उत्तर प्रदेश में सद्गुरु सदाफलदेव विहंगम योग संस्थान की 98वीं वर्षगांठ के अवसर पर प्रधानमंत्री के भाषण का मूल पाठ

मंच पर उपस्थित उत्तर प्रदेश की राज्यपाल श्रीमती आनंदीबेन पटेल जी, उत्‍तर प्रदेश के ऊर्जावान-कर्मयोगी, मुख्यमंत्री श्रीमान योगी आदित्यनाथ जी, सद्गुरु आचार्य श्री स्वतंत्रदेव जी महाराज, संत प्रवर श्री विज्ञानदेव जी महाराज, केंद्र में मंत्रीपरिषद के मेरे साथी और इसी क्षेत्र के सांसद श्री महेंद्र नाथ पांडे जी, यहीं के आप के प्र‍तिनिधी और योगीजी सरकार में मंत्रीश्रीमान अनिल राजभर जी, देश विदेश से पधारे सभी साधक व श्रद्धालुगण, भाइयों और बहनों, सभी उपस्थित साथियों!

काशी की ऊर्जा अक्षुण्ण तो है ही, ये नित नया विस्तार भी लेती रहती है। कल काशी ने भव्य ‘विश्वनाथ धाम’ महादेव के चरणों में अर्पित किया और आज ‘विहंगम योग संस्थान’ का ये अद्भुत आयोजन हो रहा है। इस दैवीय भूमि पर ईश्वर अपनी अनेक इच्छाओं की पूर्ति के लिए संतों को ही निमित्त बनाते हैं और जब संतों की साधना पुण्यफल को प्राप्त करती है तो सुखद संयोग भी बनते ही चले जाते हैं।

आज हम देख रहे हैं, अखिल भारतीय विहंगम योग संस्थान का 98वां वार्षिकोत्सव, स्वतन्त्रता आंदोलन में सद्गुरु सदाफल देव जी की कारागार यात्रा के 100 वर्ष, और देश की आज़ादी का अमृत महोत्सव, ये सब, हम सब, एक साथ इनके साक्षी बन रहे हैं। इन सभी संयोगों के साथ आज गीता जयंती का पुण्य अवसर भी है। आज के ही दिन कुरुक्षेत्र की युद्ध की भूमि में जब सेनाएँ आमने-सामने थीं, मानवता को योग, आध्यात्म और परमार्थ का परम ज्ञान मिला था। मैं इस अवसर पर भगवान कृष्ण के चरणों में नमन करते हुए आप सभी को और सभी देशवासियों को गीता जयंती की हार्दिक बधाई देता हूँ।

भाइयों और बहनों,

सद्गुरु सदाफल देव जी ने समाज के जागरण के लिए, ‘विहंगम योग’ को जन-जन तक पहुंचाने के लिए, यज्ञ किया था, आज वो संकल्प-बीज हमारे सामने इतने विशाल वट वृक्ष के रूप में खड़ा है। आज इक्यावन सौ एक यज्ञ कुंडों के विश्व शांति वैदिक महायज्ञ के रूप में, इतने बड़े सह-योगासन प्रशिक्षण शिविर के रूप में, इतने सेवा प्रकल्पों के रूप में, और लाखों-लाख साधकों के इस विशाल परिवार के रूप में, हम उस संत संकल्प की सिद्धि को अनुभव कर रहे हैं।

मैं सद्गुरु सदाफल देव जी को नमन करता हूँ, उनकी आध्यात्मिक उपस्थिति को प्रणाम करता हूँ। मैं श्री स्वतंत्रदेव जी महाराज और श्री विज्ञानदेव जी महाराज का भी आभार व्यक्त करता हूँ जो इस परंपरा को जीवंत बनाए हुए हैं, नया विस्तार दे रहे हैं और आज एक भव्‍य आध्‍यात्मिक भूमि का निर्माण हो रहा है। मुझे इसके दर्शन करने का अवसर मिला। जब ये पूर्ण हो जाएगा तो न सिर्फ काशी के लिए लेकिन हिंदुस्‍तान के लिए एक बहुत बड़ा नजराना बन जाएगा।

