सुप्रीम कोर्ट ने कहा- राज्यपाल से ज्यादा अधिकार संपन्न हैं दिल्ली के एलजी

नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि दिल्ली के उप राज्यपाल को अन्य राज्यों के राज्यपाल की अपेक्षा ज्यादा अधिकार संविधान से मिले हैं। चीफ जस्टिस दीपक मिश्र के नेतृत्व में बनी संविधान पीठ ने यह टिप्पणी की। उनका कहना था कि राज्यपाल केवल मंत्रिसमूह की सलाह पर काम (कुछ मामलों को छोड़कर) करता है, जबकि एलजी के लिए यह अनिवार्य नहीं है।

पीठ में जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, एएम खानविलकर, अशोक भूषण व एके सिकरी भी शामिल हैं। बृहस्पतिवार को सुनवाई के दौरान संविधान के अनुच्छेद 239एए के साथ 163 की व्याख्या की गई।

अदालत ने कहा कि अनुच्छेद 163 के तहत राज्यपाल के अधिकार परिभाषित किए गए हैं। यह अनुच्छेद 239एए की धारा 4 से काफी मिलता जुलता है। इसमें बड़ा अंतर यह है कि सूची 1,2,18 में दर्ज विषयों (पुलिस, जमीन व जन) पर दिल्ली विधानसभा कानून नहीं बना सकती।

यह पूरी तरह से केंद्र का अधिकार क्षेत्र है। दिल्ली सरकार की तरफ से पेश हुए अधिवक्ता राजीव धवन ने कहा कि संसद के पास राज्य विधानसभा के निर्णय को प्रभावित करने का अधिकार तो है, लेकिन केवल आपातकाल में। एलजी केवल राष्ट्रपति का नुमाइंदा होता है।

वह आपातकाल में खुद से फैसले कर सकते हैं। उन्हें रोजमर्रा के काम में दखल देने का अधिकार नहीं है। संविधान ने उसे असीमित अधिकार नहीं दिए हैं। धवन के मुताबिक एलजी कैसे कह सकते हैं कि अमुक अफसर यहां की जगह अब वहां काम करेगा।

दिल्ली के पास अपना पब्लिक सर्विस कमीशन नहीं है। सरकार इसे गठित कर सकती है, लेकिन अभी आइपीएस, आइएएस व आइआरएस अफसरों को यहां तैनात किया गया है। धवन का कहना था कि यह सारे अफसर एलजी का ही आदेश मानते हैं।

एलजी केवल दो स्थितियों में खुद से फैसला ले सकते हैं। जब सरकार ने अपनी सीमा लांघ दी हो या फिर दिल्ली को किसी तरह का खतरा हो। मंत्रिसमूह और एलजी के बीच किसी मसले मतभेद हैं तो बातचीत के जरिये उन्हें सुलझाया जा सकता है। तनाव बढ़ने पर राष्ट्रपति दखल दे सकते हैं।

उनका यह भी कहना था कि जब एक दल की सरकार केंद्र व दिल्ली में थी तो समस्या पैदा नही हुई। अब दोनों जगह अलग-अलग दलों की सरकार हैं और दोनों गुत्थमगुत्था हो रही हैं।

पुलिस, जमीन व जन पूरी तरह से केंद्र के अधीन हैं, लेकिन ऐसा नहीं है कि दिल्ली सरकार का इन मामलों में कोई दखल ही नहीं है?

बुधवार को हुई सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि दिल्ली विधानसभा के पास राज्य व उसके समवर्ती कुछ निश्चित मामलों में कानून बनाने का अधिकार है, जबकि संसद को केंद्र शासित प्रदेश दिल्ली के किसी भी मामले में कानून बनाने का अधिकार है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि दिल्ली सरकार की विधायी शक्तियों को संविधान सीमित करता है।

NEWS SOURCE :- www.jagran.com

Comments are closed.