बेनतीजा रही सरकार और किसानों के बीच सातवें दौर की वार्ता, अगली वार्ता आठ जनवरी को

 न्यूज़ डेस्क : कृषि कानूनों को निरस्त करने और एमएसपी की गारंटी की मांग, किसानों और सरकार के वार्ता की राह में रोड़े की तरह अटका हुआ है। न सरकार कदम पीछे खींच सकती है तो दूसरी तरफ 40 दिनों से दिल्ली की सीमाओं पर डटे किसान भी सर्दी से बेफिक्र अपनी मांगे पूरी होने तक नहीं लौटने के फैसले पर अटल हैं।

 

 

 

सोमवार को सरकार और किसानों के बीच सातवें दौर की वार्ता एक बार फिर बेनतीजा रही। अगली वार्ता आठ जनवरी के लिए टल गई है। किसानों ने पहले तयशुदा कार्यक्रमों के मुताबिक 26 जनवरी तक आंदोलन इसी क्रम में जारी रखने की घोषणा की है। छह तारीख को केएमपी पर मार्च भी करेंगे।

 

 

वार्ता के दौरान सरकार की ओर से किसानों को तीनों कृषि कानूनों पर बिन्दुवार चर्चा की बात कही गई, लेकिन किसानों ने साफ कर दिया है कि उनकी मांगे पूवर्वत हैं। कृषि कानूनों को निरस्त करना ही गतिरोध खत्म करने का एकमात्र विकल्प है। दोनों पक्षों के बीच सोमवार को सकारात्मक माहौल में बातचीत हुई और किसानों ने विज्ञान भवन में दोपहर का खाना भी खाया।किसान नेता युद्धवीर सिंह ने कहा कि अगली बैठक की तारीख दे दी गई है। उन्होंने कहा कि सरकार की मंशा समझ चुके हैं, लेकिन सरकार किसानों की भावनाएं शायद अब तक नहीं समझ सकी है। 

 

 

किसान संगठनों के नेताओं ने एमएसपी के मसले पर कमेटी बनाने के प्रस्ताव पर भी हामी नहीं भरी है, बल्कि 10 मिनट के लिए किसानों की चुप्पी से सरकार भी कुछ देर के लिए सोच में पड़ गई।

 

किसान नेता सतनाम सिंह ने कहा कि 450 किसान संगठनों की बैठक के बाद आंदोलन की रणनीति तैयार की गई है। सरकार समझ चुकी और आठ जनवरी की बैठक तक गतिरोध जारी है। विरोध के लिए तयशुदा कार्यक्रमों में कोई बदलाव नहीं किया जाएगा। 

 

राकेश टिकैत ने कहा कि बातचीत में कोई नतीजा नहीं निकला है। जब तक तीनों कानूनों को निरस्त नहीं किया जाता, किसान घर नहीं लौटेंगे। 

 

किसान नेता शिवकुमार शर्मा(कक्काजी) ने कहा कि वार्ता में कोई नतीजा नहीं निकला। 26 जनवरी तक के तय कार्यक्रमों के मुताबिक किसानों का विरोध जारी रहेगा। उधर, संयुक्त किसान मोर्चा ने सभी से अपील की है कि बारिश और भीषण ठंड की इस घड़ी में किसानों का सहयोग करें। 

 

 

आठ को होगी केंद्र-किसानों की आठवें दौर की वार्ता

संयुक्त किसान मोर्चा के सदस्य दर्शनपाल ने कहा कि सरकार की ओर से तीनों कानूनों में संशोधन के लिए प्रस्ताव दिए गए, लेकिन किसानों ने इसे ठुकरा दिया। किसानों ने एक बार फिर स्पष्ट कर दिया है कि तीनों कानूनों के रद्द करने के अलावा कोई विकल्प नहीं है। आठ जनवरी को दोपहर दो बजे किसान-सरकार के बीच आठवें दौर की वार्ता होगी।

 

बैठक की शुरुआत आंदोलन में अपनी जान गंवाने वाले किसानों की याद में दो मिनट मौन रखकर श्रद्धांजलि अर्पित की गई। इसमें सरकार के मंत्री और अधिकारी भी शामिल हुए।

 

हरियाणा पुलिस की बर्बरता पर किसानों ने जताया विरोध 

किसान नेताओ ने बैठक में हरियाणा पुलिस की ओर से जयपुर दिल्ली मार्ग पर किसानों पर की गई बर्बरता पर विरोध जताते हुए केंद्र सरकार से इस मामले में कड़ा रुख अपनाने को कहा। 

 

 

 

मुंबई में भी किसानों के समर्थन में कार्यक्रम

मुंबई के आजाद मैदान में एनएपीएम, एआईकेसीसी और घर बचाओ घर बनाओ आंदोलन के सहयोग से मुंबई की बस्तियों के सैंकड़ो लोगों ने किसानों के समर्थन में एक कार्यक्रम आयोजित किया। इसमें संघर्ष के गीत और नारों के बीच एक पत्रिका का भी विमोचन किया गया। इसमें तीन केंद्रीय कृषि कानूनों के सच को बारीकी से समझाया गया है। मेधा पाटकर, तीस्ता सीतलवाड़, प्रियंका राठौड़, सुनीति, अनिता पगारे और नेहा दर्शन पाल ने मुम्बई वासियों के सहयोग से इस कार्यक्रम का संचालन किया।

 

 

मृतकों को दी गई श्रद्धांजलि

गाजीपुर दिल्ली बार्डर पर किसानों ने संघर्ष के दौरान जान गंवाने वाले किसानों और गाजियाबाद शमशान घाट पर छत ढहने से दो दर्जन लोगों की मृत्यु होने पर शोक सभा आयोजित की। श्रंद्धाजलि देने के बाद लाउडस्पीकर बन्द करने के बाद सभा को स्थगित कर दिया गया। 

 

 

छत्तीसगढ़ के किसान सात को करेंगे दिल्ली कूच

छत्तीसगढ़ से 1000 किसानों का जत्था 7 जनवरी को दिल्ली कूच करेगा। मध्य प्रदेश के ग्वालियर व करहिया समेत अनेक जगहों में किसानों के पक्के मोर्चे लगे हुए है। 3 और 4 जनवरी को देश भर के छात्र संगठनों ने सावित्री बाई फुले के जन्मदिन पर विद्यार्थी-किसान एकता का परिचय देते हुए किसान आंदोलन को समर्थन दिया।

 

 

किसानों की मौत के लिए केंद्र के घमंड को ठहराया जिम्मेदार

संयुक्त किसान मोर्चा के सदस्यों ने कहा कि विभिन्न मोर्चो पर किसानों के शहीद होने का सिलसिला नहीं रुक रहा है। केंद्र सरकार का घमंड इन मौतों के लिए जिम्मेदार है। केंद्र सरकार से मोर्चा ने अपील की है कि मानवीय मूल्यों और संवेदना और किसान हित को ध्यान में रखते तीनो कृषि कानूनों को जल्दी से जल्दी खारिज किया जाए ।

 

 

Comments are closed.