नई दिल्ली । ट्राई के चेयरमैन आरएस शर्मा ने बिना लाइसेंस वाली या रजिस्टर्ड कंपनियों को पब्लिक वाई-फाई सर्विस प्रोवाइड करने की मंजूरी देने पर टेलीकॉम फर्मों की तरफ से की जा रही आलोचना को खारिज कर दिया है। उन्होंने कहा कि ये कंपनियां पहले से सेक्टर में ऑपरेट कर रही हैं। इसलिए टेलीकॉम फर्में बिना वजह इनका विरोध कर रही हैं।
इस विवादित मामले पर शर्मा ने कहा कि मोबाइल फोन कंपनियों को उल्टे इस मॉडल से फायदा ही होगा,
क्योंकि रजिस्टर्ड कंपनियां इनके डेटा को फिर से बेचेंगी, जिससे कंपनी को अतिरिक्त बिजनेस मिलेगा। वहीं, टेलिकॉम कंपनियों ने इस मामले में पीएमओ और डिपार्टमेंट ऑफ टेलीकम्युनिकेशन (डीओटी) के हस्तक्षेप की मांग की है। उनका कहना है कि मौजूदा कानून में बिना लाइसेंस या रजिस्टर्ड कंपनियों को पब्लिक वाई-फाई प्रोवाइड कराने की मंजूरी देने की गुंजाइश नहीं है। शर्मा ने कहा,टेलीकॉम सेक्टर में कई रजिस्टर्ड कंपनियां पहले से काम कर रही हैं। उदाहरण के लिए, इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोवाइडर्स।
उनके पास लाइसेंस नहीं है,लेकिन उन्होंने रजिस्ट्रेशन कराया है। दिलचस्प बात यह है कि अगर आप किसी होटल या कॉफी शॉप में जाते हैं,तो वाई-फाई की सुविधा ऑफर की जाती है। उनके पास भी लाइसेंस नहीं है।’
लॉबिंग ग्रुप सेल्युलर ऑपरेटर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया (सीओएआई) की अगुआई में टेलीकॉम कंपनियां बिना लाइसेंस वाली किसी भी एंटिटी को पब्लिक डेटा ऑफिस एग्रीगेटर्स (पीडीओए) बनने की इजाजत देने का विरोध कर रही हैं, क्योंकि मौजूदा नियमों के मुताबिक टेलिकॉम कंपनियों को सरकार के साथ रेवेन्यू शेयर करना पड़ता है।
वहीं,अगर प्रस्तावित योजना आगे बढ़ती है तो पीडीओए को अपनी आमदनी सरकार के साथ नहीं बांटनी पड़ेगी। पीडीओए आमतौर पर कुछ हजार वाई-फाई हॉटस्पॉट या पब्लिक डेटा ऑफिस (पीडीओ) को कनेक्शन देगी और उससे कमाई करेगी। सीओएआई ने कहा कि ट्राई की सिफारिश को लागू करना ट्राई एक्ट,
1997 के साथ इंडियन टेलीग्राफ एक्ट 1985 का भी उल्लंघन होगा। इससे ‘लाइसेंस वाले ऑपरेटर्स के रेवेन्यू में कमी आएगी। इसके साथ ही लाइसेंस फीस, स्पेक्ट्रम को इस्तेमाल की फीस या एयरवेज के लिए और किसी तरह के एडवांस पेमेंट नहीं मिलने से सरकारी खजाने को भी इससे नुकसान उठाना पड़ेगा।
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