भारतीय राष्ट्रीय फिल्म अभिलेखागार (एनएफएआई) ने प्रसिद्ध फिल्म निर्माता जोड़ी सुमित्रा भावे और सुनील सुकथंकर द्वारा बनाई गई फिल्मों का एक विशाल संग्रह प्राप्त किया
उनकी फिल्मोग्राफी इस युग का एक मूल्यवान सामाजिक दस्तावेज है, जो छात्रों, शोधकर्ताओं और उभरते हुए फिल्म निर्माताओं के लिए शिक्षण का एक स्रोत होगा: निदेशक, एनएफएआई
भारतीय राष्ट्रीय फिल्म अभिलेखागार (एनएफएआई) को प्रसिद्ध फिल्म निर्माता जोड़ी, सुमित्रा भावे और सुनील सुकथंकर द्वारा बनाई गई फिल्मों का एक विशाल संग्रह प्राप्त हुआ है। श्री सुनील सुकथंकर ने एनएफएआई के निदेशक प्रकाश मगदुम को यह बहुमूल्य संग्रह सौंपा है। यह संग्रह एनएफएआई के लिए फिल्मों का एक बड़ा अधिग्रहण है। समीक्षकों की प्रशंसा प्राप्त फिल्म निर्माता जोड़ी सुमित्रा भावे और सुनील सुकथंकर ने पिछले कुछ वर्षों के दौरान बड़ी संख्या में फिल्में बनाई हैं, जिन्होंने देश-विदेश में अनेक पुरस्कार और मान्यता प्राप्त की हैं। श्रीमती भावे का पिछले साल निधन हो गया था।
एनएफएआई के प्रति आभार व्यक्त करते हुए, श्री सुनील सुकथंकर ने कहा कि एनएफएआई हमारी फिल्म निर्माण यात्रा का प्रमुख हिस्सा रहा है और मुझे इस बात की खुशी है कि ये फिल्में अब यहां उपलब्ध सुविधाओं में संरक्षित हो जाएंगी। मुझे आशा है कि इस सामग्री का डिजिटलीकरण हो जाएगा ताकि ये नई पीढ़ी के लिए भी सुलभ हो सकें।
आज प्राप्त फिल्म संग्रह में फीचर फिल्म दहावी फा (2002), बाधा (2006), हा भारत माझा (2012) और लघु फिल्म जिद (2004) के 35 एमएम प्रिंट तथा फीचर फिल्म जिंदगी जिंदाबाद (1997) और लघु फिल्में बाई (1985), पानी (1987) और लाहा (1994) के 16 एमएम प्रिंट शामिल हैं। इसके अलावा, एक अन्य अनुभवी फिल्म निर्माता और फिल्म सोसायटी कार्यकर्ता विजय मुले द्वारा बनाई गई 16 एमएम फिल्म किशन का उड़न खटोला भी इस संग्रह का हिस्सा है।
एनएफएआई के निदेशक, प्रकाश मगदुम ने प्रसन्नता जाहिर करते हुए कहा कि राष्ट्रीय पुरस्कार विजेता निर्देशक जोड़ी का यह प्रमुख संग्रह एनएफएआई में संरक्षित किया जाएगा। मैंने पिछले साल श्रीमती भावे के साथ इस बारे में विचार-विमर्श किया था, लेकिन दुर्भाग्य से पिछले साल उनका देहांत हो गया। उनकी फिल्मोग्राफी ने समाज के अनेक महत्वपूर्ण विषयों का चित्रण किया है और यह युग का एक मूल्यवान सामाजिक दस्तावेज है। मुझे विश्वास है कि यह संग्रह छात्रों, शोधकर्ताओं और नवोदित फिल्म निर्माताओं के लिए शिक्षण का एक मूल्यवान सामाजिक दस्तावेज सिद्ध होगा। उन्होंने फिल्म निर्माताओं और प्रोडक्शन हाउसों से आगे आने और एनएफएआई में सेल्युलाइड फिल्मों को जमा करने का भी अनुरोध किया है।
दोनों फिल्म निर्माताओं ने कई प्रसिद्ध लघु फिल्मों, वृत्तचित्रों, टीवी शो और फीचर फिल्मों का निर्माण करके मराठी सिनेमा के लिए महत्वपूर्ण योगदान दिया है। चाहे वो सुमित्रा भावे की पहली लघु फिल्म बाई (1985) हो या हाल ही में बनी कासव (2017) और दिथी (2019) ही क्यों न हो, उनकी लगभग हर फिल्म ने अनेक राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कार जीते हैं। उनकी फिल्मोग्राफी में पानी (1987), मुक्ति (1990), चकोरी (1992) जैसी लघु फिल्में और दोघी (1995), दहावी फा (2002), वास्तुपुरुष (2002), देवराय (2004) और अस्तु (2016) जैसी बहुत अधिक प्रशंसित फिल्में शामिल हैं।
फिल्मों के संग्रह का प्रमुख हिस्सा डिजीबीटा, बीटाकैम, यूमैटिक, डीएलटी टेप्स, डीवी, मिनीडीवी, और वीएचएस जैसे विभिन्न चुंबकीय मीडिया प्रारूपों में फिल्मों के कैसेट प्रस्तुत करता है। इन शीर्षकों में लघु फिल्मकर्ता के अवधिवार छह विभिन्न संस्करण शामिल हैं। एक फिल्म जाने-माने उद्योगपति शांतनुराव किर्लोस्कर के जीवन पर आधारित है, फीचर फिल्में जिंदगी जिंदाबाद (1997), देवराय (2004), एक कप चाय (2009), और मोर देखने जंगल में (2010), लघु फिल्में मुक्ति (1990), चकोरी (1992), लाहा (1994), जिद (2004), बेवक्त बारिश (2007), ममता की छांव में, एकलव्य, संवाद और सारशी, वृत्तचित्र पार्टिंग विद प्राइड, गौतम छ्या आईची शाला और पिलग्रिम्स ऑफ लाइट तथा कथा सरिता (2011), अखेड़ाची रात्रा और भैस बराबर के टीवी शो एपिसोड शामिल हैं। इसमें भाषा शिक्षा पर नातीगोती, हाउ शैल आई एड्रेस यू और एडगुला मडगुला पर लघु फिल्मों की एक श्रृंखला भी शामिल है।
इससे पहले 2014-15 में, फिल्म निर्माता जोड़ी ने अपनी कुछ फिल्मों के 35 एमएम प्रिंट जमा किए थे और 2018 में, सुमित्रा भावे के 75वें जन्मदिन पर उसने अपनी दस फिल्मों की मूल हस्तलिखित पटकथाएं भी एनएफएआई को दान कर दी थी।
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