वैकल्पिक औषधि हेतु लक्ष्यों में संकेत के लिए केन्द्रीय औषधि अनुसंधान संस्थान (सीडीआरआई) की स्वर्णजयंती फेलो मलेरिया परजीवी के माइटोकॉन्ड्रियन की जांच कर रही हैं
वैज्ञानिक और औद्योगिक अनुसंधान परिषद – केन्द्रीय औषधि अनुसंधान संस्थान (सीएसआईआर – सीडीआरआई) में वर्ष 2020-21 की स्वर्ण जयंती फेलोशिप से सम्मानित वैज्ञानिक डॉ. नीति कुमार अपने शोध समूह के साथ एक ऐसे प्रोटीन की पहचान करने का प्रयास कर रही हैं जो मलेरिया के एकल माइटोकॉन्ड्रिया के आकार-कार्य को प्रभावित करता है तथा परजीवी को शरण देने के साथ ही यह कैसे अपने भीतर होने वाली टूट-फूट की मरम्मत कर लेता है। इन प्रक्रियाओं को समझ लेने से यह जानने में सहायता मिलेगी कि कैसे परजीवी पर्यावरणीय गड़बड़ी के अनुकूल अपने को व्यवस्थित कर लेता है एवं औषधि -प्रेरित विषाक्तता (फेनोटाइपिक दवा प्रतिरोध) को कम करने के अलावा उपचार पूरा होने के बाद भी संक्रमण की पुनरावृत्ति को बढ़ाता है और निष्क्रिय चरणों से बाहर निकल आता है।
मलेरिया जीव विज्ञान न केवल जैव रासायनिक या आणविक जांच के दृष्टिकोण से एक रोचक क्षेत्र है, बल्कि यह कोशिका जीव विज्ञान/ऑर्गेनेल-जीव विज्ञान के उत्सुक्तता पैदा करने वाले प्रश्नों का हल करने की भी अनुमति देता है। यह अन्तः कोशिकीय (इंट्रासेल्युलर) परजीवी अद्वितीय कोशिकीय अंगों (ऑर्गेनेल) जटिलता और विचलन भी प्रदर्शित करता है। इसमें एक एकल माइटोकॉन्ड्रियन है जो प्रकाश संश्लेषण नहीं करने वाला (एपिकोप्लास्ट), अवशेष लवक (प्लास्टिड) तथा बहुत गतिशील अंतःप्रद्रव्य जालिका (एंडोप्लाज्मिक रेटिकुलम) और लाइसोसोम वाला एक एकल माइटोकॉन्ड्रियन है जो नाटकीय रूपात्मक परिवर्तनों से गुजरता है।
अब तक मानव मलेरिया के कोशिकीय परजीवियों में जैवजनन, विभाजन और इन जीवों के भीतर होने वाली मरम्मत से संबंधित प्रश्नों का प्रायोगिक अन्वेषण बहुत सीमित है। परजीवी कोशिकीय जीवों में विखंडन-संलयन प्रक्रियाओं के बारे में समझना, विशेष रूप से माइटोकॉन्ड्रियन-ईआर-लाइसोसोम ऑर्गेनेल संपर्कों के लिए, अभी तक किसी भी प्रकार के अन्वेषण नहीं किए गए हैं।
इस क्षेत्र में आगे बढने के लिए, उनका समूह पर्यावरणीय तनाव और औषधि- उत्प्रेरित विषाक्तता की अवस्था में माइटोकॉन्ड्रियल गतिशीलता और अंतर- कोशिकीय (ऑर्गेनेल) संचार की जांच करने की कोशिश कर रहा है।
इस बारे में डॉ नीति ने बताया कि “औषधि निर्माता (फार्मास्युटिकल) कंपनियों के लिए, परजीवी जन्य रोग निवेश के लिए कम प्राथमिकता वाले क्षेत्र हैं, इसलिए, गम्भीर परजीवी परिपथों की जांच के लिए निरंतर ऐसे शैक्षणिक अनुसंधान प्रयासों की आवश्यकता होती है जो औषधि प्रतिरोध की वृद्धि से निपटने के लिए मलेरिया-रोधी हस्तक्षेप के क्षेत्र में वैकल्पिक स्थानों (साइटों) अथवा औषधियों के लक्ष्यों के बारे में संकेत दे सकते हैं, और इसे सीधे ही सामाजिक लाभों में उपयोग किया जा सकता है“।
डॉ. नीति का शोध समूह यह समझने के लिए बहु-आयामी दृष्टिकोणों का उपयोग कर रहा है कि कैसे गुणसूत्र समूह (जीनोम) और प्रोटिओम रखरखाव पथ के संरचनात्मक रूप से कार्यात्मक रूप से भिन्न घटक मलेरिया परजीवी को अपना अस्तित्व बनाए रखने का लाभ देते हैं । यह बहुत ही उलझाने वाला प्रश्न है कि गुणसूत्रीय आविशालुता (जीनोटॉक्सिक) और प्रोटीन जन्य विषाक्तता (प्रोटियोटॉक्सिक) तनाव की भेद्यता के बावजूद, परजीवी प्रतिकूल परिस्थितियों में भी कोशिकीय समस्थापन (सेलुलर होमियोस्टेसिस) को बनाए रखता है और मच्छर वेक्टर और प्रभावित होने वाले मनुष्य द्वारा बचाव के लिए प्रयोग की गई प्रतिरक्षा निगरानी का सामना करने में सक्षम है।
मौलिक शोध के अलावा, उनका समूह मलेरिया-रोधी दवा खोज कार्यक्रम और मुक्त स्रोत (ओपन-सोर्स) औषधि आविष्कार (ड्रग डिस्कवरी) की पहल जिसमे मलेरिया अनुसंधान (वेंचर) के लिए औषधियां भी के कार्य में जुटा हुआ है। उनका शोध समूह औषधि प्रतिरोधी मलेरिया के खिलाफ अनूठी खोज/संकेतों की पहचान करने के लिए औषधीय रसायन विज्ञान परिदृश्य की खोज में भी शामिल है और इसके लिए हस्तक्षेप के वैकल्पिक स्थलों का मूल्यांकन करने के लिए उनके संभावित तरीके की जांच कर रहा है।
उन्होंने आगे बताया कि “परजीवी जीव विज्ञान के जिज्ञासा-संचालित अनुसंधान अन्वेषणों के माध्यम से उत्पन्न जानकारी का अन्य परस्पर मानव रोगजनकों और मेजबान-रोगज़नक़ संपर्कों के लिए भी बहिर्वेशन (एक्सट्रपलेशन) किया जा सकता है”।
इस सम्बन्ध में अधिक जानकारी के लिए डॉ. नीति कुमार सीएसआईआर – सीडीआरआई (niti.kumar@cdri.res.in) से संपर्क किया जा सकता है।
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