वैज्ञानिकों का मानना है कि कुछ लोगों की पॉटी में ऐसे बैक्टीरिया मौजूद होते हैं जिसकी मदद से किसी व्यक्ति के रोगी आंत को ठीक किया जा सकता है l
वेगन लोगों की पॉटी में इस तरह के अच्छे बग हो सकते हैं l हालांकि ऐसा कोई सबूत नहीं है कि वेगन लोगों की पॉटी की क्वालिटी अन्य आहार लेने वालों की तुलना में बेहतर होती हैए लेकिन विशेषज्ञ यह रिसर्च कर रहे हैं कि आखिर वो क्या चीज़ है जिससे पॉटी श्बढ़ियाश् के दर्जे में आती है l डॉक्टर जस्टिन ओश्सुलीवन ऑकलैंड यूनिवर्सिटी में एक मॉलिक्यूलर बायोलॉजिस्ट ; आणविक जीवविज्ञानीद् हैं और वे सुपर पू डोनर्सश् के सिद्धांत पर काम कर रहे हैं l
क्या है सुपर पू
इंसान की आंतों में लाखों की संख्या में गुड और बैड दोनों तरह के कई प्रकार के बैक्टीरिया रहते हैंण् ये सूक्ष्म जीव आपस में एक दूसरे से अलग होते हैं l हालांकि चिकित्सा के क्षेत्र में पॉटी को दूसरे की आंत में डालना एकदम नया हैए लेकिन रिसर्च में मिले सबूत इस बात का प्रमाण हैं कि कुछ दानकर्ता अपनी पॉटी से पैसे भी कमा सकते हैं l
डॉक्टर जस्टिन ओश्सुलीवन कहते हैंए ष्यदि हम पता लगा सकें कि यह कैसे होता हैए तो मल प्रत्यारोपण की सफलता में सुधार कर सकते हैं और अल्जाइमरए मल्टीपल स्केलेरोसिस और अस्थमा जैसी सूक्ष्म जीवों से जुड़ी बीमारियों में भी इसका परीक्षण किया जा सकता है l डॉक्टर जॉन लैंडी वेस्ट हर्टफोर्डशायर अस्पताल एनएसएच ट्रस्ट में एक कन्सल्टेंट गैस्ट्रोएंट्रोलॉजिस्ट हैं जो मल प्रत्यारोपण ईकाई में मदद करते हैं l
पॉटी में जीवाणु
डॉ ओश्सुलिवन के शोध के मुाताबिक़ व्यक्ति के म में अपने तरह के जीवाणु होते हैं जो लाभदायक साबित हो सकता हैण्न का ये शोध फ्रंटियर्स इन सेलुलर एंड इन्फेक्शन माइक्रोबायोलॉजी में प्रकाशित हुआ है l डॉ ओश्सुलिवन कहते हैं कि मल प्रत्यारोपण के नतीजों को देखें तो पॉटी दाता के मल में मौजूद अधिक तरह जीवाणु बेहद अहम साबित होते हैं और जिन मरीजों में मल प्रत्यारोपण सफल होता है उनके शरीर में बेहतर और विविध माइक्रोबायोम भी विकसित होता है
लेकिन शोध से पता चलता है कि प्रत्यारोपण की सफलता इस बात पर भी निर्भर करती है कि दाता और मरीज़ का मैच कितना बेहतर होता है l
ये केवल पॉटी में मौजूद बैक्टिरीया पर निर्भर नहीं करता l
ष्फ़िल्टर्ड पॉटी के प्रत्यारोपण के ज़रिए बार.बार दस्त होने के कुछ मामलों में अच्छे नतीजे भी मिले हैंण् इन मरीज़ के मल में जीवित बैक्टीरिया निकल जाता था जबकि उसमें डीएनए और वायरस बरकरार रहते थे l डॉ ओश्सुलिवन कहते हैंए ष्ये वायरस प्रत्यारोपित किए गए बैक्टीरिया और अन्य जीवाणु के जीवित रहने और उनके मेटाबोलिक काम पर असर डाल सकते हैं l
लंदन के इंपीरियल कॉलेज में माइक्रोबायोम की विशेषज्ञ डॉ जूली मैक्डोनल्ड मल प्रत्यारोपण की सफलता दर को बढ़ाने के विषय पर अध्ययन कर रही हैं l मौजूदा वक्त मेंए मल दान का अधिकतर इस्तेमाल क्लोस्ट्रीडियम डिफ्फिसिल नाम के पेट के संक्रमण की वजह से होने वाली ख़तरनाक स्थिति के इलाज के लिए किया जाता है l ये संक्रमण किसी मरीज़ के पेट पर तब कब्ज़ा कर लेता है जब एंटीबायोटिक खाने के कारण मरीज़ के पेट में मौजूद उसके अच्छे जीवाणु ख़म हो गए होंगे कमज़ोर आंत वाले मरीज़ के लिए ये घातक हो सकता है l
डॉ जूली मैक्डोनल्ड के काम से इशारा मिलता है कि मल प्रत्यार्पण को किसी विषेश काम में लाया जा सकता है जैसे कि बीमारी के कारण खोई गई चीज़ की पूर्ति करने के लिए l वो कहती हैं हमारी प्रयोगशाला में हम ये पता लगाने की कोशिश कर रहे हैं कि प्रत्यारोपण कैसे काम करता है और कब हमें इस कदम को उठाना बंद करना चाहिए l मरीज़ को मल के इंजेक्शन देने के बजाय उनके लिए मल पर आधारित एक उपचार.व्यवस्था भी अपनाई जा सकती हैए जिसे अपनाने में उन्हें बुरा नहीं लगेगा l
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