इफ्फी-53 के इंडियन पैनोरामा वर्ग में ‘सऊदी वेल्लाक्का’ का प्रदर्शन
मैं इस फिल्म को कोर्ट-ड्रामा के बजाय सोशल-ड्रामा के रूप में प्रस्तुत करना चाहता हूं: निर्देशक थारुन मूर्ति फिल्म दिखाती है कि कैसे कोई व्यवस्था किसी व्यक्ति और परिवार की जिंदगी को प्रभावित करती हैः निर्माता संदीप सेनन
“मैं इस फिल्म को कोर्ट-ड्रामा के बजाय सोशल-ड्रामा के रूप में प्रस्तुत करना चाहता हूं। अपनी दूसरी फिल्म सऊदी वेल्लाक्का के साथ यहां आकर मुझे बहुत गर्व और खुशी महसूस हो रही है,” भारतीय फिल्म सऊदी वेल्लाक्का के निर्देशक थारुन मूर्ती ने कहा। गोवा में भारत अंतर्राष्ट्रीय फिल्म महोत्सव के दौरान वे फिल्म के निर्माता संदीप सेनन के साथ पत्र सूचना कार्यालय द्वारा आयोजित इफ्फी ‘टेबल-टॉक्स’ में मीडिया और प्रतिनिधियों से बात कर रहे थे।
इफ्फी-53 के इंडियन पैनोरामा वर्ग में ‘सऊदी वेल्लाक्का’ का प्रदर्शन किया गया। फिल्म को दो दिसंबर, 2022 को थियेटर में रिलीज किया जायेगा।
यह फिल्म एक 23 वर्षीय नौजवान अभिलाष शशिधरन के बारे में हैं, जिसे किसी पुराने मुकदमे में अदालत का सम्मन मिलता है। वह सदमे में आ जाता है, क्योंकि लंबी अदालती कार्रवाई के कारण खाड़ी देश जाने के लिये वीजा लेने का उसका सपना चूर-चूर हो सकता है। वह सच्चाई जानने के लिये बेचैन हो जाता है। उसे पता चलता है कि दो पड़ोसियों के बीच एक मामूली झगड़े ने बड़ा रूप ले लिया है। यह मामला एर्नाकुलम में सऊदी नामक स्थान का है, जिसके कारण इससे जुड़े हर व्यक्ति का जीवन बदल जाता है।
निर्माता संदीप सेनन कहते हैं कि यह फिल्म कोच्चि के एक बहुत छोटे समुदाय से जुड़ी है, जहां सऊदी नामक एक स्थान है। वे कहते हैं, “कहानी शुरू होती है एक पड़ोसी के सिर पर नारियल गिरने की घटना से और यही झगड़े का कारण बनता है। वर्षों तक यह मामला चलता रहता है। यहीं हम यह दर्शाते हैं कि कैसे एक व्यवस्था किसी व्यक्ति, उसके परिवार पर असर डालती है तथा कैसे लोग इसका सामना करते हैं। हम एक समुदाय में मौजूद मानवता पर भी गौर करते हैं। पूरी व्यवस्था उनके जीवन में बहुत बड़ी भूमिका निभाती है और धीरे-धीरे उनके जीवन को बदल देती है। फिल्म का क्लाइमेक्स भी दिलचस्प है। यह 85 वर्ष की एक बुजुर्ग महिला की बहुत भावुक यात्रा है।”
पात्रों की चयन-प्रक्रिया के बारे में पूछे गये एक सवाल के जवाब में निर्देशक ने कहा कि हम नई प्रतिभाओं, जमीन से जुड़े अभिनेताओं की खोज में थे। लिहाजा हमने कुछ स्ट्रीट कास्टिंग तकनीक इस्तेमाल की और काफी सोच-विचार व उलट-फेर करने के बाद बीनू पप्पू तथा लुकमान अवारन को चुन लिया। उन्होंने कहा, “मुझे बीनू के साथ काम करते हुये बहुत सहजता महसूस होती है; वे हमारे अच्छे साथी हैं। हमने फिल्मों के बारे में बहुत चर्चा की। हमारी सोच और हमारा मिशन समान था। लुकमान की आंखें बेहद मासूम हैं। हमें ऐसा कोई अभिनेता नजर नहीं आया, जिसकी आंखें सब-कुछ व्यक्त कर देती हों। इसलिये उनका चयन करना आसान हो गया था।”
बुजुर्ग अभिनेत्री को कास्ट करने में संभावित जोखिम के बारे में निर्माता ने कहा कि वे ऐसे जोखिम उठाते रहते हैं। उन्होंने कहा, “पटकथा की मांग थी कि कोई नया चेहरा हो। हमने बहुत सारी बुजुर्ग महिलाओं को देखा। यह उतार-चढ़ाव से भरी बहुत भावुक यात्रा थी। निर्माता के रूप में मैं महसूस करता हूं कि हमें पटकथा के साथ यात्रा करनी चाहिये, क्योंकि यात्रा करते-करते ही फिल्म भी आकार लेती रहती है। कास्टिंग भी इसी यात्रा का हिस्सा थी, जिस पर फिल्म हमें लेकर चलती है। हम किसी न किसी की तलाश में हैं और कोई न कोई हमारे पास आ ही जायेगा।”
मलयालम फिल्म उद्योग के बारे में फिल्म-निर्माता ने कहा कि प्रतिभा और विषयवस्तु के मामले में, मैं यही कहूंगा कि मलायलम फिल्म उद्योग बहुत विशाल है, लेकिन व्यापार के मामले में छोटा है। इसलिये हम जोखिम उठाने पर बाध्य हैं।
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