अधूरी रह गई पांडवों की राजधानी इंद्रप्रस्थ की खोज, 63 साल में खर्च हो चुके एक करोड़ से अधिक

नई दिल्ली । पांडवों की राजधानी इंद्रप्रस्थ पुराने किले के टीले पर थी या नहीं, यह खोज फिर अधूरी रह गई है। पिछले 63 साल में इस मामले से पर्दा उठाने के लिए चार बार खोदाई हो चुकी है। इस पर एक करोड़ से अधिक की राशि खर्च हो चुकी है। मगर भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआइ) को इस मामले में अभी तक कुछ भी ठोस प्रमाण नहीं मिला है।

गर्मी अधिक शुरू हो जाने के कारण एएसआइ ने इस बार शुरू की गई खोदाई को बंद कर अब खोदाई स्थल को मिट्टी से भरने का काम शुरू कर दिया है। अब एएसआइ पुराना किला में अगले साल फिर से खोदाई शुरू करा सकता है।

एएसआइ इस किले की हर बार हो चुकी खोदाई में मिले मृदभांड आदि से तथ्यों को जोड़ कर यह बात कहता रहा है कि इस स्थान की खोदाई में पांडवों के समय के कुछ अवशेष मिले हैं। जैसे जो रिंग वेल यानी छोटे कुओं का संबंध महाभारत काल और इससे ठीक पहले के कालों से रहा है, इस तरह के कुएं इस खोदाई में मिले हैं।

इसके इलावा खोदाई में मिले मृदभांड यानी उस समय के बर्तनों के अवशेष भी मिले हैं जिन्हें महाभारत के समय से जोड़ कर देखा जा रहा है। मगर एएसआइ ने एक आरटीआइ के जवाब में साफ कहा है कि 1955 से लेकर अब तक की खोदाई में अभी तक पांडवों से संबंधित ऐसा कोई साक्ष्य नहीं मिला है।

आरटीआइ के जवाब में 1972-73 में पुराना किला की खोदाई में मौर्य काल (4 से 3 शताब्दी) से लेकर मुगलकाल तक के साक्ष्य मिले हैं। 2014 में हुई इस खोदाई में भी मौर्यकाल से लेकर मुगलकाल तक के साक्ष्य मिले हैं।

विभाग में तीन साल के बाद का खर्च नहीं रखा जाता है। नियम जीएफआर 2017 के अनुसार खर्च से संबंधित दस्तावेज तीन साल बाद नहीं रखे जाते हैं। जबकि 2013-14 में हुई खोदाई 1398332 तथा 2014-15 में 15  हजार 50 हजार खर्च आया है। जबकि 2017-18 का खर्च भी अभी तक सामने नहीं आया है। मगर बताया जा रहा है कि 1955 से लेकर अब तक हुई खोदाई में एक करोड़ से अधिक की राशि खर्च हो चुकी है।

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