साथियों,

हमारा देश इतना अद्भुत है कि, यहाँ जब भी समय विपरीत होता है, कोई न कोई संत-विभूति, समय की धारा को मोड़ने के लिए अवतरित हो जाती है। ये भारत ही है जिसकी आज़ादी के सबसे बड़े नायक को दुनिया महात्मा बुलाती है, ये भारत ही है जहां आज़ादी के राजनीतिक आंदोलन के भीतर भी आध्यात्मिक चेतना निंरतर प्रवाहित रही है, और ये भारत ही है जहां साधकों की संस्था अपने वार्षिकोत्सव को आज़ादी के अमृत महोत्सव के रूप में मना रही है।

साथियों

यहां हर साधक गौरवान्वित है कि उनके पारमार्थिक गुरुदेव ने स्वाधीनता संग्राम को दिशा दी थी और असहयोग आंदोलन में जेल जाने वाले पहले व्यक्तियों में संत सदाफल देव जी भी थे। जेल में ही उन्होंने ‘स्वर्वेद’ के विचारों पर मंथन किया, जेल से रिहा होने के बाद उसे मूर्त स्वरूप दिया।

साथियों,

सैकड़ों साल के इतिहास में हमारे स्वाधीनता संग्राम के कितने ही ऐसे पहलू रहे हैं जिन्होंने देश को एकता के सूत्र में बांधे रखा। ऐसे कितने ही संत थे जो आध्यात्मिक तप छोड़कर आज़ादी के लिए जुटे। हमारे स्वाधीनता संग्राम की ये आध्यात्मिक धारा इतिहास में वैसे दर्ज नहीं की गई जैसे की जानी चाहिए थी। आज जब हम आजादी का अमृत महोत्सव मना रहे हैं तो इस धारा को सामने लाना हमारा दायित्व है। इसीलिए, आज देश आजादी की लड़ाई में अपने गुरुओं, संतों और तपस्वियों के योगदान को स्मरण कर रहा है, नई पीढ़ी को उनके योगदान से परिचित करा रहा है। मुझे खुशी है कि विहंगम योग संस्थान भी इसमें सक्रिय भूमिका निभा रहा है।

साथियों,

भविष्य के भारत को सुदृढ़ करने के लिए अपनी परम्पराओं, अपने ज्ञान दर्शन का विस्तार, आज समय की मांग है। इस सिद्धि के लिए काशी जैसे हमारे आध्यात्मिक और सांस्कृतिक केंद्र एक प्रभावी माध्यम बन सकते हैं। हमारी सभ्यता के ये प्राचीन शहर पूरे विश्व को दिशा दिखा सकते हैं। बनारस जैसे शहरों ने मुश्किल से मुश्किल समय में भी भारत की पहचान के, कला के, उद्यमिता के बीजों को सहेजकर रखा है। जहां बीज होता है, वृक्ष वहीं से विस्तार लेना शुरू करता है। और इसीलिए, आज जब हम बनारस के विकास की बात करते हैं, तो इससे पूरे भारत के विकास का रोडमैप भी बन जाता है।

भाइयों औऱ बहनों,

आज आप लाखों लोग यहाँ उपस्थित हैं। आप अलग-अलग राज्यों से, अलग-अलग जगहों से आए हैं। आप काशी में अपनी श्रद्धा, अपना विश्वास, अपनी ऊर्जा, और अपने साथ असीम संभावनाएं, कितना कुछ लेकर आए हैं। आप काशी से जब जाएंगे, तो नए विचार, नए संकल्प, यहाँ का आशीर्वाद, यहाँ के अनुभव, कितना कुछ लेकर जाएंगे। लेकिन वो दिन भी याद करिए, जब आप यहां आते थे तो क्या स्थिति थी। जो स्थान इतना पवित्र हो, उसकी बदहाली लोगों को निराश करती थी। लेकिन आज ये परिस्थिति बदल रही है।

