न्यूज़ डेस्क : कश्मीर के तुलमुला में कश्मीरी पंडितों का प्रसिद्ध मंदिर है, जो कश्मीर में होने वाले किसी भी परिवर्तन या संकट का संदेश देता है। मान्यता है कि रावण की भक्ति से प्रसन्न होकर मां राज्ञा माता (क्षीर भवानी या राग्याना देवी) ने रावण को दर्शन दिए थे। जिसके बाद रावण ने उनकी स्थापना श्रीलंका की कुलदेवी के रूप में की थी।
कुछ समय बाद रावण के व्यवहार और बुरे कर्मों के चलते देवी उससे रूष्ठ हो गईं और श्रीलंका से जाने की इच्छा व्यक्त की। इसके बाद जब भगवान राम ने रावण का वध कर दिया तो उन्होंने भगवान हनुमान को यह काम दिया कि वह देवी के लिए उनका पसंदीदा स्थान चुनें और स्थापना करें। इस पर देवी ने कश्मीर के तुलमुला को चुना।
माना जाता है कि वनवास के दौरान राम राग्याना माता की आराधना करते थे तो मां राज्ञा माता को रागिनी कुंड में स्थापित किया गया। कहा जाता है कि क्षीर भवानी माता किसी भी अनहोनी का संकेत पहले ही दे देती हैं। उनके कुंड यानि चश्मे के पानी का रंग बदल जाता है। इतना ही नहीं क्षीर भवानी के रंग परिवर्तन का जिक्र आइने अकबरी में भी है।
2008 में अमरनाथ भूमि आंदोलन, 2010 में उमर अब्दुल्ला सरकार में हिंसा, 2014 में बाढ़ तथा 2016 में हिजबुल आतंकी बुरहान वानी के मारे जाने के बाद हुई हिंसा के दौरान भी पानी का रंग बदल गया था। घाटी में जब आतंकवाद का दौर शुरू हुआ था, तब भी कुंड के जल का रंग बदला था। अनुच्छेद 370 हटने से पहले मंदिर की देखरेख करने वाले राजेंद्र सिंह ने बताया था कि अगस्त महीने की शुरूआत में कुंड के जल का रंग बदल गया था।
हर साल पूजा से पहले मंदिर के कुंड में दूध और खीर डालते हैं। इस खीर से चश्मे का पानी रंग बदलता है। खीर का मतलब दूध और भवानी का मतलब भविष्यवाणी है। यही कारण है कि झरने की मंदिर में बहुत महत्ता है। इस विचार से यहां के मुसलमान और पंडित दोनों सहमत हैं। यहां के मुस्लिमों का मानना है कि, ये हमारे लिए तीर्थ है, हमारी मुराद पूरी होती है।
इस मंदिर का निर्माण 1912 में महाराजा प्रताप सिंह ने कराया था। बाद में महाराजा हरी सिंह ने जीर्णोद्वार कराया। कश्मीर में अमरनाथ गुफा के बाद यह सबसे पवित्र स्थान माना जाता है।
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