। जीवन से बाहर के अनुभव साहित्य नहीं है, उनमें जीवन अनुभव होना आवश्यक है। परंपराओं के दुरूपयोग में बड़े घरानों की भूमिका को भी रेखांकित किया है। बदलते समय के साथ विषय भी बदले हैं। जीवन की विडंबनाओं में भी स्त्री अपनी सकरत्मकता से जीवन की पथरीली जमीन पर भी रचना करती है।
इंटरनेट पर लघुकथा विधा लहरा रही अपना परचम
अनघा जोगलेकर ने अपने वक्तव्य में कहा कि तकनीक के माध्यम से लघुकथा विधा को नए आयाम मिल रहे है। नए दौर के साहित्यकार अपने तेवर के साथ मौजूद है। समय का अभाव होने से लघुकथा विधा के लिए सहायक है। इंटरनेट व फेसबुक पर लघुकथा विधा अपना परचम लहरा रही हैं।
लघुकथा में ‘नारी के सकरात्मक तेवर’ विषय पर बोलते हुए उन्होंने कहा कि नारी तकनीक के माध्यम से सकरत्मकता फैला रहीं हैं, घर परिवार से ऊपर उठकर हर विषय पर लिख कर जन जागृति फैला रहीं हैं। महिलाएं व युवा अपनी सृजनात्मकता को तकनीक के माध्यम से पूरे विश्व में फैला रहीं हैं। अपनी रचनाओं का संपादन कर ही सोशल मीडिया पर डालें।
द्वितीय सत्र: काव्य अभिव्यक्ति के बदलते प्रतिमान
प्रथम दिन के द्वितीय सत्र में बीज वक्तव्यकार त्रिवेंद्रम से आईं श्रीमती रति सक्सेना थीं। सत्र की चर्चाकर के रूप में गुरुग्राम से शोभना श्याम व पुणे की शशि पुरवार थीं। अतिथियों का स्वागत अंजू निगम,डॉ दीपा मनीष व्यास और संगीता केस्वानी ने किया।
स्त्री लेखन हर विसंगति पर प्रहार करती है
अपने उद्बोधन में शशि पुरवार ने ‘काव्य अभिव्यक्ति के बदलते प्रतिमान पर बोलते हुए कहा कि नव गीत, श्रृंगार और प्रतीकों से नए विचार का स्वागत है। सपाट बयानी साहित्य में स्वीकार्य नहीं है। काल जाई रचनाओं के माध्यम से उन्होंने इन प्रतिमानों के सौंदर्य को उभरा। भाषा शिल्प शैली पर बोलते हुए उन्होंने कहा कि स्वर में धमक और धनक की बात उन्होंने कहीं। नव गीत जनचेतना के गीत हैं। जीवन को सरलता सघनता तरलता सेव्यक्त करते हैं। स्त्री लेखन हर विसंगति पर प्रहार करती है। नव गीत में बिंब अवश्य होगें। उसी से भाव व्यक्त होता है। विसंगतियों की जड़ पर प्रहार करते हुए मनसिकता बदलने का आग्रह ही साहित्य है। कई उदाहरणों से प्रभावी वक्तव्य किया। अपने एक गीत के माध्यम से देश की वर्तमान स्थिति पर व देश के शहीदों के प्रति श्रद्धांजलि अर्पित की।
कविता एक चिकित्सा का कार्य भी करती है
केरल से आई रति सक्सेना ने कविता को एक माध्यम बताते हुए कहा कि दर्शन, विज्ञान और आध्यात्मिकता का मिश्रण है। विज्ञान और गणित से भी कविता का उद्भव होता है। आयुर्वेद, सामवेद और ब्राहमंन् ग्रंथ कविता के रूप में ही लिखे गयें है। एक प्रयोग में कहा गया कि कविता एक चिकित्सा कार्य भी करती है, हिटलर के कॉन्सेंट्रतिओं कैंप में कविता के माध्यम से कई लोग जीवित रहे। कविता जीवन को अर्थ देती हैं।
विकास के साथ हर विधा के प्रतिमान बदल है
शोभना श्याम जी ने कहा कि सभ्यता के विकास के साथ हर विधा के प्रतिमान बदल हैं। रस् छंद भी बदल रहे हैं। दरबार और मंदिर से निकल कर जब आम इंसान तक यह पहुंची तो काव्य के प्रतिमान बदलने लगी। विरुदावली से लेकर चरण वंदना से आगे रसोई तक, फाईल के पन्नो, शयन कक्ष,, लापरवाही से खुलेबाल तक, बहुरूपिये की तरह प्रतिमान अपना अर्थ बदल रहे है। तथ्यों की व्याख्या व अभिव्यक्ति का सौंदर्य दोनो है। पुराने वाद और सिद्धांत से मुक्त होप्रतिमान गढ़े जा रहे हैं। आजकल की कविता सिद्धांतों के गुब्बारों के लिए पिन का करती है और उनकी हवा निकाल देती है। विराटता से मुक्ति की तरफ प्रतिमान जा रहे हैं। भाषा के संस्कार बदल रहे हैं, अलंकार, रस् बदल गए। बिंब का प्रयोग प्रमुख हो गया। छंद अक्सर भावों को बांध देता है। अधिक बोझिल कविता नेअपने वस्त्र बदल लिए हैं। सम्मान वत्सल से विलग हो यथार्थ से जोड रहीं हैं। विश्व के विभिन्न उदाहरण से उन्होंने कविता के प्रभाव को स्थापित करते ही कहा, कविता दुख ,अवसाद ,क्रोध आशांती, के बीच खड़ी हो तभी वह प्रासंगिक भी है और यही उसकी ताकत भी है। कविता को युद्ध के बीच खड़ा किया जाएl
सत्र में देश के विभिन्न हिस्सों से आई चित्रा जैन, अदिति लोखंडे, पुष्पा चौरसिया, सत्या सिंह, शिवानी जयपुर, उज्जैन से सीमा जोशी, खरगोन से पुष्पा पटेल, प्रीति सुराणा, पंकजा सोनवलकर ने अपनी रचनाएँ प्रस्तुत की। सत्र का संचालन वैजयंती दाते ने किया।
तृतीय सत्र: ‘आधुनिकता की परिभाषा परिपक्वता या खुलापन’
प्रथम दिन के तृतीय सत्र अतिथि वक्ता गीता श्री दिल्ली, मीनाक्षी जोशी इंदौर, नीलिमा टिक्कु जयपुर, कुमकुम कपूर अलवर थीं।
अतिथियों का स्वागत ज्योति जैन, पद्मा राजेंद्र, अंजू अग्रवाल, पूर्णिमा भारद्वाज ने किया।
सत्र में आधुनिकता की परिभाषा परिपक्वता का खुलापन विषय पर जोरदार चर्चा हुईl इस पर सभी अतिथि वक्ताओं ने अपने विचार रखेंl
सभी सत्रों में मालवी साफा पहनाकर अतिथियों का स्वागत किया. इस मौके परमिथिलेश दीक्षित जी की पुस्तक हिंदी लघुकथा ‘प्रासंगिकता व प्रयोजन” रती सक्सेना जी का काव्य संग्रह ‘पुस, हंसी एक प्रार्थना है’, मंजुला जोशी जी के उपन्यास ‘सिंदूरी पलाश’ का विमोचन हुआ।
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