आज जब देश-विदेश से लोग आते हैं तो एयरपोर्ट से निकलते ही उन्हें सब बदला-बदला लगता है। एयरपोर्ट से सीधे शहर तक आने में अब उतनी देर नहीं लगती। रिंगरोड का काम भी काशी ने रिकॉर्ड समय में पूरा किया है। बड़े वाहन और बाहर की गाडियाँ अब बाहर-बाहर ही निकल जाती हैं। बनारस आने वाली काफी सड़कें भी अब चौड़ी हो गई हैं। जो लोग सड़क के रास्ते बनारस आते हैं, वो अब इस सुविधा से कितना फर्क पड़ा है, ये अच्छी तरह से समझते हैं।

यहाँ आने के बाद आप चाहे बाबा विश्वनाथ के दर्शन करने जाएँ या माँ गंगा के घाटों पर जाएँ, हर जगह काशी की महिमा के अनुरूप ही आभा बढ़ रही है। काशी में बिजली के तारों के जंजाल को अंडरग्राउंड करने का काम जारी है, लाखों लीटर सीवेज का ट्रीटमेंट भी हो रहा है। इस विकास का लाभ यहाँ आस्था और पर्यटन के साथ साथ, यहाँ की कला-संस्कृति को भी मिल रहा है।

Trade facilitation centre हो, रुद्राक्ष convention centre हो, या बुनकरों-कारीगरों के लिए चलाये जा रहे प्रोग्राम, आज काशी के कौशल को नई ताकत मिल रही है। स्वास्थ्य के क्षेत्र में भी आधुनिक सुविधाओं और इनफ्रास्ट्रक्चर के कारण बनारस एक बड़े मेडिकल हब के रूप में उभर रहा है।

साथियों,

मैं जब काशी आता हूं या दिल्ली में भी रहता हूं तो प्रयास रहता है कि बनारस में हो रहे विकास कार्यों को गति देता रहूं। कल रात 12-12.30 बजे के बाद जैसे ही मुझे अवसर मिला, मैं फिर निकल पड़ा था अपनी काशी में जो काम चल रहे हैं, जो काम किया गया है, उनको देखने के लिए निकल पड़ा था। गौदोलिया में जो सुंदरीकरण का काम हुआ है, वो वाकई देखने योग्‍य बना है। वहां कितने ही लोगों से मेरी बातचीत हुई। मैंने मडुवाडीह में बनारस रेलवे स्टेशन भी देखा। इस स्टेशन का भी अब कायाकल्प हो चुका है। पुरातन को समेटे हुए, नवीनता को धारण करना, बनारस देश को नई दिशा दे रहा है।

साथियों,

इस विकास का सकारात्मक असर बनारस के साथ-साथ यहाँ आने वाले पर्यटकों पर भी पड़ रहा है। अगर हम 2019-20 की बात करें तो 2014-15 के मुक़ाबले में यहाँ आने वाले पर्यटकों की संख्या दोगुनी हो गई है। 2019-20 में, कोरोना के कालखंड में अकेले बाबतपुर एयरपोर्ट से ही 30 लाख से ज्यादा यात्रियों का आना-जाना हुआ है। इस बदलाव से काशी ने ये दिखाया है कि इच्छाशक्ति हो तो परिवर्तन आ सकता है।

यही बदलाव आज हमारे दूसरे तीर्थस्थानों में भी दिख रहा है। केदारनाथ, जहां अनेक कठिनाइयाँ होती थीं, 2013 की तबाही के बाद लोगों का आना जाना कम हो गया था, वहाँ भी अब रिकॉर्ड संख्या में श्रद्धालु पहुँच रहे हैं। इससे विकास और रोजगार के कितने असीम अवसर बन रहे हैं, युवाओं के सपनों को ताकत मिल रही है। यही विश्वास आज पूरे देश में दिख रहा है, इसी गति से आज देश विकास के नए कीर्तिमान स्थापित कर रहा है।

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