प्रार्थना हमें अपने आंतरिक आत्मा के साथ सम्बन्ध स्थापित करने में सहयोग करती है : श्री अवधेशानंद जी…
पूज्य "सद्गुरुदेव" जी ने कहा - "पुनन्तु मा पितर: सौम्यास: पुनन्तु मा पितामहा: ..!" आप की महान उपलब्धियों, समृद्धि, सर्वत्र व्याप्त कीर्ति और चमत्कृत करती उच्चता के जड़ मूल में पूर्वजों के आशीष और देव अनुग्रह ही अदृश्य रूप में समाहित हैं !…
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