देश में बढ़ते धूम्रपान को लेकर सुप्रीम कोर्ट के अधिवक्ता शुभम अवस्थी ने कोर्ट में दायर की जनहित याचिका
भारत में धूम्रपान को नियंत्रित करने के लिए दिशा-निर्देश जारी करने की रखी मांग
अधिवक्ता शुभम अवस्थी इससे पहले भी कई गंभीर सामाजिक मुद्दों को लेकर कोर्ट में उठा चुके हैं अपनी आवाज
— याचिकाकर्ता शुभम अवस्थी ने अपनी याचिका में अदालत से व्यावसायिक स्थानों और हवाई अड्डों में बने हुए धूम्रपान क्षेत्रों को हटाने, धूम्रपान करने की उम्र बढ़ाने, शैक्षणिक संस्थानों, स्वास्थ्य संस्थानों और पूजा स्थलों के पास सिगरेट की बिक्री पर प्रतिबंध लगाने व धूम्रपान के लिए जुर्माना राशि बढ़ाने के साथ ही खुली सिगरेट की बिक्री पर प्रतिबंध लगाने की अपील की है। याचिकाकर्ता का मानना है की युवा पीढ़ी विशेषकर कॉलेज के छात्रों के लिए खुली सिगरेट लेना आसान होता है और वह उसका सेवन आसानी से कर लेते हैं और वे लोग सिगरेट के पैकेट पर लिखी सेवन करने की स्वास्थ्य चेतावनी को नहीं देख पाते। अधिवक्ता शुभम अवस्थी ने बताया कि धूम्रपान सामग्री का इस तरह बिना रोक टोक बिकना लोगों की सेहत के लिए काफी खतरनाक है। धूम्रपान के लिए हवाई अड्डों, रेस्तरां और क्लबों में बने स्थान देश की युवा पीढ़ी पर काफी गलत प्रभाव डाल रहे हैं।
याचिकाकर्ता का मानना है कि स्वस्थ वातावरण में जीना अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार सभी लोगों को है। उन्होंने बताया कि हवाई अड्डों, रेस्तरां, क्लब आदि में बने धूम्रपान क्षेत्र में कांच के शीशे लगे होते हैं जिसके कारण वहां से गुजरने वाले लोग इनको देख कर प्रभावित होते हैं जिनमें छोटे बच्चे व नवयुवा भी शामिल होते हैं। अक्टूबर 2021 में बैंगलोर के एक सर्वे से पता चला कि जिन संस्थानों में धूम्रपान के लिए अलग से क्षेत्र बने हैं उनमें से केवल 1.9% संस्थानों के पास ही उसके लिए लाइसेंस हैं। यह एक ऐसी महामारी बन गई है कि अब भारत 16-64 आयु वर्ग के लिए धूम्रपान करने वालों की श्रेणी में दूसरे स्थान पर है। धूम्रपान न केवल फेफड़ों को नुकसान पहुंचाता है बल्कि आंखों की गंभीर हानि का कारण भी बनता है। भारत जैसे देश में जहां अंधेपन की सबसे अधिक आबादी है, वहां तंबाकू का इतना ज्यादा सेवन एक गंभीर विषय है। याचिकाकर्ता का यह मानना है कि इस याचिका पर अगर कोई फैसला आता है तो इससे भारत के लोगों को काफी फायदा होगा। पहली बार धूम्रपान करने वालों में से अधिकांश 13 से 15 वर्ष की आयु के बीच के लोग होते हैं। इस प्रकार के उत्पाद आसानी से उपलब्ध होने के कारण लोगों को इनकी लत जल्दी लग जाती है। यहां तक कि स्कूलों, कॉलेजों, संस्थानों, अस्पतालों आदि के आसपास इस प्रकार की दुकानें भारी मात्रा में होती हैं।
बता दें की यह याचिका भारत में धूम्रपान एवं उससे संबंधित सभी प्रमुख समस्याओं को लेकर दायर की गई है, आपको बता दें कि कोटपा एक्ट की धारा 4 के तहत अस्पताल भवन, न्यायालय भवन, सार्वजनिक कार्यालय, होटल, रेस्टोरेंट, शॉपिंग माल, शिक्षण संस्थान, सभागार और सार्वजनिक वाहन आदि जगहों पर धूम्रपान निषेध है। सभी सरकारी व गैर सरकारी सार्वजनिक स्थलों के प्रभारियों को धूम्रपान निषेध का बोर्ड लगाना अनिवार्य होता है । ऐसा नहीं किए जाने पर उन्हें जुर्माना देना होता है, वहीं धारा 6 के तहत तंबाकू उत्पाद विक्रेताओं को भी एक बोर्ड लगाना होता है , जिस पर इस बात की सूचना होनी चाहिए कि 18 वर्ष से कम व्यक्ति को तंबाकू उत्पाद की बिक्री नहीं की जाती है। लेकिन यह बहुत कम जगह देखने को मिलता है कि दुकानदार इसका पालन कर रहे हो और सिगरेट हर जगह आसानी से मिल जाती है और हर उम्र के लोग इसका सेवन खुले में करते हैं, बता दें की सिगरेट पीने वाले से ज्यादा नुकसान उसके साथ खड़े इंसान को उसके धुएं से होता है, सिगरेट का धुआँ ज्यादा नुक्सान पहुंचाता है जिसे हम सेकंड हैंड स्मोकिंग भी कहते हैं, बता दें कि अगर आप खुद स्मोकिंग नहीं करते लेकिन कोई और स्मोक कर रहा हो और आप वहां खड़े रहते हैं तो इसे सेकंड हैंड स्मोकिंग कहते हैं, ऐसा करना भी आपकी सेहत के साथ-साथ दिल के लिए कई तरह से नुकसानदेह साबित हो सकता है। लिहाजा सिर्फ धूम्रपान न करना ही नहीं बल्कि धूम्रपान करने वालों से दूर रहना बेहद जरूरी है। आपको बता दें -संयुक्त राज्य अमेरिका में हर साल दिल की बीमारी से लगभग 34,000 लोगों की मौत का कारण सेकेंड हैंड धुआँ है। सेकंड हैंड स्मोक से स्ट्रोक का खतरा 20−30% बढ़ जाता है। वैश्विक स्तर पर सेकंड हैंड स्मोक सालाना छह लाख से अधिक लोगों की जान ले रहा है इसे देखते हुए ऐसा कहना गलत नहीं होगा कि भारत में बेहतर धूम्रपान प्रतिबन्ध की सख्त आवश्यकता है और निश्चित ही धूम्रपान-मुक्त नीतियों का परिणाम धूम्रपान नहीं करने वालों को तंबाकू/धूम्रपान के धुएं के खतरनाक जोखिम से बचाएगा, जिसे सेकेंड हैंड स्मोक कहा जाता है।
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