फिल्मों का पुनर्नवीकरण एक कला है: एमआईएफएफ मास्टरक्लास में शिवेंद्र सिंह डूंगरपुर

पुनर्नवीकरण फिल्म निर्माता के इरादे, उसकी कलात्मक अखंडता और फिल्म की पूर्णता की समझ है

राष्ट्रीय पुरस्कार विजेता फिल्म निर्माता, पुरालेखपाल और फिल्म पुनर्नवीकरण करने वाले शिवेंद्र सिंह डूंगरपुर ने 17वें मुंबई अंतर्राष्ट्रीय फिल्म महोत्सव (एमआईएफएफ) से इतर आज एक मास्टर क्लास में कहा कि फिल्म पुनर्नवीकरण फिल्म निर्माण की ही तरह का एक कला रूप है क्योंकि फिल्म का पुनर्नवीकरण करने वाले को एक कलाकार की आंख और दिमाग का उपयोग करना पड़ता है ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि पुनर्नवीकृत फिल्म मूल निर्माता की सोच से भिन्न न हो।

 

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‘द आर्ट एंड एथिक्स ऑफ फिल्म रिस्टोरेशन’ विषय पर मास्टरक्लास को संबोधित करते हुए श्री डूंगरपुर ने कहा- “पुनर्नवीकरण में न केवल फिल्म की भौतिक क्षति या विकृति की मरम्मत शामिल है, बल्कि इसमें मूल निर्माता के इरादे, कलात्मक अखंडता, सटीकता और फिल्म की पूर्णता पर भी विचार किया जाता है।”

उन्होंने संरक्षण प्रक्रिया के पांच प्रमुख तत्वों पर प्रकाश डाला, जिसमें अधिग्रहण, संरक्षण, दोहराव, पुनर्नवीकरण और पहुंच शामिल है।

 

श्री डूंगरपुर ने कहा कि “भारत में कुल मिलाकर हम फिल्म को एक कला के रूप में नहीं बल्कि एक व्यावसायिक इकाई के रूप में देखते हैं। यही मूल सिद्धांत है जिस पर पुनर्नवीकरण की प्रक्रिया का निर्माण किया जा रहा है। यह उन कारणों में से एक कारण है जिसके चलते हमने भारत की पहली टॉकी ‘आलम आरा’ और पहली रंगीन फिल्म ‘किसान कन्या’ जैसी कई क्लासिक फिल्में खो दी हैं।”

उन्होंने बड़े पैमाने पर डिजिटलीकरण कार्यक्रम और गुणवत्तापूर्ण पुनर्नवीकरण के बीच अंतर पर भी चर्चा की। उन्होंने अपने विचार-विमर्श में पुनर्नवीकरण की पूरी प्रक्रिया को अनुसंधान और सर्वोत्तम तत्वों के साधन से लेकर पुनर्नवीकरण के काम की धारा और अंतिम आउटपुट के साथ पुनर्नवीकृत फिल्म के जीवन-काल तक को शामिल किया। उन्होंने विश्व स्तर के पुनर्नवीकरण के केस स्टडीज को चित्रित किया जिसमें उदय शंकर की ‘कल्पना’, सत्यजीत रे की ‘अप्पू ट्रिलॉजी’ और अरविंदन की ‘थम्प’ का केस स्टडीज शामिल है जिसका कान फिल्म फेस्टिवल, 2022 में विश्व प्रीमियर हुआ था।

 

वक्ता के बारे में

शिवेंद्र सिंह डूंगरपुर एक पुरस्कार विजेता भारतीय फिल्म निर्माता, प्रोड्यूसर, फिल्म संग्रहकर्ता और फिल्मों का पुनर्नवीकरण करने वाले हैं, जिन्हें उनकी अपनी फिल्मों “सेल्युलाइड मैन”, “द इम्मोर्टल्स” और “चेकमेट – इन सर्च ऑफ जिरी मेन्ज़ेल” के लिए प्रशंसा प्राप्त है। उन्होंने 2001 में डूंगरपुर फिल्म्स की स्थापना की और 2014 में फिल्म हेरिटेज फाउंडेशन की भी स्थापना की। 2012 में, उन्होंने प्रसिद्ध फिल्म विद्वान, संरक्षणवादी और नेशनल फिल्म आर्काइव ऑफ इंडिया के संस्थापक पी. के. नायर के जीवन पर आधारित अपनी डॉक्युमेंट्री सेल्युलाइड मैन के लिए दो राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार जीते।

 

 

 

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