‘चौकीदार चोर है’ मामलें के क़ानूनी पेच मे उलझते जा रहे राहुल गाँधी

न्यूज़ डेस्क :  राहुल गांधी शायद यह नहीं समझ पा रहे हैं कि कानून से कैसे निपटें। ‘चौकीदार चोर है’ को राजनीतिक हथियार बनाकर चल रहे राहुल नोटिस के बावजूद कोर्ट से उस बात के लिए माफी मांगने से बच रहे हैं जिसके तहत उन्होंने कोर्ट को भी अपनी राजनीति का हथियार बना लिया था और कहा था कि कोर्ट ने उनके आरोप की पुष्टि कर दी है।

 

स्पष्टीकरण के बाद कोर्ट की नोटिस के जवाब मे भी उन्होंने कोर्ट को घसीटे जाने के लिए सिर्फ खेद जताया। माफी नहीं मांगी। जबकि कानूनविदों का साफ मानना है कि कोर्ट की अवमानना के मामले में माफी मांगनी ही पड़ती है। इस पर मंगलवार को फिर सुनवाई होनी है। पिछली सुनवाई पर याचिकाकर्ता मीनाक्षी लेखी के वकील मुकुल रोहतगी ने राहुल के माफी न मांगे जाने का मुद्दा उठाया था और कहा था कि राहुल ने माना है कि सुप्रीम कोर्ट ने आदेश में नहीं कहा है कि ‘चौकीदार चोर है’ और वे कोर्ट के नाम पर दिये गए अपने बयान के लिए खेद जताते हैं। खेद शब्द भी कोष्ठक में दिया गया है। इसे माफी मांगना नहीं कहा जाएगा।

 

जब राहुल के वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा था कि कोर्ट ने नोटिस नहीं दिया था, सिर्फ स्पष्टीकरण मांगा था और उन्होंने स्पष्टीकरण दिया है। तो तत्काल कोर्ट ने राहुल गांधी को अवमानना का नोटिस जारी किया था। वैसे कोर्ट ने राहुल गांधी को व्यक्तिगत रूप से पेशी से छूट दे दी थी। संकेत साफ है, लेकिन राहुल के वकील शायद चूक गए।

 

कानूनविदों का कहना है कि कहना कि राहुल गांधी को स्पष्ट तौर पर माफी मांगनी चाहिए थी। सुप्रीम कोर्ट के वकील डीके गर्ग कहते हैं कि खेद और माफी शब्द में अंतर होता है। अब कोर्ट के ऊपर है कि वह बिना माफी मांगे राहुल की ओर से दिये गए स्पष्टीकरण को स्वीकार करता है या नहीं। इलाहाबाद हाईकोर्ट के पूर्व न्यायाधीश एसआर सिंह भी अपने अनुभव का हवाला देते हुए कहते हैं कि सामान्य तौर पर अवमानना के मामले में व्यक्ति कोर्ट से माफी मांगता है।

 

राहुल गांधी ने सोमवार को दाखिल किये गए अपने नये हलफनामे में भी कमोवेश वही बातें कही हैं जो पिछले हलफनामे में कही थीं। राहुल ने फिर कहा है कि उन्होंने बयान चुनाव प्रचार के दौरान आवेश में दे दिया था। उनकी मंशा कोर्ट की गरिमा को ठेस पहुंचाने या कम करने की कभी नहीं थी।

दरअसल, चुनावी सरगर्मी के बीच राहुल को इसका अहसास है कि माफी शब्द का इस्तेमाल उन्हें भारी पड़ेगा। यही कारण है कि जवाब में फिर से दोहराया कि राफेल मामले की जेसीपी से जांच कराई जानी चाहिए। लेकिन कोर्ट को नाराज करना भी मुश्किल पड़ सकता है।

 

Comments are closed.