प्रार्थना हमें अपने आंतरिक आत्मा के साथ सम्बन्ध स्थापित करने में सहयोग करती है : श्री अवधेशानंद जी महाराज
प्रार्थना विश्वास की आवाज या प्रतिफल है।
पूज्य “सद्गुरुदेव” जी ने कहा – “पुनन्तु मा पितर: सौम्यास: पुनन्तु मा पितामहा: ..!” आप की महान उपलब्धियों, समृद्धि, सर्वत्र व्याप्त कीर्ति और चमत्कृत करती उच्चता के जड़ मूल में पूर्वजों के आशीष और देव अनुग्रह ही अदृश्य रूप में समाहित हैं ! अतः कृतज्ञ रहें ! ईश्वरीय सामर्थ्य सम्पन्न पूज्य पितरों के आशीर्वाद से हमारे लौकिक-पारलौकिक पुरूषार्थ सिद्ध हो। देव और पितरों की अनुकूलता प्राप्त करने के लिए चेतना के उन्नयन उत्कर्ष निमित्त पारमार्थिक एवं सत्कर्म संलग्न रहें। शुद्ध अन्तःकरण के द्वारा की गई प्रार्थना से हम ईश्वरकृपा व पितृकृपा के सहज अधिकारी बन जाते हैं।
प्रार्थना हमें अपने आंतरिक आत्मा के साथ सम्बन्ध स्थापित करने में सहयोग करती है। हृदय से की गई प्रार्थनाएँ हमारे विचारों, भावनाओं और कार्यों को शुद्ध करती हैं; प्रार्थना आनन्द और शान्ति की एक उत्कृष्ट भावना प्रदान करती हैं। सच्ची प्रार्थना वही है, जो निःस्वार्थ भाव से पूर्ण समर्पण के साथ की जाए। प्रार्थना अर्थात्, आत्मा की आवाज परमात्मा तक पहुँचाने की संदेशवाहक है। प्रार्थना आत्म शुद्धि का आवाहन है। प्रार्थना मानवीय प्रयत्नों में ईश्वरतत्व का सुन्दर समन्वय है। प्रार्थना आत्मविश्वास का पहला पायदान है। प्रार्थना से बड़ा बल, विश्वास, प्रेरणा, आशा और सही मार्गदर्शन मिलता है। जब हम प्रार्थना करते हैं तो अपने अहम का दमन करते हैं। प्रार्थना करने से हमारे मन से कलुषित विचार दूर होते जाता है। प्रार्थना हमें मनुष्यता सिखाती है। प्रार्थना पश्चाताप का चिह्न व प्रतीक है। यह हमें अच्छा और पवित्र बनने के लिये प्रेरणा देती है। प्रार्थना धर्म का सार है। प्रार्थना याचना नहीं, बल्कि आत्मा की पुकार है।
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प्रार्थना हमारी दुर्बलताओं की स्वीकृति नहीं, प्रार्थना हमारे हृदय में सतत् चलने वाला अनुसंधान है। प्रार्थना में परमेश्वर की प्रशंसा, स्तुति, गुणगान, धन्यवाद, सहायता की कामना, मार्गदर्शन की इच्छा, दूसरों का हित चिन्तन आदि होते हैं। प्रार्थना नम्रता की पुकार है। प्रार्थना आत्मशुध्दि व आत्म निरीक्षण का आह्वान है। प्रार्थना विश्वास की आवाज या प्रतिफल है। प्रार्थना हमें संगठित करती है। प्रार्थना मनुष्य की श्रेष्ठता की प्रतीक है, क्योंकि यह उसके और परमात्मा के घनिष्ठ सम्बन्धों को दर्शाती है। प्रार्थना से आत्म सत्ता में परमात्मा का सूक्ष्म दिव्य तत्व झलकने लगता है। हर एक धर्म में प्रार्थना का बड़ा महत्व है। सभी धर्म-गुरुओं, ग्रंथों और संतों ने प्रार्थना पर बड़ा बल दिया है। उन्होंने प्रार्थना को परम-पद प्राप्ति का, मोक्ष का द्वार कहा है …।
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