न्यूज़ डेस्क : तालिबान के काबुल में घुसने और पूरे अफगानिस्तान पर प्रभाव जमाने के बाद अब संगठन ने देश की नीतियों से जुड़े फैसले लेना भी शुरू कर दिया है। इसी कड़ी में देश की आजादी के 102 साल पूरे होने के मौके पर तालिबान नेतृत्व ने अफगानिस्तान के इस्लामिक अमीरात के गठन का एलान भी किया। तालिबान के प्रवक्ता जबीउल्लाह मुजाहिद ने कहा कि इस्लामिक अमीरात सभी देशों से अच्छे राजनयिक और व्यापारिक रिश्ते चाहता है। हमने अब तक किसी भी देश से व्यापार करने पर चर्चा नहीं की है।
क्या है इस्लामी अमीरात?
बता दें कि तालिबान की तरफ से यह एलान उसके राजधानी काबुल में कब्जा करने के चार दिन बाद आया है। बता दें कि अमीरात शब्द अमीर से बना है, इस्लाम में अमीर का मतलब प्रमुख या प्रधान से होता है। इस अमीर के तहत जो भी जगह या शहर या देश आता है, वो अमीरात कहलाता है। इस तरह इस्लामिक अमीरात ऑफ अफगानिस्तान का मतलब हुआ एक इस्लामिक देश। जैसे कि इस्लामिक रिपब्लिक ऑफ ईरान।
तालिबान के एक वरिष्ठ नेता वहीदुल्लाह हाशिमी ने न्यूज एजेंसी रॉयटर्स को बताया, अफगानिस्तान के इस्लामिक अमीरात के गठन के बाद अब इस देश में सत्ता चलाने के लिए तालिबान के प्रमुख नेताओं के एक परिषद बनाया जाएगा। इस परिषद का नेतृत्व तालिबान का सरगना हैबतुल्लाह अखुंदजादा करेगा। इसी के साथ ईरान की तरह ही अफगानिस्तान में भी एक सुप्रीम लीडर का पद होगा।
हाशिमी के मुताबिक, अभी अफगानिस्तान पर शासन के तरीके पर फैसला होना बाकी है, लेकिन अफगानिस्तान लोकतंत्र नहीं होगा। उन्होंने कहा कि देश में कोई लोकतांत्रिक प्रणाली नहीं हो सकती, क्योंकि इसका अफगानिस्तान में कोई आधार ही नहीं है। यहां सिर्फ शरिया कानून लागू हो सकता है और हम इस बारे में पहले से ही स्पष्ट हैं।
अफगानिस्तान के राष्ट्रपति पद के लिए तीन नाम आगे
इसी के साथ तालिबान आगे अफगान वायुसेना के पूर्व पायलटों और सैनिकों को सरकार में शामिल करने की कोशिश में है। तालिबान नेता ने कहा कि अखुनजादा के डिप्टी को अफगानिस्तान का राष्ट्रपति बनाया जा सकता है। इस वक्त तालिबान के सुप्रीम लीडर के तीन डिप्टी हैं- एक है तालिबान के संस्थापक मुल्ला उमर का बेटा, दूसरा तालिबान के एक धड़े हक्कानी नेटवर्क का ताकतवर नेता सिरादुद्दीन हक्कानी और तीसरा नाम है अब्दुल गनी बरादर, जो कि कतर में तालिबान का राजनीतिक चेहरा हैं और तालिबान के सह-संस्थापकों में से एक है।
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