लखनऊ । उत्पीडऩ की शिकार किशोरी अब भी आश्वस्त नहीं है कि उसे न्याय मिल पायेगा। उसने विधायक पर दुष्कर्म के आरोप के साथ उनके परिवारीजन पर अपने पिता की हत्या कराने का आरोप लगाया है। पिछले एक वर्ष से किशोरी की फरियाद थाना, पुलिस से लेकर सत्ता प्रतिष्ठानों तक दम तोड़ती रही। सच यह है कि अगर संदिग्ध परिस्थितियों में उसका पिता जेल में नहीं मरता तो यह कार्रवाई नहीं हो पाती।
यह सवाल उठने का वाजिब कारण भी है। लड़की और उसका परिवार तो आठ अप्रैल को लखनऊ में प्रदर्शन और आत्मदाह का प्रयास करके वापस उन्नाव लौट चुके थे। लड़की के इतने बड़े आरोप के बाद भी पुलिस ने कुछ खास नहीं किया था। कार्रवाई के नाम पर केवल कागजी घोड़े दौड़ाए जाते रहे। सोमवार तड़के करीब साढ़े तीन बजे किशोरी के पिता की मौत हुई तो पुलिस और जेल प्रशासन गंभीर सवालों के घेरे में आ गए और तब कोई एक्शन लेना पुलिस की मजबूरी हो गया। यह भी कहा जा रहा है कि हाल के राज्यसभा चुनाव में बसपा विधायक को भाजपा के पाले में लाने में कुलदीप सेंगर की भी भूमिका रही।
किशोरी तो पिछले वर्ष से ही विधायक पर आरोप लगा रही थी लेकिन, विधायक के रसूख के आगे पुलिस बेबस थी। इस मामले को वापस लेने के दबाव में विधायक के परिवार वालों ने किशोरी के पिता की पिटाई की और उसे उल्टे जेल भी भिजवा दिया। जेल में उसकी मौत हो गई। पिता की मौत के पहले संबंधित थाने के इंस्पेक्टर और विधायक समेत उनके पैरोकार परिवार को हिस्ट्रीशीटर और अपराधी साबित करने पर तुले हुए थे। सत्ता की हनक और विधायक के दबाव में किशोरी के साथ हुए दुष्कर्म और परिवार के साथ उत्पीडऩ की घटनाएं पीछे छूट गई थीं।
पुलिस यही साबित करने पर तुली थी कि यह ग्राम प्रधानी के रंजिश में अपराधियों की साजिश है। विधायक ने भी मीडिया के सामने यही दोहराया पर, गांव और आसपास से लेकर राजनीतिक गलियारों में यह सवाल बना रहा कि अपनी आबरू की कीमत पर कोई लड़की क्यों आरोप लगाएगी। घटना के बाद भी विधायक ने जिस तरह मुख्यमंत्री के शास्त्री भवन स्थित सचिवालय जाकर उनसे मिलने की कोशिश की और हंसते-मुस्कराते हुए सत्ता में अपनी दखल का प्रदर्शन किया उसका अहसास भी लोगों ने किया। इसका असर भी दिखा। विधायक के भाई का जब मेडिकल कराया गया तब भी उनका रसूख सिर चढ़कर बोल रहा था।
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