24 जुलाई 2022 तक 55335 मेगावाट की संचयी क्षमता वाले देश के 35 ताप विद्युत संयंत्रों में लगभग 80525 मीट्रिक टन जैव ईंधन और जीवाश्म ईंधन को एक समय में जलाया गया। एक समय में जैव ईंधन और जीवाश्म ईंधन को जलाने वाले संयंत्रों की संख्या लगभग एक वर्ष की अवधि में चौगुनी हो गई है। जबकि इन संयंत्रों में से 14 एनटीपीसी के हैं, राज्य और निजी क्षेत्र के 21 बिजली संयंत्र भी हैं। इन सभी के परिणामस्वरूप ताप बिजली उत्पादन में कार्बनडाइक्साइड फुटप्रिंट में 1 लाख मीट्रिक टन की कमी आई है। वित्त वर्ष 2020-21 के अंत तक, देश में केवल 7 बिजली संयंत्रों ने जैव ईंधन और जीवाश्म ईंधन को एक समय में जलाया था।
विद्युत मंत्रालय ने ताप बिजली संयंत्रों में जैव ईंधन के उपयोग पर राष्ट्रीय मिशन (समर्थ के रूप में पुनर्नामित) शुरू किया, जो ताप बिजली संयंत्रों में जैव ईंधन कचरे को जीवाश्म ईंधन के साथ एक समय पर जलाने का प्रावधान करता है, जो हरित बिजली उत्पादन के अवसर के लिए पराली जलाने की चुनौतियों को बदलने और किसानों और छोटे उद्यमियों के लिए आय सृजन का प्रयास करता है। समर्थ ताप बिजली संयंत्रों को जैव ईंधन और जीवाश्म ईंधन को एक समय में जलाने के सुचारू परिवर्तन को सक्षम बनाने में आने वाली समस्याओं को हल करने में अग्रणी रहा है।
जैव ईंधन खरीद पक्ष पर, 40 से अधिक संयंत्रों द्वारा बड़ी संख्या में नई निविदाएं मंगाई गई हैं। लगभग 248.16 लाख मीट्रिक टन जैव ईंधन निविदाएं निविदा प्रक्रिया के विभिन्न चरणों में हैं। इनमें से लगभग 120 लाख मीट्रिक टन दिए जाने के तहत हैं जबकि 13 लाख मीट्रिक टन जैव ईंधन निविदाओं के लिए पहले ही ऑर्डर दिया जा चुका है।
समर्थ मिशन एनपीटीआई की सहायता से किसानों, जैव ईंधन निर्माताओं और बिजली संयंत्र के अधिकारियों सहित इस क्षेत्र के विभिन्न हितधारकों के लिए लगातार ऑफ़लाइन और ऑनलाइन प्रशिक्षण और जागरूकता कार्यक्रम आयोजित कर रहा है। वित्त वर्ष 2021-22 में, 6 महीने की अवधि में इस तरह के 10 कार्यक्रम आयोजित किए गए थे। जबकि वित्त वर्ष 2021-22 में, प्रशिक्षण कार्यक्रम ज्यादातर एनसीआर क्षेत्र पर केन्द्रित थे, इस साल केन्द्र बिन्दु का देश भर में विस्तार किया गया है और इसे उन सभी प्रमुख राज्यों में शामिल करने की योजना है जहां अधिशेष जैव ईंधन उपलब्ध है। वित्त वर्ष 2022-23 में, प्रयासों को तेज करते हुए तीन महीने से भी कम समय में पहले ही 6 कार्यक्रम आयोजित किए जा चुके हैं। इस वर्ष आयोजित कार्यक्रमों में से, दुर्ग (छत्तीसगढ़), दाहोद (गुजरात) और कानपुर (यूपी) में किसानों के लिए 3 कार्यक्रम आयोजित किए गए हैं, पुणे (महाराष्ट्र) और चेन्नई (तमिलनाडु) में जैव ईंधन निर्माताओं के लिए 2 कार्यक्रम और देश भर में टीपीपी अधिकारियों के लिए एक ऑनलाइन कार्यक्रम आयोजित किए जा चुके हैं।
चूंकि बिजली संयंत्र कोयले की कमी के परिदृश्य का सामना कर रहे हैं, जैव ईंधन का महत्व काफी बढ़ गया है। आयातित कोयले की तेजी से बढ़ती कीमतों की तुलना में, जैव ईंधन पैलेट बहुत कम कीमतों पर उपलब्ध हैं। अत: जैव ईंधन और जीवाश्म ईंधन को एक समय में जलाना बिजली उत्पादन और वितरण के लिए आयातित कोयले के सम्मिश्रण की तुलना में पर्यावरण के अनुकूल और किफायती विकल्प है। इससे जैव ईंधन पेलेट निर्माण क्षेत्र को और गति मिलने की उम्मीद है। पराली जलाने की चुनौतियों को हरित बिजली उत्पादन के समाधान में बदलने और आय सृजन के सरकार के प्रयासों का असर देखने को मिल रहा है। हमें उम्मीद है कि उद्योग के निजी और सार्वजनिक क्षेत्रों के साथ किसानों की भागीदारी से, हम जैव ईंधन और जीवाश्म ईंधन को एक समय पर जलाने और ताप बिजली उत्पादन में कार्बन फुटप्रिंट में कमी को अगले स्तर तक ले जाने में सक्षम होंगे।
सर्वेक्षण रिपोर्ट के अनुसार, भारत में जैव ईंधन की वर्तमान उपलब्धता लगभग 750 मिलियन मीट्रिक टन प्रति वर्ष अनुमानित है। उपलब्ध जैव ईंधन मात्रा का लगभग 30 प्रतिशत अधिशेष है और अनुमान है कि इसका कम से कम आधा हिस्सा हर साल खेत में आग की भेंट चढ़ाने के लिए भेजा जाता है। भारत में फसल अवशेष जलाना देश में विशेष रूप से उत्तर-पश्चिमी राज्यों में एक प्रमुख मुद्दा है।
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