अहंकार का कोई आस्तित्व नहीं: ओशो

अहंकार अंधकार के समान है; अंधकार का अपना कोई सकारात्मक आस्तित्व नहीं होता; यह बस प्रकाश का अभाव है। तुम अंधकार से लड़ नहीं सकते, या लड़ सकते हो? तुम अंधकार को कमरे के बाहर नहीं फेंक सकते, तुम उसे बाहर नहीं निकाल सकते, तुम उसे भीतर नहीं ला सकते। तुम अंधकार के साथ सीधे-सीधे कुछ नहीं कर सकते, इसके लिए तुम्हे प्रकाश के साथ कुछ करना होगा। यदि तुम प्रकाश करो तब अंधेरा नहीं रह जाएगा; यदि तुम प्रकाश बुझा दो, वहां अंधेरा है।

 अहंकार को मारो
अंधकार प्रकाश का अभाव है, अहंकार भी ऐसा ही है आत्म-ज्ञान का अभाव। तुम उसका त्याग नहीं कर सकते। तुम्हे बार-बार ये कहा गया है। अपने अहंकार को मारो -और यह वाक्य साफ तौर पर बेतुका है, क्योंकि जिस चीज का कोई आस्तित्व ही नहीं उसका त्याग भी नहीं किया जा सकता। और यदि तुम उसका त्याग करने की कोशिश भी करोगें, जो उपस्थित ही नहीं है, तो तुम एक नया अहंकार पैदा कर लोगे, विनम्र होने का अहंकार, निरहंकार होने का अहंकार, उस व्यक्ति का अहंकार जो सोचता है कि उसने अपने अहंकार का त्याग दे दिया। यह फिर से एक नए प्रकार का अंधकार होगा।

 देखने की कोशिश करो
मैं तुमसे अहंकार का त्याग करने के लिए नहीं कहता। इसके विपरीत, मैं कहूंगा कि यह देखने की कोशिश करो कि अहंकार है कहां? इसकी गहराई में देखो; इसे पकडऩे कि कोशिश करो कि आखिर यह है कहां, या फिर यह वास्तविकता में है भी या नहीं। किसी भी चीज का त्याग करने से पहले उसकी उपस्थिति का पक्का कर लेना चाहिए।

 केंद्र में प्रवेश करके देखो
इसका विरोध करने की कोई जरूरत नहीं। इसमें गहरी डुबकी लगाओ, भीतर प्रवेश करो। इसमें प्रवेश करने का अर्थ है अपने घर में जागरूकता ले आना, अंधकार में प्रकाश ले आना। सावधान रहो सतर्क रहो। अहंकार के ढंगो को देखो, यह कैसे काम करता है, आखिर कैसे यह संचालित करता है। और तुम हैरान हो जाओगे; जितने गहरे तुम इसमें जाते हो यह उतना ही दिखाई नहीं पड़ता। और जब तुम अपने भीतरतम के केंद्र में प्रवेश कर जाते हो, तुम कुछ बिल्कुल ही अलग बात पाओगे जो कि अहंकार नहीं है। जो कि निरहंकारिता है। यह स्वयं का भाव है, स्वयं की पराकाष्ठा है –यह भगवत्ता है। तुम अब एक अलग सत्ता के रूप में मिट गए; अब तुम कोई निर्जन द्वीप नहीं हो, तुम पूर्ण का हिस्सा हो।

अहंकार बड़ा विरोधाभासी 

यह बड़ा ही विरोधाभासी दिखाई पड़ेगा, किन्तु यह सत्य है-इससे पहले तुम्हारा अहंकार छूटे, तुम्हें इसे अपनाना होगा। एक पका हुआ फल ही धरती पर गिरता है। उसका पका हुआ होना ही पर्याप्त होता है। एक अधपका अहंकार छोड़ा नहीं जा सकता, नष्ट नहीं किया जा सकता। और यदि तुम एक अधपके अहंकार को नष्ट करने या गला देने के लिए संघर्ष करोगे तो तुम्हारा सारा प्रयास विफल हो जायेगा। इसे नष्ट करने की बजाय तुम इसे नए और सूक्ष्म तरीके से और अधिक मजबूत पाओगे।

अहंकार को गिरा दो
मैं तुम्हे यह नहीं कह सकता, कि अहंकार को गिरा दो, क्योंकि इसका तो यह अर्थ हुआ कि मैंने तुम्हारे अहंकार की वास्तविकता को स्वीकार कर लिया। और तुम उसे गिरा कैसे सकते हो-जब कि तुम ही वह हो। इस क्षण में तुम ही अहंकार हो। स्वयं को तो तुमने कहीं पीछे अतीत में छोड़ दिया है। तुम में और तुम्हारे आस्तित्व में एक बहुत बड़ा अंतर है। इस क्षण में तुम अपनी परिधि पर जी रहे हो। उस परिधि पर तुम जीने का नाटक कर रहे हो। यह नाटक करने वाला ही अहंकार है। अब इस अहंकार को कहना कि, गिर जाओ!, समर्पण कर दो!, विनम्र बनो निपट मूढ़ता है।

 

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